जलवायु परिवर्तन समझौते पर मुहर, वैश्विक तापमान 2°C से नीचे रखने का लक्ष्य
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जलवायु परिवर्तन समझौते पर मुहर, वैश्विक तापमान 2°C से नीचे रखने का लक्ष्य

भारत, चीन और अमेरिका की सहमति के साथ ही ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन समझौता शनिवार रात मंजूर हो गया। इससे पहले धरती के बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य वाले कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते पर कई दिनों तक व्यस्त बातचीत चली और जिसमें 2020 से विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता जतायी गई है।

जलवायु परिवर्तन समझौते पर मुहर, वैश्विक तापमान 2°C से नीचे रखने का लक्ष्य

ला बोरजे : भारत, चीन और अमेरिका की सहमति के साथ ही ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन समझौता शनिवार रात मंजूर हो गया। इससे पहले धरती के बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य वाले कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते पर कई दिनों तक व्यस्त बातचीत चली और जिसमें 2020 से विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता जतायी गई है।

शुरू में यह संभावना थी कि तापमान दो डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे का लक्ष्य और अधिक महत्वाकांक्षी 1. 5 डिग्री सेल्सियस रखने की बात विकासशील देश पसंद नहीं करेंगे जो कि औद्योगीकरण के कारण बड़े उत्सर्जक हैं लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने 31 पन्ने के दस्तावेज का स्वागत किया। जावड़ेकर ने समझौते का स्वागत करते हुए कहा, आज ऐतिहासिक दिन है। हमने जो मंजूर किया है, वह केवल एक समझौता नहीं है, बल्कि हमने सात अरब लोगों के जीवन में उम्मीद का अध्याय लिखा है। उन्होंने पहले कहा था कि भारत पिछले एक वर्ष से दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर जोर दे रहा था, जलवायु न्याय और सतत जीवनशैली।

उन्होंने कहा, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण सतत जीवनशैली और जलवायु न्याय के उद्देश्य का हमेशा ही समर्थन किया है। दोनों को मूलपाठ की प्रस्तावना में उल्लेखित किया गया है। यह भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन दो अवधारणाओं को भारत की ओर से पिछले एक वर्ष के दौरान मजबूती से रखा गया। भारत चाहता था कि विभेदीकरण की अवधारणा को समझौते के सभी तत्वों में स्पष्ट रूप से समझाया जाए और वह यह रूख अपना रहा था कि उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को स्वीकार करने में विकसित देशों की अधिक जिम्मेदारी होनी चाहिए जबकि वे एकमात्र ऐसे होने चाहिए जो अनिवार्य रूप से वित्तीय संसाधन मुहैया करायें।

पर्यावरणीय समूहों ने कहा कि पेरिस समझौता इतिहास में एक निर्णायक मोड़ है।  195 देशों के प्रतिनिधियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच फ्रांस के विदेश मंत्री लाउरेंट फैबियस ने ऐतिहासिक समझौते का मसौदा पेश किया और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने वहां मौजूद प्रतिनिधियों से समझौता मंजूर करने की अपील की।

तेरह दिन तक चली व्यस्त वार्ताओं के बाद 196 देशों ने ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण के लिए ऐतिहासिक समझौते को मंजूर कर लिया। यह एक ऐसा समझौता है जिसे नेताओं ने विभिन्नता प्रदान करने वाला, निष्पक्ष, दीर्घकालिक, गतिशील और कानूनी रूप से बाध्यकारी करार दिया। फ्रांस के विदेश मंत्री ने घोषणा की कि पेरिस समझौते को मंजूर कर लिया गया है। मंत्रियों के बीच आम सहमति का तब प्रदर्शन हुआ जब उन्होंने कई मिनट तक खड़े रहकर तालियां बजायीं और अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

फैबियस ने घोषणा की, मैं यहां देख रहा हूं कि प्रतिक्रिया सकारात्मक है। मुझे यहां कोई भी नहीं सुनायी नहीं दे रहा है। पेरिस जलवायु परिवर्तन मंजूर किया जाता है। फैबियस ने दावा किया कि 31 पृष्ठों वाला यह समझौता जलवायु न्याय की धारणा को स्वीकार करता है और यह देशों की अलग-अलग जिम्मेदारियों और उनकी अलग अलग क्षमताओं पर अलग अलग देशों की स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में गौर करता है। फ्रांस के विदेश मंत्री फैबियस ने सभी देशों और अपनी टीम का प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया।

समझौता 2020 से लागू होगा और यह अमीर और गरीब देशों के बीच इस बारे में दशकों से जारी गतिरोध को समाप्त करता है कि ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए प्रयासों को आगे कैसे आगे बढ़ाना है जिस पर अरबों डॉलर खर्च होने हैं तथा अभी से सामने आने वाले दुष्परिणामों से कैसे निपटना है।

महत्वपूर्ण वित्तपोषण मुद्दे पर विकसित देश 2020 से विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 100 अरब डॉलर जुटाने पर सहमत हुए। यद्यपि अमेरिका की आपत्ति के बाद इसे समझौते के कानूनी रूप से बाध्यकारी अनुभाग में नहीं जोड़ा गया। इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने परोक्ष रूप से भारत को समझौते के पक्ष में मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया।

अंतिम मसौदे पर प्रतिक्रिया जताते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पहले मीडिया से कहा था कि विकासशील और विकसित देशों के बीच अंतर जिसकी मांग भारत करता रहा है उसे कार्रवाई के सभी स्तंभों में उल्लेखित किया गया है जिसमें न्यूनीकरण, वित्त और प्रौद्योगिकी तक पहुंच शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मसौदा एक संतुलित है और यह विश्व के लिए आगे बढ़ने का रास्ता है।

जावड़ेकर ने इसे भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि करार दिया। उन्होंने कहा कि 31 पृष्ठों वाले अंतिम मसौदे में सतत जीवन शैली और जलवायु न्याय का उल्लेख किया गया है जिसका भारत द्वारा समर्थन किया जा रहा था। उन्होंने कहा, अंतिम मूलपाठ को पहली नजर में देखकर हम खुश हैं कि इसमें भारत की चिंताओं का ध्यान रखा गया है। इसे संधि (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज) से जोड़ा गया है जबकि साझा लेकिन विभेदकारी जिम्मेदारियों को उसमें आत्मसात किया गया है।

 

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