Karwa Chauth Katha In Hindi: कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ के नाम से जाना जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं, इस दिन कुंवारी स्त्रियां मनचाहे वर के लिए भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं. इस बार कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर के दिन पड़ रही है. 


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ज्योतिष शास्त्रइस दिन महिलाएं भूखी-प्यासी रहकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. रात में चंद्रोदय के बाद चांद के दर्शन करती हैं और चांद को अर्घ्य देकर  पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं और व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन शुभ मुहूर्त में चौथ माता की कथा और आरती की जाती है. इस दिन करवा चौथ की कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है. आइए जानें करवा चौथ व्रत की कथा के बारे में. 


करवा चौथ की कथा (Karva Chauth Katha In Hindi)


प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी. करवा अपने पति के साथ नदी किनारे एक गांव में रहा करती थी. उसका पति बूढ़ा था. एक दिन वह नदी में स्नान के लिए गया. उस नदी में नहाते समय मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया. करवा का पति डरकर 'करवा करवा' चिल्लाने लगा और करवा को मदद के लिए पुकारने लगा. पति की आवाज सुनकर करवा एकदम से नदी के पास पति को बचाने पहुंची और  दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया. मगरमच्छ को सूत के कच्चे धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुंची.


यमराज उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे. करवा ने सात सींक ली और उनसे यमराज के खाते झाड़ने शुरू कर दिए. इससे सभी खाते आकाश में उड़ने लगे. करवा की ये हरकत देख कर यमराज घबरा गए और बोले- 'देवी! तू क्या चाहती है?' तब यमराज से करवा ने कहा- 'मेरे पति का नहाते समय नदी में मगर ने पैर पकड़ लिया. आप उस मगर को अपनी शक्ति से नरक में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो.' करवा की ये बात सुनकर उन्होंने कहा- 'देवी! अभी मगर की आयु शेष बची है. और आयु रहते हुए मैं मगर को मार नहीं सकता.' यमराज की बात सुनकर करवा क्रोधित हो गई और बोली- अगर आप मगर को मारकर मेरे पति की रक्षा नहीं करेंगे, तो मैं आपको शाप देकर नष्ट कर दूंगी. 


करवा की धमकी से डर गए यमराज


करवा की ये बात सुनकर यमराज डर गए. और करवा के साथ मगर के पास आए. वहां मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था. यमराज ने मगर मारा और उसे यमलोक पहुंचा दिया. करवा के पति की प्राण रक्षा की और उसे दीर्घायु का वरदान दिया. इतना ही नहीं, वे जाते समय करवा को सुख-समृद्धि देकर गए. और ये वर दिया कि 'इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियों के सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा.' 


करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति के प्राण बचा लिए. इस घटना के बाद से करवा चौथ का व्रत करवा के नाम से ही प्रचलित हो गया. ये घटना जिस दिन घटी उस दिन कार्तिक माह की चतुर्थी थी. तभी से इसी दिन ये व्रत रखा जाने लगा. हे करवा माता! जैसे आपने करवा के पति के प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)