Bhagat Singh: फांसी से पहले भगत सिंह ने पत्र में लिखा था, मैं सिर्फ इस शर्त पर जिंदा रह सकता हूं

Bhagat Singh Birth Anniversary: शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म आज ही के दिन 1907 में मौजूदा पाकिस्तान के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था. भगत सिंह छोटी सी उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे. उन्होंने फांसी से एक दिन पहले यानी 22 मार्च 1931 को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह एक शर्त पर जिंदा रह सकते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 28, 2023, 09:15 AM IST
  • आज ही के दिन हुआ था भगत सिंह का जन्म
  • देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दी थी जान
Bhagat Singh: फांसी से पहले भगत सिंह ने पत्र में लिखा था, मैं सिर्फ इस शर्त पर जिंदा रह सकता हूं

नई दिल्लीः Bhagat Singh Birth Anniversary: शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म आज ही के दिन 1907 में मौजूदा पाकिस्तान के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था. भगत सिंह छोटी सी उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे. उन्होंने फांसी से एक दिन पहले यानी 22 मार्च 1931 को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह एक शर्त पर जिंदा रह सकते हैं.

फांसी से पहले भगत सिंह का पत्र
भगत सिंह ने पत्र में लिखा था, साथियों, स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं. लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि मैं कैद होकर या पांबद होकर जीना नहीं चाहता हूं.

वह आगे लिखते हैं, मेरा नाम हिंदुस्तान की क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है. इतना ऊंचा कि जिंदा रहने की स्थिति में इससे ऊंचा हरगिज नहीं हो सकता हूं. आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं. अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न धीमा पड़ जाएगा या संभवतः मिट जाएगा. 

मगर दिलेरी से हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने से हिंदुस्तान की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी. देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.

भगत सिंह पत्र में लिखते हैं, हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी उनका 1000वां हिस्सा भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र जिंदा रह सकता तो शायद उन्हें पूरा करने का मौका मिलता और मैं अपनी हसरत पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.

आपका साथी 
भगत सिंह

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