सिंधुपालचौक: कुदरत ने ही संवारा था, कुदरत ने ही बिगाड़ दिया
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सिंधुपालचौक: कुदरत ने ही संवारा था, कुदरत ने ही बिगाड़ दिया

54 बरस की दुर्गा श्रेष्ठ 25 अप्रैल के उस प्रलंयकारी भूकंप को याद करके आज भी सिहर उठती हैं, जब कुदरत ने अपना विकराल रूप दिखाया और देखते ही देखते अपने ही हाथों से संवारी धरा के इस हिस्से पर तबाही की दास्तान लिख दी।।

सिंधुपालचौक (नेपाल) : 54 बरस की दुर्गा श्रेष्ठ 25 अप्रैल के उस प्रलंयकारी भूकंप को याद करके आज भी सिहर उठती हैं, जब कुदरत ने अपना विकराल रूप दिखाया और देखते ही देखते अपने ही हाथों से संवारी धरा के इस हिस्से पर तबाही की दास्तान लिख दी।।

हालांकि दुर्गा और उनका परिवार कयामत के उस दिन बच गए लेकिन उनके आशियाने का एक एक तिनका बिखर गया और अब आलम यह है कि पांच बच्चों के साथ न सिर पर छत है और खाने को अन्न का दाना। बेहद बेबसी और लाचारी के आलम में अपने ध्वस्त मकान के समीप अस्थायी शिविर में रह रही दुर्गा रह रहकर अपने बर्बाद आशियाने की तरफ जाती है और टनों मलबे के तले दब चुके सामान में से जरूरत का सामान खोजने की कोशिश करती है, लेकिन हर बार उसके हाथ खाली ही रहते हैं।

उन्होंने कहा, भूकंप ने हमारा सबकुछ छीन लिया। सब कुछ वीराने में बदल गया। और वाकई, कभी जिंदगी की रौनक और चहल पहल से गुलजार यह इलाका आज भुतहा शहर में बदल चुका है। कभी रौशनी से जगमगाने वाली मकानों की कतारें खंडहरों में बदल चुकी हैं। हालत यह है कि भूकंप से तबाह इस इलाके से गुजरने वालों को मरे हुए जानवरों की बदबू से मतली आने लगती है। ये चीजें विनाशलीला की भयंकर कहानी बयां करती हैं।

नेपाल में 25 अप्रैल को भूकंप ने करीब 7000 हजार जिंदगियां छीन ली थी। उसका केंद्र गोरखा जिले में था। इस भूकंप ने नेपाल की नींव हिला दी। सबसे अधिक 2000 लोग सिंधुपालचौक जिले में मारे गए थे। सिंधुपालचौक काठमांडो से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है। संयुक्त राष्ट्र मानवीय एजेंसी ओसीएचए (ऑफिस फोर कोर्डिनेशन ऑफ ह्यूमैनटेरियन अफेयर्स) की ओर से जारी स्थिति रिपोर्ट के अनुसार इस विनाशलीला ने इन दोनों जिलों में करीब 90 फीसदी मकानों को नष्ट कर दिया।

सिंधुपालचौक और उसके पड़ोसी कावरे जिलों में प्रकृति ने चहुंओर सुषमा बिखेर रखी थी लेकिन भूकंप की विनाशलीला के बाद दोनों जिले बिल्कुल एक दूसरे के भिन्न हो गए हैं। पर्वतीय घाटी में सड़कों के किनारे के विहंगम रिसोटरें, जहां पहले विदेशी पर्यटकों की उपस्थिति से चहल-पहल रहती थी, सन्नाटा पसरा हुआ है। टूटे और गिरे हुए तथा दरार वाले मकान विनाश की याद दिलाते हैं जबकि पहले वहां नदियां, हरियाली और मनोरम दृश्य हुआ करता था।

जिले के अंधेरी गांव में सोन कोशी नदी के तट पर स्थित ‘होटल हिल व्यू’ नामक रेस्तरां में पर्यटकों की भीड़ रहती थी जबकि अब वह सामुदायिक आश्रय स्थल बना हुआ है जहां कई परिवारों ने शरण ले रखी है। भूकंप के कारण सड़कों में बड़ी बड़ी दरारें हो गयी हैं जिससे बचावकर्मियों तथा राहत सामग्री को प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल हो गया है।

सिंधुपालचौक और कावरे जिलों की सीमा पर स्थित डोलाघाट इलाके में शुक्रवार को फिर से भूस्खलन होने से पहले से विनाश के शिकार क्षेत्र में लोगों का डर और बढ़ गया। लेकिन ऐसी स्थिति में भी दूर दूर तक गांवों में आपूर्ति पहुंचाने में जुटे स्वयंसेवकों का जज्बा बना हुआ है। जिले के एक गांव में पिछले शनिवार को आवश्यक सामग्री पहुंचा चुके काठमांडो के एक रेस्तरां मालिक चेतन भंडारी हालांकि प्रशासन की कार्रवाई को लेकर नाखुश दिखे।

भंडारी ने कहा, सरकार उन स्थानों पर नहीं पहुंची है जो सुदूर और दुर्गम है। सुगम्य इलाकों में ही राहत सामग्री भेजी गई है। जब एक महिला से पूछा गया कि क्या सरकार ने उनसे संपर्क किया है या जरूरी सामग्री भेजी है तो उसने नकात्मक जवाब दिया। उसने कहा, हमारे पास अनाज की दस बोरियां थीं। हम पांच खत्म कर चुके। हमें आशा है कि बाकी पांच से काम निकल जाएगा। हालांकि स्थिति पर नजर रखने के लिए दौरे पर आए एक संरा अधिकारी ने कहा, जिले में स्थानीय सरकारी अधिकारी खुद ही भूकंप पीड़ित हैं, ऐसे में कैसे कोई समय पर मदद की उम्मीद कर सकता है। अतएव, खाद्य एवं चिकित्सा सहायता इस क्षेत्र के बाहर से आयी है और इसे तेजी से आना है। जिले में ढ़ाई लाख की आबादी है तथा इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस एंड रेड क्रीसेंट सोसायटीज (आईएफआरसी), डॉक्टर्स विदाउट बोडर्स और अन्य एनजीओ मानवीय सहायता पहुंचाने में जुटे हैं।

 

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