'अफ़ग़ान विवाद को भारत-पाक दुश्मनी के चश्मे से देखना ग़लत'
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'अफ़ग़ान विवाद को भारत-पाक दुश्मनी के चश्मे से देखना ग़लत'

अमेरिका के एक शीर्ष थिंक टैंक ने कहा है कि अफगान विवाद को भारत-पाक शत्रुता के चश्मे से देखा जाना गलत है. थिंक टैंक की ओर से यह बयान उन खबरों की पृष्ठभूमि में आया है कि ट्रंप प्रशासन नई अफ-पाक नीति बनाने के अंतिम चरणों में है. कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस ने कहा, ‘यदि अफगान विवाद को भारत-पाक शत्रुता के परिणाम के तौर पर देखा जाता है - जिसे कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद (निश्चित तौर पर रावलपिंडी भी) के बीच मैत्री स्थापित किए बिना सुलझाया नहीं जा सकता- तो अमेरिका को दक्षिण एशिया में स्थायी शांति (जैसा कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिका के पूर्व विशेष प्रतिनिधि रिचर्ड होलब्रूक का इरादा था) स्थापित करने के लिए निवेश करना होगा.’ 

अमेरिका के एक शीर्ष थिंक टैंक ने कहा है कि अफगान विवाद को भारत-पाक शत्रुता के चश्मे से देखा जाना गलत है.

वॉशिंगटन: अमेरिका के एक शीर्ष थिंक टैंक ने कहा है कि अफगान विवाद को भारत-पाक शत्रुता के चश्मे से देखा जाना गलत है. थिंक टैंक की ओर से यह बयान उन खबरों की पृष्ठभूमि में आया है कि ट्रंप प्रशासन नई अफ-पाक नीति बनाने के अंतिम चरणों में है. कार्नेगी एनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस ने कहा, ‘यदि अफगान विवाद को भारत-पाक शत्रुता के परिणाम के तौर पर देखा जाता है - जिसे कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद (निश्चित तौर पर रावलपिंडी भी) के बीच मैत्री स्थापित किए बिना सुलझाया नहीं जा सकता- तो अमेरिका को दक्षिण एशिया में स्थायी शांति (जैसा कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिका के पूर्व विशेष प्रतिनिधि रिचर्ड होलब्रूक का इरादा था) स्थापित करने के लिए निवेश करना होगा.’ 

एश्ले टेलिस और जेफ एगर्स जैसे जाने-माने विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए थिंक टैंक के हालिया नीति पत्र में कहा गया, ‘हालांकि इस हल से जुड़ी धारणा गलत है. यह अफगानिस्तान की पाकिस्तान के साथ चलने वाली क्षेत्रीय समस्या पर गौर नहीं करती. इस क्षेत्रीय समस्या की जड़ें पाकिस्तान और भारत के बीच के विवाद से भी पुरानी हैं. इतने कम समय में अफगानिस्तान में विवाद की मौजूदा स्थिति को सुलझा पाना बेहद मुश्किल है.’ 

टेलिस और एगर्स ने कहा कि इस विकल्प का एक अन्य स्वरूप क्षेत्रीय निष्पक्षता है. इसमें अफगानिस्तान अपने पड़ोसियों द्वारा हस्ताक्षरित सहयोगी सुरक्षा समझौते को लागू करने के पक्ष में अपनी मौजूदा सुरक्षा आधारित साझेदारियों को धीरे-धीरे छोड़ देता है. दोनों विशेषज्ञों ने कहा, ‘हालांकि यह हल जितना असंभव दिखता है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है क्योंकि अफगानिस्तान के किसी पड़ोसी द्वारा समझौते का उल्लंघन किए जाने की स्थिति में काबुल को वॉशिंगटन की मदद के बिना ऐसा समझौता लागू करने में मुश्किल पेश अएगी.’

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