PACL Chit Fund Refund: पर्ल्स के निवेशकों के लिए बड़ी खुशखबरी है. सरकार ने अब बड़ी जानकारी दी है. सरकार के आंकड़ों के अनुसार लोढ़ा कमिटी के पास अब तक Pearl Agro Corporation Limited, PACL और उसकी सहयोगी कंपनियों में निवेश करने वाले 1.5 करोड़ निवेशकों के रिफंड क्लेम आ चुके हैं. इतना ही नहीं, जस्टिस आरएम लोढ़ा कमिटी ने PACL LTD की अचल संपत्तियों को बेचकर अब तक 878.20 करोड़ रुपये जुटा लिए हैं. दरअसल, कमिटी की तरफ से इन पैसों से 60,000 कराेड़ रुपये के पोंजी स्कैम केस के पीड़ित निवेशकों का पैसा लौटाया जाना है.


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कमिटी ने दी जानकारी 


लोढ़ा कमिटी ने कहा है कि सीबीआई ने उन्हें पीजीएफ और पीएसीएल कंपनी के स्वामित्व वाले 42,950 प्रॉपर्टी के कागजात समेत रॉल्स रॉयस, पोर्श केयेन, बेंटली और बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज जैसी लग्जरी गाड़ियां भी सौंपीं थीं. वहीं, दूसरी तरफ सरकार के आंकड़ों के अनुसार लोढ़ा कमिटी के पास अब तक Pearl Agro Corporation Limited, PACL और उसकी सहयोगी कंपनियों में निवेश करने वाले 1.5 करोड़ निवेशकों के रिफंड क्लेम आ चुके हैं. यानी सरकार के पास क्लेम करने वालों की लंबी लिस्ट पहुंच चुकी है. आपको बता दें कि क्लेम करने की लास्ट डेट 31 अगस्त है.


2016 में बनाई गई थी कमिटी


गौरतलब है कि लोढ़ा कमिटी का गठन 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने किया था, जिसने पीएसीएल और उससे जुड़ी संस्थाओं की संपत्तियों को बेचकर 878.20 करोड़ रुपये रिकवर कर लिए हैं. कमिटी की तरफ से की गई सूली में PACL की 113 संपत्तियों की नीलामी से मिले 86.20 करोड़ रुपये भी शामिल हैं. कमिटी ने ऑस्ट्रेलिया स्थित पर्ल्स इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की कंपनियां कंपनियों से रिकवरी की कार्रवाई की है. कमिटी ने कंपनी ने 369.20 करोड़ रुपये की रिकवरी की है. इसके लिए सेबी की ओर से फेडरल कोर्ट में क्लेम दाखिल किया गया था. जिसके बाद ये कार्रवाई की गई.


सरकार कर रही है वसूली 


इसके अलावा कमिटी ने PACL और उसकी सहयोगी कंपनियों के खातों को फ्रीज कर 308.04 करोड़ रुपये जुटाए थे. सरकार ने कंपनी के फिक्स्ड डिपोजिट से भी लगभग 98.45 करोड़ रुपये जुटाए. कंपनी के 75 लग्जरी वहनों को बेचकर 15.62 करोड़ रुपये जुटाए हैं. वहीं, कंपनी के संपत्ति से जुड़े छह दस्तावेजों से 69 लाख रुपये जुटाए गए हैं. यानी सरकार एक एक जगह से पैसे जूता रही है.


जानिए क्या है PACL स्कैम? 


गौरतलब है कि पीएसीएल को पर्ल ग्रुप के नाम से भी जानते हैं. इस ग्रुप ने आम लोगों से खेती और रियल एस्टेट जैसे कारोबार के जरिये लगभग 60,000 करोड़ रुपये जुटाए थे, जो 18 वर्षों के दौरान गैरकानूनी तरीके से जुटाया गया था. लेकिन लौटाने के समय कंपनी पीछे हट गई. उसके बाद इन्वेस्टर्स को पैसे लौटने के लिए सेबी ने दखल दिया था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था.