नई दिल्ली: Bandhan Bank Success Story: कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती...आज आपको बता रहे हैं ऐसी ही शख्सियत के बारे में जिसने इस पंक्ति को चरितार्थ किया है. एक दूध बेचने वाला इंसान बड़े बैंक का मालिक बन जाए तो उन्हें सलाम करने लाज़िमी है. आज हम आपको बता रहे हैं बंधन बैंक (Bandhan Bank) के मालिक चंद्रशेखर घोष (Chandrashekhar Ghosh, Bandhan Bank CEO) की जो कभी घर खर्च के लिए दूध बेचने का काम करते थे.


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चंद्रशेखर के पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे तब बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उनके भीतर महिलाओं के मदद की भावना आई और उन्होंने बंधन बैंक की नींव रखी. एक साधारण सी सोच की वैल्यू आज 30 हजार करोड़ से भी अधिक हो चुकी है. बंधन बैंक (Bandhan Bank) के बारे में आप सभी जानते होंगे लेकिन आज जानिए इसके सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर चंद्रशेखर घोष (chandrashekhar ghosh) के बारे में.


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कभी दूध बेचा करते थे चंद्रशेखर घोष


चंद्रशेखर घोष एक साधारण सी मिठाई बेचने वाले के बेटे थे. त्रिपुरा के अगरतला में जन्मे चंद्रशेखर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से वो बचपन में दूध बेचने का काम करते थे. उन्होंने आश्रम के खाने से पेटा पाला और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई पूरी की. उनके पिता मिठाई की छोटी सी दुकान चलाते थे और चाहते थे कि वह खूब पढ़ें, लेकिन एक साधारण सी मिठाई की दुकान से घर चलाने के साथ-साथ बच्चे को अच्छी और उच्च शिक्षा देना मुमकिन नहीं था. ऐसे में चंद्रशेखर घोष ने अपनी मेहनत के बलबूते बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर ढाका यूनिवर्सिटी से सांख्यिकी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की.


एक सोच ने बदल दी जिंदगी


चंद्रशेखर घोष ने परिवार की मदद के लिए हर महीने सिर्फ 5000 रुपये पगार पर काम किया. लेकिन घोष ने अपनी किस्मत तो खुद तय किया था. एक साधारण जिंदगी के लिए नहीं बने थे घोष. साल 1990 के अंत में बांग्लादेश में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली विलेज वेलफेयर सोसाएटी नाम के एक एनजीओ ने उन्हें प्रोग्राम हेड के रूप में नियुक्त किया.
वहां उन्होंने देखा कि गांव की महिलाएं छोटी सी आर्थिक सहायता से भी काम शुरू कर के अपना जीवन स्तर बेहतर कर रही हैं. यहां उनके भीतर का अरबपति पहली बार जगा था. उन्होंने सोचा कि क्यों ना ऐसी महिलाओं को आर्थिक सहायता दी जाए. इससे बहुत सारे छोटे-छोटे उद्योगों की शुरुआत होगी और महिलाओं के साथ-साथ देश की भी तरक्की होगी.


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साहूकार लेता था 700 फीसदी ब्याज!


चंद्रशेखर घोष ने देखा कि एक सब्जी वाला एक साहूकार से रोज 500 रुपये उधार लेता था. उन पैसों से वह सब्जी लाता था और दिन भर उसे बेचने के बाद शाम को साहूकार को 500 रुपये का मूल उसके ब्याज के साथ चुका देता था. चंद्रशेखर घोष ने यहां पूरी कैल्कुलेशन की और समझा कि वह सब्जीवाला साहूकार को सालाना 700 फीसदी की दर से ब्याज दे रहा है. यही घटना ने बंधन बैंक बनने की वजह बना.


महिला सशक्तिकरण के लिए लोन देता है बंधन बैंक


2001 में चंद्रशेखर घोष कुछ पैसे की व्यवस्था कर एक माइक्रोफाइनेंस संस्थान बंधन बैंक खोल लिया. इसके बाद, वह छोटे लेवल पर अपना बिजनस शुरू करने वाली महिलाओं को लोन देने लगे. धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा और 23 अगस्त 2015 को बंधन फाइनेंशियल सर्विसेज की शुरुआत की गई. इसके बाद एक माइक्रो संस्था बंधन बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से पूर्ण वाणिज्यिक बैंक के रूप में काम करने की स्वीकृति भी मिल गई. आज चंद्रशेखबर घोष पश्चिमी बंगाल की महिलाओं को खुद के दम पर 2-2 लाख रुपये का लोन देकर देश के 21 प्रतिष्ठित बैंकों से भी आगे निकलने वाले बंधन बैंक के मालिक बन गए हैं. 


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आज 30 हजार करोड़ का हो गया है बंधन बैंक


वर्तमान में पूरे देश में बंधन बैंक की 2000 से भी अधिक शाखाएं हैं और इसकी वैल्यू 30 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गई है. इसमें सिर्फ महिलाओं की मेंबरशिप है और रिकवरी रेट 100 फीसदी है. 2011 में विश्वबैंक की एक सहायक इकाई इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन ने बंधन बैंक में 135 करोड़ रुपये का निवेश किया था. बहुत सी महिलाओं को बंधन बैंक से काफी मदद मिली.


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