Woman Farmer: जिन लोगों को ऐसा लगता है कि खेती-बाड़ी सिर्फ पुरुषों के बस की बात है, उन्हें लीना शर्मा के बारे में जानना चाहिए. जो लोग ऐसा सोचते हैं कि शादी करने के बाद एक महिला का जीवन या करियर खत्म हो जाता है और वह सिर्फ घर के काम ही कर सकती है उनके लिए लीना की कहानी एक करारा जवाब है. 40 वर्षीय लीना ने काफी देर से नेचुरल फार्मिंग की तकनीक सीखनी शुरू की. इसके बावजूद उन्हें अपने पति का सपोर्ट मिला जिससे उनका हौसला और बढ़ गया. 


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आसान नहीं थी खेती-बाड़ी


लीना के लिए खेती-बाड़ी के बारे में सीखना आसान नहीं था. कई लोगों ने उनके फैसले को सपोर्ट नहीं किया. लोगों ने उनके हौसले को तोड़ने के लिए ताने मारे और मजाक भी बनाया. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करती रहीं. उन्होंने सबसे पहले अपनी जमीन का एक छोटा सा हिस्सा तैयार करके इसकी शुरुआत की. फिर उन्होंने कई तरीके आजमाए जब तक कि उसे वह तरीका नहीं मिल गया जो उसकी फसल के लिए सबसे उपयुक्त था. लीना ने किसी और से नहीं बल्कि पद्म श्री से सम्मानित सुभाष पालेकर से प्रेरणा ली, जिन्हें भारत में 'कृषिका ऋषि' के नाम से जाना जाता है. 


कृषि जागरण की रिपोर्ट के मुातबिक छह साल से लीना हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में प्रैक्टिस कर रही हैं. उनके पास कुल पांच बीघे जमीन है जो वर्षा पर आधारित है. उनके पास खेती करने के लिए कोई मशीन भी नहीं है. वे मशीन किराए पर लेकर खेती करती हैं. हालांकि, उन्होंने 80 बीघे के क्षेत्र को कवर करने के लिए 20 महिलाओं का एक ग्रुप बनाया है. वे कम्यूनिटी फार्मिंग को भी बढ़ावा देती हैं. दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपने कम्यूनिटी में कई नई तकनीकें पेश की हैं. जैसे कि किसानों को खेत में यूरिया न डालने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने किसानों को कैमिकल के उपयोग के बिना मल्टी-क्रॉप फार्मिंग करने की सलाह दी. इसी तरह, उन्होंने लोगों को गाय के मूत्र से घास तैयार करने के तरीकों के बारे में बताकर खेत में पेस्टीसाइड (कीटनाशकों) के उपयोग की समस्या को सुलझाया. यह फसल को कीड़ों से बचाने का अच्छा तरीका है. 


खेतों में उगाती हैं ये फसलें


वह अपने खेतों के लिए जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत, खट्टी लस्सी और अग्निअस्त्र जैसे विभिन्न चीजों का उपयोग करती हैं. इससे पहले वर्ष में उन्हें बहुत अच्छी फसल प्राप्त हुई. वह रबी सीजन में मटर, लहसुन, धनिया, मेथी और फ्रेंचबीन की फसलें और खरीफ सीजन के दौरान मक्का, मैश, सोयाबीन, तिल, कोदरा और भिंडी की फसल भी उगा रही हैं. इस खेती को करने से उनका लागत मूल्य काफी हद तक कम हो गया है. साथ ही, अच्छा उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद प्राप्त हुए हैं. किसानों को संसाधनों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक भागदौड़ नहीं करनी चाहिए. इसके बजाय, उन्हें उस चीज का इस्तेमाल करना चाहिए जो आम तौर पर घरों में उपलब्ध होताी है.