जिंदगी खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश है. संघर्ष है. यह साबित करने का कि मेरा अस्तित्‍व है. यह संघर्ष जब तक बाहरी दुनिया से है. तब तक ठीक है, लेकिन जैसे यह भीतर से होने लगता है, जीवन के लिए मुसीबत बन जाता है. अपने भीतर यह संघर्ष दूसरों की तुलना, खुद को दूसरों के अनुकूल ढालने से शुरू होता है.


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जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं या यूं कहें कि दुनिया में पुराने होते जाते हैं, खुद को दूसरों के अनुकूल बनाने की जुगाड़ में खपाने में अभ्‍यस्‍त होने की कोशिश करने लगते हैं. हम चाहते हैं, सबके प्रिय होना, सबसे प्रिय होना. जो कि प्रकृति के नियमों के सर्वथा प्रतिकूल है. प्रकृति ने हमें बनाया ही एक-दूसरे के विपरीत है. जो चीज हमारे मूल संरचना में नहीं है, उसे कैसे बनाया जा सकता है. लेकिन कोशिश तो की जा सकती है, इसलिए सब कोशिश करते रहते हैं. अपने-अपने स्‍वभाव को छोड़कर दूसरे के अनुकूल होने की. जबकि इस प्रक्रिया में हम अपने से दूर होते जाते हैं. अपने से दूर होने का अर्थ है, अपने 'भीतर' के आनंद से दूर होते जाना.


अरे! भाई तुम्‍हारे भवन बहुत भव्‍य हैं, लेकिन मुझे नहीं भाते. तुम्‍हारे व्‍यंजन बहुत स्‍वादिष्‍ट हैं, लेकिन मुझे तो चूल्‍हे पर पकी चाय, रोटी भाती है. तो मैं खुद के आनंद को तुम्‍हारे लिए कैसे बदल सकता हूं.
 
लेकिन जीवन की यात्रा में, अपनी जड़ों, एक शहर से दूसरे शहर में भटकते हुए, अपने अवसरों को तलाशते हुए दूसरों की नजदीकी हासिल करने की ललक में लाखों लोग अपना स्‍वभाव दूसरों के लिए बदलने लगते हैं. ऐसा करते हुए मनुष्‍य यहां तक बदल जाता है कि उसे आईने में खुद को पहचानना मुश्किल हो जाता है.


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जब हम खुद को न पहचान पाएं, तो इससे बड़ा परिवर्तन कुछ नहीं हो सकता. यह परिवर्तन ऐसा है, जिससे जीवन की गुणवत्‍ता सबसे अधिक प्रभावित होती है. जिस चीज की गुणवत्‍ता प्रभावित होगी, उसका उपयोग करने वाले पर विपरीत असर पड़ेगा. तो इस तरह धीरे-धीरे जीवन की गुणवत्‍ता यानी उसकी कोमलता, स्‍नेह, दूसरों से वादा निबाह के करार सब खत्‍म होते जाते हैं.


ऐसा सब इसलिए हो रहा है, क्‍योंकि मुझे किसी से आगे निकलना है. किससे जो सफर में मुझसे पहले चला. अरे! जो पहले चला वह आगे रहेगा. उससे कैसे मुकाबला. और जो तुम्‍हारे साथ चल रहा है, उससे कैसा मुकाबला, क्‍योंकि वह अपनी गति से चल रहा है, और तुम अपनी प्रकृति से.


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दूसरों से सीखना गलत नहीं है. दूसरों की गलतियों से सबक लेना गलत नहीं है. अगर कुछ गलत है तो वह है, दूसरों के जैसे बनने की गलती करना. किसी को किसी के जैसा होने की जरूरत नहीं है. सबको अपनी प्रकृति के अनुरूप रहने की जरूरत है. इस संसार का सारा क्‍लेश इसी में है, कि मैं दूसरे के जैसा हो जाऊं.


हमेशा इस बात से दूर रहें कि कौन मुझसे आगे है और कौन पीछे. आगे-पीछे का कोई अर्थ नहीं है, जीवन का अर्थ बस इतना है कि मैं मेरे होने को कैसे सार्थक कर रहा हूं. बस इतना ही.


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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