चावल-गेंहू छोड़कर की मोटे अनाज की खेती, पंजाब से ऑस्ट्रेलिया तक बज रहा डंका, कमाई 38 लाख
Millets: आपने देखा होगा कि पंजाब के ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं. लेकिन दिलप्रीत सिंह कुछ अलग सोचते हैं. उन्होंने चार साल पहले ही अपने 8 एकड़ के खेत में धान की बजाय ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाज उगाने शुरू किए.
Organic Farming: आपने देखा होगा कि पंजाब के ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं. लेकिन दिलप्रीत सिंह कुछ अलग सोचते हैं. उन्होंने चार साल पहले ही अपने 8 एकड़ के खेत में धान की बजाय ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाज उगाने शुरू किए. उन्होंने खेती में कड़ी मेहनत की और प्रोडक्शन को बढ़ाया. दिलचस्प बात ये है कि अब वो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों को भी मोटे अनाज एक्सपोर्ट कर रहे हैं. दिलप्रीत सिंह संगरूर के रहने वाले हैं और उन्होंने सरकारी मदद से पहले ही 2019 में रागी, बाजरा और कोदो की खेती शुरू कर दी थी. उनका मानना है कि मोटे अनाज पानी की कमी और ज्यादा खाद की जरूरत जैसी समस्याओं का हल हो सकते हैं.
शुरुआत में हुई मुश्किलें
कृषि जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक मोटे अनाजों की खेती करने से पहले दिलप्रीत सिंह को इनको संभालने वाले मजदूर ढूंढने पड़े और आखिर में इन अनाजों को तैयार करने का तरीका भी सीखना पड़ा. साथ ही दूसरे किसान भी उनका मजाक उड़ाते थे कि ये अनाज कोई नहीं खाता. आपको बता दें कि रागी, ज्वार, बाजरा, कोदो आदि अनाज पहले भारत में बहुत खाए जाते थे. इन्हें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण श्री अन्न भी कहती हैं. ये अनाज ग्लूटेन-फ्री होते हैं और इनमें गेहूं और चावल से भी ज्यादा एनर्जी होती है.
कठिनाइयों का सामना
दिलप्रीत बताते हैं कि "मैंने सिर्फ इसलिए मोटे अनाज उगाने शुरू किए थे ताकि पंजाब में पानी की कमी और प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सके." सबसे पहले तो उन्हें अपने दोस्तों को समझाना पड़ा. लेकिन उन्हें ये भी पता चला कि भारत में लोग मोटे अनाज को अभी भी चावल और गेहूं का विकल्प नहीं अपनाना चाहते. इस वजह से उन्होंने ग्लोबल मार्केट यानी विदेशी बाजार का रुख किया. एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) की मदद से इसी महीने वो लगभग 14 टन मोटे अनाज ऑस्ट्रेलिया को एक्सपोर्ट करवे वाले पहले भारतीय किसान बन गए. उनकी इससे उनको करीब 38 लाख रुपये की कमाई हुई.
बीजों को बचाने की चुनौती
लेकिन ये काम भी आसान नहीं था. उन्हें फूड सेफ्टी एंड स्टैंटर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के नियमों का पालन करना पड़ा. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना था कि ये बीज विदेश में उगाए न जा सकें. इसके लिए कई लोगों ने उन्हें बीजों को पीसकर पाउडर बनाने की सलाह दी. दिलप्रीत कहते हैं कि "मैं चाहता हूं कि लोग उतनी ही आसानी से मोटे अनाज पका सकें जितनी आसानी से वो कुकर में चावल पकाते हैं." उन्होंने कई तरीके अपनाकर बीजों को निष्क्रिय कर दिया ताकि वो विदेशी धरती में उग न सकें.
लॉन्च किया अपना ब्रांड
इसी वजह से उन्होंने रेडी-टू-कुक मोटे अनाज बनाने का विचार किया और अपना ब्रांड 'हेल्दी सोइल, फूड एंड पीपल' शुरू किया. पैकेजिंग की वजह से लागत तो बढ़ी लेकिन अब वो अच्छी कमाई कर पा रहे हैं. साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया गया था. ये साल दिलप्रीत सिंह जैसे किसानों के लिए काफी अच्छा रहा. वो अब साल 2024-25 में 75-80 लाख रुपये की कमाई का लक्ष्य बना रहे हैं. वे कनाडा में भी अपना अनाज एक्सपोर्ट करने का प्लान कर रहे हैं.