संजीव कुमार दुबे


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स्वामी विवेकानंद का नाम जेहन में आते ही एक ऐसी ऊर्जा का संचरण होता है जो अक्षय होती है जिसका कभी नाश नहीं होता। उनके शब्द आज भी अनादिक और आनंदित वाणी के रूप में गूंजायमान होते हैं जिनमें सत्य के साथ साक्षात्कार करने की अनंत ऊर्जा समाहित है। विवेकानंद ने एक बार कहा था कि मैं जो देकर जा रहा हूं वह एक हजार साल की खुराक है। लेकिन जब आप उनके बारे में और उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि यह खुराक सिर्फ एक हजार साल का नहीं बल्कि कई युगों का है।
 
सिर्फ 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन लेकिन इसी जीवन में उन्होंने दुनिया भर में आध्यात्म का ऐसा परचम लहराया जो अगले कई सदियों तक अक्षुण्ण रहेगा। उन्होंने आत्मा और परमात्मा की प्रकृति को बहुत सीधे शब्दों में समझाने की कोशिश की और कहा - 'हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है। किसी के सामने सिर मत झुकाना तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।'
 
स्वामी जी द्वारा दिया गया विचार-दर्शन युग-युगीन और शाश्वत है। उनकी दिव्य वाणी अमरता का महान् संदेश प्रदान कर रही है। स्वामीजी के दर्शन की आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी विगत 20वीं सदी में रही थी। स्वामीजी ने भारतवासियों के मन में भारत की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का संचार किया। आजादी की लड़ाई में स्वामी विवेकानंद के योगदान को कोई कैसे भूल सकता है। वे विवेकानंद ही थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत वासियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया। समाज को स्वाभिमान, साहस और कर्म की प्रेरणा देने वाले स्वामी विवेकानंद के मंत्र से ही मूर्छित समाज में नई ऊर्जा का संचार हुआ। विवेकानंद का जीवन बताता है कि कैसे बिना किसी साधन और सुविधा के सिर्फ एक संकल्प के बल पर युवा समाज की देश की सोच बदल सकते हैं।
 
देश के जानेमाने संत और युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद का नाता माउंटआबू से भी रहा है। खेतड़ी महाराज के जब वह संपर्क में आए तब महाराज ने उन्हें माउंटआबू आने का भी निमंत्रण दिया था। स्वामी विवेकानन्द जी लंबा समय गुजरात के कई हिस्सों में व्यतीत करने के बाद माउंटआबू आए। यह वह समय था, जब माउंट आबू गुजरात का हिस्सा था। चंपा गुफा में उन्होंने चिंतन और ध्यान किया। यहीं पर उनकी मुलाकात खेतड़ी के महाराजा से हुई। माउंट आबू में नक्की झील के पास स्थित चंपा गुफा वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद 1891 में चार माह के लिए रहे। यहां की चंपा गुफा उन्हें अपने ध्यान और समाधि के लिए इतनी भाई कि वह काफी समय तक रुक गए। चंपा गुफा रघुनाथ मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है। यहां के लोगों को कहना है कि इस गुफा की ऐसी खासियत है कि यहां अद्भुत वातावरण व्यक्ति को सहज ही ध्यान लगाने पर विवश कर देता है और मन एकाग्र होने का लगता है। इस स्थान की अद्भुत वातावरण किसी भी भी व्यक्ति के लिए ध्यान-धारणा और समाधि में सहायक होता है।
 
12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की 151वीं जयंती है। 12 जनवरी को देश युवा दिवस के रूप में भी मनाता है। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से पहले चार महीने तक माउंटआबू के गुफा में रुके थे। उन्होंने चंपा गुफा में तीन महीने तक तपस्या की थी। चंपा गुफा को अब स्वामी विवेकानंद स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग हो रही है और नक्की झील के पास ही स्वामी विवेकानंद के नाम से एक बड़ा उद्यान भी है। माउंट आबू में नक्की झील के पास स्थित चंपा गुफा वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद 1891 में चार महीने के लिए रहे। शिकागो जाने से पूर्व स्वामी विवेकानंद माउंट आबू आए थे और यहीं से उन्होंने अपने एक मित्र गोविंद सहाय को पत्र लिखकर मन की पीड़ा व्यक्त की थी कि मेरे देश का युवा सोया हुआ है मैं उसे जगाना चाहता हूं।
 
इतिहासकारों के मुताबिक चंपा गुफा में स्वामी विवेकानंद के अलावा स्वामी रामानंद ने भी तपस्या की थी। अब प्रशासन ने चंपा गुफा सहित तमाम उन स्थानों का विकसित करने का फैसला किया है जहां स्वामी विवेकानंद रहे थे। अब तक चर्चाओं और पहचान से दूर माउंट आबू स्थित चंपा गुफा शीघ्र ही स्वामी विवेकानंद स्मारक के तौर पर पूरी दुनिया में पहचानी जाएगी। अपने ओज और संदेशों से स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को जिस उर्जा से भरा उस अनंत उर्जा को अब युवा यहां महसूस कर सकेंगे। स्वामी विवेकांनद के इसी स्मृति के रूप में जहां नक्की झील पर स्वामी विवेकानंद उद्यान है वहीं माउन्ट आबू में गुजरात पर्वतारोहण संस्थान को स्वामी विवेकानंद संस्थान के रूप में जाना जाता है। उनकी तपस्या स्थली आज उनके यादों के उन चिन्हों को समेटे हुए है जिन पहाडियों पर विचरण करते हुए उन्होने कभी तपस्या की थी।  
 
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1891 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामीजी के विचारों और शब्दों में आज भी वह ऊर्जा और ओज है जो युवाओं में नई प्रेरणा और शक्ति का संचार कर उन्हें कुछ कर गुजरने को प्रेरित करता है।