Bath without Cloths: स्नान यानी कि नहाना शब्द जेहन में आते ही ठंडे पानी की शरीर में पड़ती बूंदों का अहसास होने लगता है. नहाना धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि दोनों से लाभदायक होता है. बिना नहाए शरीर को आराम नहीं मिलता और न ही स्फूर्ति आती है. ऐसे में लोग रोजाना स्नान का मजा लेते हैं. गर्मियों के दौरान तो लोग दिन में कई बार नहाते हैं. हिंदू धार्मिक ग्रंथों में नहाने को लेकर कई तरह के नियम बताए गए हैं. इन्हीं नियमों में से एक निर्वस्त्र होकर नहाने को लेकर है.


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कथा


अक्सर आपने बड़े-बुजूर्गों से सुना होगा कि निर्वस्त्र होकर नहीं नहाना चाहिए. ऐसा करना शुभ नहीं होता है. यही वजह है कि कई लोग आज तक इन बातों का पालन करते चले आ रहे हैं. इसको लेकर एक पौराणिक कथा भगवान श्रीकृष्ण की लीला को लेकर है.


अपमान


द्वापर युग में जब एक बार गोपिकाएं सरोवर में स्नान कर रही थीं तो इस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनके वस्त्र छिपा दिए थे. जब नहाने के बाद वस्त्र न होने की बात गोपियों को पता लगी तो वह कान्हा से वस्त्र वापस करने की गुहार लगाने लगीं. ऐसे में कृष्ण जी ने मझाया कि बिना वस्त्र के स्नान नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से वरुण देवता का अपमान होता है.


पितृ दोष


यह भी कहा जाता है कि निर्वस्त्र नहाने से नकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है. ऐसे में जरूरी है कि तन में कोई न कोई वस्त्र जरूर होना चाहिए. ऐसी भी मान्यता है कि जब आप पितर हमेशा आपके आसपास होते हैं. ऐसे में जब आप निर्वस्त्र स्नान करते हैं तो पितृ दोष लग सकता है.


मां लक्ष्मी


पद्मपुराण की मानें तो जब आप नहा रहे होते हैं तो उसका पानी पूर्वजों के हिस्से में जाता है. ऐसे में जब आप बिना कपड़ों के स्नान करते हैं तो इसे पितरों के सामने नग्न नहाने के समान माना जाता है. वहीं, निर्वस्त्र स्नान करने से मां लक्ष्मी के नाराज होने की भी बात कही गई है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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