नई दिल्ली: भारत बीते वर्ष यानी 2018 में उतार-चढ़ाव के बावजूद दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहा. भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ा. हालांकि, साल के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध की आशंका के बीच कई बार अर्थव्यवस्था ऊपर नीचे हुई. भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के आंकड़ों से लगता है. 2018-19 की 30 जून को समाप्त पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही. साल के पहले तीन महीनों जनवरी से मार्च के दौरान यह 7.7 प्रतिशत रही थी. 


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हालांकि, जीडीपी की वृद्धि दर 30 सितंबर को समाप्त अगली तिमाही में घटकर 7.1 प्रतिशत रह गई. फिच रेटिंग ने भारतीय अर्थव्यवस्था की चालू वित्त वर्ष की वृद्धि दर के अनुमान को 7.8 से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि सरकार 2019 में वृद्धि को रफ्तार देने के लिए सुधारों की रफ्तार तेज करेगी. कुमार ने कहा कि निवेश रफ्तार पकड़ रहा है और 2019 के कैलेंडर वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहेगी. 


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विशेषज्ञों की हालांकि, कुछ अलग राय है. उनका कहना है कि वृद्धि दर घटने की वजह से सरकार अगले आम चुनाव के मद्देनजर खर्च बढ़ाएगी जिससे राजकोषीय दबाव बढ़ेगा. वैश्विक कारकों की बात की जाए तो कच्चे तेल के दाम, डॉलर की मजबूती, अमेरिका चीन व्यापार युद्ध की वजह से वैश्विक वृद्धि में सुस्ती तथा अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा एक साल में चौथी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी आदि से देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है. 


बीते साल बैंकिंग क्षेत्र लगातार चर्चा में रहा. साल की शुरुआत में 14 फरवरी को पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में 11,400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया. हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी ने बैंक की मुंबई शाखा से धोखाधड़ी से गॉरंटी पत्र हासिल कर विदेशों में अन्य भारतीय बैंकों से कर्ज लिया. यह घोटाला राजनीतिक तौर पर भी काफी हंगामेदार रहा. भगोड़े आरोपियों को विदेश से वापस लाने में सरकार अधिक प्रगति नहीं कर पाई है. 


साल के अंतिम महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच विवाद चर्चा का विषय रहा. इसके चलते गवर्नर उर्जित पटेल को इस्तीफा देना पड़ा. पहली बार सरकार ने रिजर्व बैंक कानून की धारा 7 के तहत अपने विशेष अधिकारों के इस्तेमाल की चेतावनी भी दी. साथ ही साल के दौरान देश की प्रमुख बुनियादी ढांचा वित्तपोषण कंपनी आईएलएंडएफएस द्वारा बैंकों को भुगतान में चूक भी चर्चा के केंद्र में रही. आईएलएंडएफएस की भुगतान चूक को लेहमन ब्रदर्स द्वारा की गई चूक जैसे मामले के रूप में भी देखा गया. लेहमन ब्रदर्स के मामले से ही 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत हुई थी. 


भारत के लिए इस साल एक अच्छी खबर विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रैंकिंग रही. इस सूची में भारत 23 स्थान की छलांग लगाकार 77वें स्थान पर आ गया. 
माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की बात की जाए तो अक्टूबर में इसका संग्रहण एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया लेकिन नवंबर में यह फिर से घटकर 97,637 करोड़ रुपये रह गया. हालांकि, यह साल के औसत मासिक संग्रह से अधिक है. 


मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के अनुमान से अधिक रही. केंद्रीय बैंक ने मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति का लक्ष्य चार प्रतिशत रखा है. अप्रैल-अक्टूबर के दौरान औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत रही, जो इससे पिछले साल की समान अवधि में 2.5 प्रतिशत थी. 


नोटबंदी, जीएसटी के अलावा संशोधित जीडीपी आंकड़े भी विवाद का विषय रहा. जीडीपी आंकड़ों में संशोधन से पूर्ववर्ती कांग्रेस संप्रग सरकार के कार्यकाल के वृद्धि दर के आंकड़े कम हो गए. इसको लेकर भी काफी हंगामा रहा. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 2004-05 के बजाय 2011-12 के आधार वर्ष का इस्तेमाल करते हुए पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के जीडीपी के आंकड़ों को कम कर दिया. 


पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी की पुरानी श्रृंखला के आंकड़े जारी करने में नीति आयोग के शामिल होने पर सवाल उठाया. साथ ही उन्होंने किसी तरह के संदेह को दूर करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा इसकी समीक्षा कराए जाने को भी कहा है. 


(इनपुट-भाषा)