Air Ticket Price: भारत लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है और भारत के विकास में योगदान अलग-अलग सेक्टर की ओर से दिया जा रहा है. वहीं इसमें एविएशन सेक्टर की ओर से भी अपना योगदान दिया जा रहा है. पिछले कुछ सालों में भारत के एविएशन सेक्टर में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. वहीं फ्लाइट्स से यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में भी इजाफा देखने को मिला है. लेकिन एक चीज लोगों को काफी परेशानी कर रही है और वह है हवाई किराया. पिछले कुछ सालों से अगर तुलना करें तो वर्तमान में भारत में फ्लाइट्स का किराया काफी ज्यादा है. इसके इसके पीछे क्या वजह है? आइए जानते हैं इसके बारे में...


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एविएशन मार्केट
भारत का एयरलाइन बाजार एकाधिकार में बदलता जा रहा है, टिकट की कीमतें जो लंबे समय से सस्ती मानी जाती थीं अब बढ़ रही हैं. थॉमस कुक इंडिया और एसओटीसी ट्रैवल के मुताबिक भारत के सबसे व्यस्त मार्ग मुंबई-नई दिल्ली पर हवाई किराया 2022 की तुलना में जनवरी से अगस्त के दौरान 23% अधिक था. एयरपोर्ट्स काउंसिल इंटरनेशनल एशिया पैसिफिक के एक अध्ययन में पाया गया कि 2019 की तुलना में इस साल के पहले तीन महीनों में भारत में इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा हवाई किराया में 41% का इजाफा देखने को मिला है.


ज्यादा दाम
ऊंची कीमतें ऐसे समय में आई हैं जब दो घरेलू वाहक इंडिगो और एयर इंडिया, दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते विमानन बाजारों में से एक के बड़े हिस्से को नियंत्रित करने के लिए तैयार हैं, जबकि अधिकांश छोटे प्रतिद्वंद्वी प्रतिस्पर्धी बाजार में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दरअसल, 63% बाजार हिस्सेदारी के साथ भारत का सबसे बड़ा वाहक इंडिगो 500 एयरबस एसई के रिकॉर्ड ऑर्डर के साथ अधिक यात्री यातायात हासिल करने के लिए तैयार है. ये विमान 2030 से इसके बेड़े में शामिल होने वाले हैं.


विमान सौदा
वहीं देश की नंबर 2 एयरलाइन एयर इंडिया ने भी एक विशाल विमान सौदा किया. यह विस्तारा में शामिल होने की योजना के साथ बड़ा हो जाएगा. यह वर्तमान में टाटा समूह और सिंगापुर एयरलाइंस के सह-स्वामित्व में है. साथ ही एयर इंडिया एयरएशिया की स्थानीय इकाई का भी अधिग्रहण कर रही है और इसे एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ विलय कर रही है.


दबाव में कई कंपनियां
देखा जाए तो बड़ी एयरलाइंस और बड़ी हो रही हैं, जबकि छोटी कंपनियां पीछे हट रही हैं. इसमें गो फर्स्ट का ताजा उदाहरण शामिल है. गो फर्स्ट ने मई में उड़ान भरना बंद कर दिया था. वित्तीय संकट के कारण ये फैसला लेना पड़ा. कंपनी अभी भी पैसा जुटाने के लिए संघर्ष कर रही है और सैकड़ों पायलट इस दिवालिया एयरलाइन को छोड़ रहे हैं. इसके अलावा पिछले पांच वर्षों से घाटे की रिपोर्ट के बाद स्पाइसजेट भी दबाव में है.


एयरलाइन मार्केट
ऐसे में अब कुछ एयरलाइन्स के जरिए भारत के लगभग 75% बाजार पर कब्जा करने का अनुमान है. इससे अन्य खिलाड़ियों के लिए केवल 25% मार्केट बचता है, परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के पास कम विकल्प रह जाते हैं और इसलिए टिकटें महंगी हो जाती हैं. वहीं बढ़ते हवाई किराये से उन लोगों तक हवाई यात्रा पहुंचाने के लक्ष्य को खतरा हो सकता है जो आर्थिक रूप से देश की तेजी से बढ़ती विमानन सुविधाओं से वंचित हैं. दुनिया के ज्यादा आबादी वाले देश भारत में केवल एक हिस्सा ही फ्लाइट्स का खर्च उठा सकता है, जबकि अधिकांश लोग लंबी दूरी की यात्रा के लिए सस्ती ट्रेनों पर निर्भर हैं. पिछले साल 1.4 बिलियन आबादी में से केवल 8.8% ने घरेलू एयरलाइंस से उड़ान भरी.


सरकार का प्रयास
वहीं गर्मियों के दौरान कीमतों में उछाल के बाद सरकार ने एयरलाइंस से घरेलू हवाई किराए को उचित स्तर के भीतर रखने का आग्रह किया, खासकर उन मार्गों पर जो गो फर्स्ट के जरिए संचालित थे और "मांग और आपूर्ति असंतुलन" के कारण किराए में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया था. ऐसे में हवाई किराए में बढ़ोतरी संभावित रूप से व्यापक जनसांख्यिकीय के लिए हवाई यात्रा को और अधिक सुलभ बनाने के सरकार के प्रयास को प्रभावित कर सकती है. 2016 में मोदी सरकार ने टिकट की कीमतों में सब्सिडी देकर और छोटे शहरों और दूरदराज के गांवों में कम उपयोग वाले हवाई अड्डों को जोड़कर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया. इसका लक्ष्य 1000 नए मार्गों को जोड़ना है, जबकि 469 अब तक चालू हो चुके हैं. लेकिन महंगी उड़ानें इस प्रयास में बाधा डाल सकती हैं.


महंगी टिकट
महंगी टिकट उपभोक्ताओं के लिए खराब हैं लेकिन महंगी टिकट एयरलाइन्स को महामारी के बाद उनके बंपर मुनाफे को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं, जो मांग में उछाल से बढ़ा है. वे भारत के कठिन बाजार के लिए महत्वपूर्ण हैं, जहां लागत को कवर करने के लिए किराया बहुत कम होने के कारण कई एयरलाइन कंपनियां ध्वस्त हो गए हैं. इसमें किंगफिशर एयरलाइंस और जेट एयरवेज का नाम शामिल हैं.


श्रम और आपूर्ति श्रृंखला की लागत
इसके साथ ही कीमतें बढ़ाने वाला एक अन्य कारक श्रम और आपूर्ति श्रृंखला लागत का महंगा होना है. एयरलाइंस कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए कटौती कर रही हैं क्योंकि वे महामारी के बाद पुनर्निर्माण कर रहे हैं. साथ ही खानपान, रखरखाव आपूर्तिकर्ताओं और ग्राउंड हैंडलिंग जैसे अप्रत्यक्ष कार्यों में उच्च श्रम लागत और कटौती को भी सहन कर रहे हैं. इससे भी टिकटों के दाम में इजाफा हो रहा है.


वैश्विक आपूर्ति शृंखला में रुकावट
यूक्रेन में युद्ध के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इससे उड़ानें प्रभावित हुई और परिणामस्वरूप विमानों की कमी हो गई है. स्पेयर पार्ट्स की कमी और इंजन की समस्या के कारण इंडिगो और गो फर्स्ट से लेकर डॉयचे लुफ्थांसा एजी तक की एयरलाइनों के विमान खड़े हो गए हैं. इसके अलावा महामारी के दौरान सैकड़ों-हजारों श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद श्रमिकों की कमी के कारण उद्योग पीछे रह गया है.


ईंधन के दाम
इसके अलावा विमानन ईंधन की ऊंची कीमतें भी कम लागत वाली यात्रा के लिए जोखिम पैदा करती हैं. जेट ईंधन की खपत बढ़ने से और इसके दाम बढ़ा देने से भी किराया बढ़ जाएगा. पिछले दो महीनों में वैश्विक तेल की कीमतें 15% से अधिक चढ़ गई हैं. वहीं त्योहारी सीजन से पहले तेल कंपन‍ियों की तरफ से 1 स‍ितंबर से एटीएफ (ATF) की कीमत में 13911 रुपये क‍िलोलीटर तक की बढ़ोतरी की गई है. इससे पहले अगस्‍त महीने में भी कीमत में 7728 रुपये प्रत‍ि क‍िलोलीटर तक का इजाफा किया गया था. इससे भी हवाई किराया महंगा होगा.