Goga Navami: इस दिन मनाई जाएगी गोगा नवमी, गंगा स्नान करने से मिलता है सुख-सौभाग्य और संपत्ति
Goga Navami Kab Hai: त्रेता युग में जब अनाचार बहुत अधिक हो गए तो अनेक धर्मात्मा पुरुषों ने नगर का त्याग कर जंगलों में रहना शुरू किया. पापों के कारण ही तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई. जब लोग जल के बिना तड़प-तड़प कर मरने लगे तो महर्षि अत्रि ने प्राणियों की रक्षा तथा इस संकट से मुक्ति दिलाने के लिए कठोर तपस्या शुरू की.
Goga Navami 2023: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को पवित्र गंगा नदी के पूजन का विधान है, जिसे गंगा नवमी या गोगा नवमी कहा जाता है. इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान करके गंगा जल से ही गंगा जी का तर्पण करते हैं. इस दिन गंगा स्नान करने से न केवल बीमारियों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सुख, सौभाग्य और संपत्ति में भी वृद्धि होती है. अत्रि गंगा से भी इस व्रत का संबंध है, क्योंकि महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के कठोर तप के परिणाम स्वरूप इस दिन अत्रि गंगा का अवतरण माना गया है. इस बार गंगा नवमी का पर्व 8 सितंबर दिन शुक्रवार को पड़ेगा.
व्रत कथा
त्रेता युग में जब अनाचार बहुत अधिक हो गए तो अनेक धर्मात्मा पुरुषों ने नगर का त्याग कर जंगलों में रहना शुरू किया. पापों के कारण ही तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई. जीव-जंतु से लेकर मनुष्य तक जल की एक एक बूंद के लिए तरसने लगे. जब लोग जल के बिना तड़प-तड़प कर मरने लगे तो महर्षि अत्रि से लोगों की यह स्थिति नहीं देखी गई और प्राणियों की रक्षा तथा इस संकट से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने अन्न, जल त्याग कर कठोर तपस्या शुरू की, उनकी पत्नी अनुसूया भी परम साध्वी, तपस्वी और पतिव्रता स्त्री थीं.
पति द्वारा किए जा रहे इस लोक हितार्थ कार्य में वह भी साथ देने लगीं और महर्षि अत्रि के साथ वह भी तपस्या करने लगीं. महर्षि की समाधि खुली तो उन्होंने अनुसूया से जल मांगा. तप स्थल के निकट की नदी में गई तो उसमें जल नहीं था. भटकते हुए अनुसूया जंगल में बहुत दूर निकल गई तो वहां एक युवती मिली और उसने पूछा आप क्या खोज रही हैं. इस पर अनुसूया ने पूरी बात बताते हुए जलाशय पूछा. इस पर युवती बोली कि बारिश ही नहीं हुई तो जल कैसे मिलेगा.
अनुसूया उत्तेजित होकर बोलीं कि मिलेगा कैसे नहीं, मैं एक साध्वी स्त्री हूं. मेरा तप व्यर्थ नहीं जाएगा. मां गंगा की धारा यहां बहेगी, तब उस युवती ने कहा कि देवी, तुम्हारे पतिव्रत और तुम्हारी साधना से मैं प्रसन्न हूं, यहां जल बहेगा और जगत का कल्याण होगा. अब कौतूहल से अनुसूया ने उनसे पूछा आप कौन हैं जो मेरे पतिव्रत धर्म और साधना के बारे में जानती हैं.
उन्होंने कहा मैं ही गंगा हूं और तुम्हारे दर्शनों को यहां आई हूं. अपने पैर के नीचे के टीले को कुरेदो, वहां पानी ही पानी है ले जाकर अपने पति की इच्छा पूरी करो. उन्हें प्रणाम करते हुए अनुसूया बोलीं, हे मां जब तक मैं लौटकर न आऊं, आप यहीं पर मेरी प्रतीक्षा करें मैं पति को लाकर आपके दर्शन कराना चाहती हूं.
इस बात पर वह बोलीं. मैं ठहर तो सकती हूं, लेकिन इसके लिए तुम्हें अपने पति सेवा के एक वर्षफल मुझे देना होगा. उन्हें वचन देकर अनुसूया जल लेकर महर्षि अत्रि को लेने चली गयी. महर्षि को पूरी बात बताई तो महर्षि ने वहां पहुंच कर मां गंगा के दर्शन कर निवेदन किया कि आपकी धारा यहां पर कभी न सूखे ऐसा वरदान दें. मां गंगा ने कहा कि इसके लिए तो महादेव को प्रसन्न करना होगा. फिर उन्होंने वहीं पर भगवान शिव की आराधना की और उन्होंने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया, जिससे गंगा का प्रवाह वहां पर स्थायी हो गया. इसी कारण उनके आश्रम के पास बहने वाली गंगा अत्रि गंगा कहलाती है.