नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपना देखा था कि भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनाए जाए. इसके लिए उन्होंने नोटबंदी भी की, जिससे सिस्टम में कैश का फ्लो कम हो और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को बढ़ावा मिले. लेकिन, अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है. इस बात का खुलासा आरबीआई की एक रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017-18 की दूसरी तिमाही आते-आते एक बार फिर करंसी को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी हैं. लोगों की अब भी पहली पसंद कैश को अपने पास रखना है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2017-18 की दूसरी तिमाही में करंसी होल्डिंग यानी कैश रखने 11.1 फीसदी का इजाफा हुआ है. वहीं, नोटबंदी के बाद साल 2016-17 की तीसरी तिमाही में करंसी होल्डिंग 21.7 फीसदी के निगेटिव रेट पर पहुंच गई थी.


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क्या कहती है रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार साल 2017-18 की पहली तिमाही में करंसी होल्डिंग का पैटर्न नोटबंदी के पहले करंसी होल्डिंग का जो लेवल था, उसी लेवल पर आ गया. साल 2017-18 के दूसरे क्वार्टर में जीडीपी में बैंक डिपॉजिट की हिस्सेदारी 5.9 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है. इसी तरह पेंशन फंड की हिस्सेदारी भी बढ़कर 0.6 फीसदी और म्युचुअल फंड की हिस्सेदारी 1.4 फीसदी पर पहुंच गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के बाद कर्ज लेने की डिमांड में आई कमी भी अब वापस पटरी पर लौट आई है. साल 2017-18 की दूसरी तिमाही में ग्रॉस फाइनेंशियल लॉयबिलिटी 5.3 फीसदी पर पहुंच गई है. जो कि साल 2016-17 की तीसरी तिमाही में 4.8 फीसदी के निगेटिव स्तर पर पहुंची थी.


बैंक अब भी पहली पसंद
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीयों के लिए निवेश की पहली पसंद अब भी बैंक है. कमर्शियल बैंक और कोऑपरेटिव बैंकों की कुल हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है. इसके बाद लाइफ इन्श्योरेंस फंड, म्युचुअल फंड, प्रोविडंट फंड, करंसी में भारतीय ज्यादा पैसा लगा रहे हैं. 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने देश में 500 और 1000 रुपए के नोट बैन किए थे. सरकार का दावा है कि इसके जरिए सिस्टम में ब्लैकमनी पर लगाम लगेगी.


नेट फाइनेंशियल एसेट हुई पॉजिटिव
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड की नेट फाइनेंशियल एसेट 7.3 फीसदी के निगेटिव लेवल पर पहुंची थी. जो कि साल 2016-17 के चौथे क्वार्टर से पॉजिटिव जोन में आनी शुरू हो गई. ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2017-18 की दूसरी तिमाही में यह जीडीपी के 8.3 फीसदी के पॉजिटिव लेवल पर आ गई है.