Chinese Economy: दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी मुश्किल में है. कोरोना और लॉकडाउन के सख्त नियमों के बाद से ही चीन की हालत खराब हो चुकी है. आर्थिक मोर्चे पर चीन को लगातार झटके लग रहे हैं.बेरोजगारी चरम पर है तो वहीं रियल एस्टेट कंपनियां दिवालिया हो रही है. बैंकिंग सेक्टर भी बुरे दौर से गुजर रहा है. वहीं अब मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई (Manufacturing PMI) के आंकड़ों ने चीन की मुश्किल बढ़ा दी है. दिसंबर महीने में चीन की मैन्यूफैक्चरिंग एक्टिविटीज में गिरावट दर्ज की गई है. चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई दिसंबर 2023 में गिरकर 49 पर पहुंच गया. अब तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी कबूल लिया है कि देश की हालात ठीक नहीं है.  


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शी जिनपिंग का कबूलनामा


खस्ताहाल इकोनॉमी को संभालने में फेल हो रही शी जिनपिंग सरकार ने आखिरकार मान ही लिया कि चीन की आर्थिक सेहत ठीक नहीं है. नए साल पर अपने संबोधन  में शी जिनपिंग ने माना की चीन में कंपनियां संघर्ष कर रही है, उन्हें बुरे दौर से गुजरना पड़ रहा है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं और रोजगार नहीं मिल रहे हैं. सबसे खास बात ये है कि जो चीन अब तक अपनी जानकारी को बाहर नहीं आने देता था, पहली बार चीनी राष्ट्रपति ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि देश की आर्थिक सेहत आईसीयू में है. 


बुरे दौर से गुजर रहा चीन 
शी जिनपिंग ने माना की चीन की अर्थव्यवस्था जूझ रही है. इकॉनमी कमजोर मांग, बढ़ती बेरोजगारी और खस्ताहाल रियल एस्टेट संकट के चलते चीन की अर्थव्यवस्था इस दौर में पहुंच गई है कि विदेशी कंपनियां किनारा करने लगी है. विदेशी निवेशक चीन से अपना पैसा निकाल रहे हैं. अपने संबोधन में शी जिनपिंग ने कहा कि चीनी सरकार इकोनॉमिक रिकवरी के लिए काम कर रही है.  


क्यों संकट में घिरा चीन 


कोरोना और लॉकडाउन के सख्त नियम के चलते चीन की इकोनॉमी बुरे दौर में पहुंच गई. चीन डिफ्लेशन की स्थिति में पहुंच गया, लोगों की खरीदारी की क्षमता गिरने लगी है. घर बन तो गए, लेकिन बिक नहीं रहे है. खाली पड़े फ्लैटों ने रियल एस्टेट कंपनियों को दिवालिया कर दिया. चीन की इकोनॉमी में रिल एस्टेट की हिस्सेदारी एक तिहाई की है, लेकिन ये संकट मंदी की चपेट में घिर गया है. रियल एस्टेट संकट ने चीन के बैंकिंग सेक्टर को भी अपनी चपेट में ले लिया है. चीन की स्थानीय सरकारों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है. वहीं सरकारी दखल के चलते विदेशी निवेश चीन का साथ छोड़ रहे हैं. चीन के बाजारों से विदेशी निवेशक पैसा निकाल रहे हैं. ऐपल, माइक्रॉन जैसी विदेशी कंपनियां चीन से बोरिया बिस्तर समेटने लगी हैं. वहीं अमेरिका से दुश्मनी चीन को भारी पड़ने लगा है. अमेरिकी कंपनियां चीन छोड़ने की तैयारी कर रही है.