श्रीलंका में जारी सियासी गतिरोध के बीच यह जानना दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति के बारे में श्रीलंकाई संविधान क्या कहता है.
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कोलंबो: श्रीलंका में जारी सियासी गतिरोध के बीच यह जानना दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति के बारे में श्रीलंकाई संविधान क्या कहता है, क्योंकि राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त करने के कदम से देश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है. यह सियासी संकट तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति सिरिसेना के राजनीतिक गठबंधन यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की एकीकृत सरकार से समर्थन वापस लिया.
सिरिसेना और विक्रमसिंघे ने 2015 में राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने के लिये हाथ मिलाया जिससे संवैधानिक और प्रशासनिक सुधार अमल में लाए जा सकें. इनमें नया संविधान लाना भी शामिल था जिससे तमिल अल्पसंख्यकों के लंबे समय से चले आ रहे मसले को सुलझाया जा सके. सिरिसेना ने शुक्रवार की रात विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. विक्रमसिंघे द्वारा बहुमत साबित करने के लिये संसद का आपात सत्र बुलाए जाने की मांग के बाद सिरिसेना ने संसद को भी 16 नवंबर तक निलंबित कर दिया.
2015 में अपनाए गए 19वें संशोधन के तहत राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को अपने विवेक से हटाने का अधिकार नहीं है. प्रधानमंत्री को तभी बर्खास्त किया जा सकता है जब या तो मंत्रिमंडल को बर्खास्त किया गया हो, प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया हो या फिर प्रधानमंत्री संसद का सदस्य न रहे. राष्ट्रपति केवल प्रधानमंत्री की सलाह पर एक मंत्री को हटा सकता है.
राष्ट्रपति सिरिसेना खेमे की दलील है कि कैबिनेट का अस्तित्व तभी खत्म हो गया जिस वक्त यूपीएफए ने राष्ट्रीय सरकार से समर्थन वापस लिया. जब कोई कैबिनेट नहीं हो, कोई प्रधानमंत्री नहीं हो तब राष्ट्रपति के पास उस शख्स को नियुक्त करने का अधिकार होता है जो उनके मुताबिक संसद में बहुमत रखता हो.
संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक प्रधानमंत्री तभी पद पर नहीं रह सकता जब उसका निधन हो जाए, इस्तीफा दे दे, संसद का सदस्य न रहे या अविश्वास प्रस्ताव आदि में सरकार संसद का विश्वास प्राप्त नहीं कर सके. विक्रमसिंघे के मुताबिक सिरिसेना ने जो किया वह असंवैधानिक है क्योंकि 2015 में पारित 19वें संशोधन के अनुच्छेद 46(2) के मुताबिक राष्ट्रपति संसद में बहुमत का समर्थन रखने वाले प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकता.
विक्रमसिंघे ने जोर देकर कहा कि उनके पास संसद में बहुमत है. उन्होंने कहा कि न तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया है और न ही उन्होंने संसद की सदस्यता छोड़ी है. राष्ट्रपति के समर्थकों ने हालांकि विक्रमसिंघे के दावों को चुनौती दी है जिनका कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 42 स्पष्ट रूप से कहता है कि राष्ट्रपति उस सदस्य की प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति करेंगे जिसके पास उनकी राय में संसद का स्पष्ट बहुमत हो.
सिरिसेना की राय में विक्रमसिंघे के पास संसद में बहुमत लायक समर्थन नहीं है और इसलिये वह प्रधानमंत्री होने का अधिकार खो चुके हैं. संवैधानिक आधार पर विक्रमसिंघे के पास राष्ट्रपति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है, उन्होंने हालांकि ऐसा नहीं करने का फैसला किया है क्योंकि ऐसा करने पर अपने दावे को आधार देने के लिये उन्हें विश्वास मत के दौरान संसद में बहुमत साबित करना होगा. आईलैंड अखबार के मुताबिक विक्रमसिंघे को विश्वास मत हासिल कर लेने का भरोसा है.
इनपुट भाषा से भी