Gemology: आपने कुछ लोगों को देखा होगा कि वह अधिकांश अंगुलियों रत्नों से जड़ी अंगूठियां पहने होते हैं. कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं कि एक ही अंगुली की अंगूठी में दो-दो रत्न पहने होते हैं. ऐसा नहीं है कि वह इन रत्नों को शौकिया पहन रहे हैं. निश्चित रूप से उन्होंने अपनी कुंडली का विश्लेषण किसी योग्य ज्योतिषी से कराया होगा और उनकी सलाह पर ही इन्हें धारण किया होगा. जो लोग इन्हें बिना सोचे-समझे या किसी ज्योतिषी की सलाह से नहीं पहन रहे हैं. उन्हें इसके नकारात्मक पहलुओं का सामना करना पड़ सकता है. आवश्यकता पड़ने पर ही रत्नों को धारण करना चाहिए.


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ग्रहों से कनेक्शन


रत्नों का ग्रहों से सीधा कनेक्शन होता है. अंतरिक्ष में स्थित ग्रह और नक्षत्र पृथ्वी में रहने वालों पर अच्छे या बुरे प्रभाव डालते हैं. इन ग्रहों और नक्षत्रों से निकलने वाली रश्मियां रत्नों का इस्तेमाल करने से फिल्टर होकर शरीर में प्रवेश करती हैं. यही कारण है कि लोग इनका इस्तेमाल करते हैं. किसी भी रत्न को धारण करने के पहले इनके गुण और दोषों का विश्लेषण करना आवश्यक होता है. बिना सही विश्लेषण के रत्नों को धारण करने से हानि भी हो सकती है, इसलिए बिना कुंडली विश्लेषण के कोई रत्न नहीं धारण करना चाहिए.


सूर्य का रत्न


लग्नस्थ सूर्य दांपत्य एवं संतान सुख को क्षीण करता है. द्वितीयस्थ सूर्य धन हानि का कारक, तृतीयस्थ सूर्य छोटे भाइयों और चतुर्थस्थ कर्मफल के लिए हानिकारक होता है. इन अशुभ फलों से मुक्ति पाने के लिए माणिक्य धारण करना चाहिए. सूर्य अपनी राशि से अष्टम एकादश या सप्तम भाव में हो या द्वितीयेश, नवमेश अथवा कर्मेश होकर छठे या आठवें भाव में हो अथवा द्वादश में हो तो भी माणिक्य पहनना ठीक रहता है. इसके अलावा सूर्य अष्टमेश या षष्ठेश होकर पंचम या नवम भाव में हो तो इस स्थिति में भी माणिक्य धारण करना चाहिए.