Buch-led SEBI, its Friends & Enemies: एक तरफ कांग्रेस आए दिन सेबी चेयरपर्सन के जुड़े नए नए खुलासे कर रही है तो दूसरी तरफ ZEE मीडिया के स्पेशल इन्वेस्टिगेशन में कुछ ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो माधबी पुरी बुच (Madhabi Puri Buch) की लीडरशिप में सेबी की साख पर और गहरे सवाल खड़े करती है. जी मीडिया के एक खास सीरीज में हमने सेबी की नाक के नीचे कुछ ऐसे कारनामों की पड़ताल की है, जो इस ओर इशारा करते हैं कि माधवी पुरी बुच के राज में फैसले तय करने के दो आधार हैं. कौन दोस्त है और कौन दुश्मन? आज हम आपको क्वांट म्युचुअल फंड, सेबी और एक फिक्सर के रिश्तों का संदिग्ध त्रिकोण के बारे में बता रहे हैं.


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सेबी में चल रहा है किस 'फिक्सर' का बोलबाला?


निवेश की दुनिया में फंड मैनेजर का चुनाव एक अहम कड़ी होती है. कहा भी जाता है कि फंड मैनेजर ठीक तो निवेश सटीक होता है. मसलन क्वांट ग्रुप के फाउंडर और CIO संदीप टंडन, जो 3 दशकों से इस फील्ड के माहिर खिलाड़ी के तौर पर जाने जाते हैं. कोई भी निवेशक फंड मैनेजर को चुनने के लिए इसी तरह के बैकग्राउंड पर भरोसा करेगा, लेकिन जो आरोप क्वांट म्युचुअल फंड के सीईओ पर लगे उसके बाद एक आम निवेशक भी किसी फंड मैनेजर की ईमानदारी पर विश्वास करने से पहले सौ बार सोचेगा. इस मामले में क्वांट पर आरोपों के बाद जांच की कार्रवाई किसी और ने नहीं, बल्कि खुद मार्केट रेगुलेटर सेबी ने की, लेकिन कहानी में आगे एक बड़ा ट्विस्ट है. आज इस सीरीज में पावर से पापों पर पर्दे की स्याह हकीकत की झलक आपको मिलने जा रही है.


क्या संदीप टंडन को मिल रहा था सेबी से संरक्षण?


कोई भी निवेशक ये नहीं चाहेगा कि वो ऐसे फंड मैनेजर के भरोसे अपनी कमाई छोड़ दे जो इनसाइडर ट्रेडिंग, अनाप-शनाप स्टॉक सलेक्शन, या रिटेल निवेशकों के पैसों को किसी बड़े कॉर्पोरेट घराने के शेयरों में लगाने जैसे गंभीर आरोपों का सामना कर रहा हो. वो फंड मैनेजर.. जिसके फंड चुनने की आदत भी अजीब हो... यानी उन शेयरों पर दांव लगाना जिन पर बड़े-बड़े निवेशक हाथ तक लगाने से कतरा रहे हों. इसे सच कहें या संयोग लेकिन क्वांट म्यूचुअल फंड के संदीप टंडन की कहानी कुछ कुछ ऐसी ही नजर आती है. लेकिन, क्या संदीप टंडन को खुद सेबी से ही संरक्षण मिल रहा था?


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माधबी पुरी बुच की लीडरशिप पर सवाल


जी हां, Zee Media एक-एक करके उन बातों का खुलासा करने जा रहा है, जिसमें भारत के शीर्ष वित्तीय संस्थान SEBI की चीफ माधबी पुरी बुच की लीडरशिप, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के सवालों में घिर जाती है. क्योंकि, हम ये मानते हैं कि SEBI का सबसे अहम काम ईमानदार और पारदर्शी पूंजी बाजार सुनिश्चित करना है, जिसमें खासकर छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा हो. इसलिए, आइए मामले को गहराई से समझते हैं.


कौन है हैदराबाद की महिला, संदीप टंडन से क्या कनेक्शन?


दरअसल, हाल ही में SEBI के हाथ Quant Mutual Fund की जांच आई. जांच के दायरे में थे Insider Trading और फ्रंट-रनिंग जैसे गंभीर आरोप. खास बात ये कि नया स्टैंडर्ड सेट करने के लिए सेबी ने मुंबई के काला घोड़ा कोर्ट से इतिहास में पहली बार जांच और जब्ती के लिए वॉरंट भी हासिल किया. इस वॉरंट को क्वांट म्यूचुअल फंड के ऑफिस, इसके CEO और CIO संदीप टंडन और हैदराबाद की एक महिला पर छापे डालने के लिए हासिल किया गया. शुरुआती जांच में कई कंप्लायंस में गड़बड़ियां मिलीं, जिसमें निवेशकों के अकाउंट में KYC से जुड़ी और निवेश के फैसले लेने जैसे मामले शामिल थे.



फंड के CEO पर मिसकंडक्ट और हैदराबाद की महिला का फेवर करने का आरोप लगा. बताया जाता है कि ये महिला संदीप टंडन की दोस्त थी और महिला की हैदराबाद पुलिस, पॉलिटीशियंस और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे कनेक्शन भी हैं. यही नहीं महिला ने अपने बेटे को फंड में नौकरी भी दिलवाई ताकि जानकारी आसानी से साझा की जा सके और बदले में कुछ मिल सके. CEO ने यह नौकरी सभी नियमों और गोपनीयता के नियमों को ताकपर रखकर दी जो सेबी के नियमों का साफ उल्लंघन है. मामला इतना गंभीर था कि 21 जून की जांच और जब्ती की कार्रवाई एक साथ ही CEO और महिला के घरों पर हुई. महिला के घर से अधिकारियों को कई दस्तावेज और अनअकाउंटेड एसेट भी मिले. यही नहीं महिला के भी इनसाइड ट्रेडिंग में शामिल होने के सबूत मिले और करीब 10 से 15 शेयर भी, जो क्वांट म्युचुअल फंड के पास थे. ये ट्रेड CEO की तरफ से ऑर्डर किए जाने से पहले किए गए थे. यानी ऐसा लगता है कि ये फ्रॉड पूरी प्लानिंग के तहत किए गए.


'संइया भए कोतवाल तो डर काहे का'


ये तो रहे वो बिंदु जिनके इर्द गिर्द ये पूरी जांच चल रही थी. जाहिर है इतने बड़े मामले और खुद सेबी की ओर से जांच करने से मामले में तेजी से सुनवाई होनी चाहिए थी, लेकिन अब सुनिए जांच में पावर की आंच की कहानी..जो संइया भए कोतवाल तो डर काहे का... कि कहावत को चरितार्थ करती है. इस जांच में पता चला कि SEBI ने हैदराबाद की इस महिला के बैंकर्स को गुप्त संदेश भेजा था, जिसमें जांच से संबंधित चीजें मांगी गई थी. यानी संकेत ये मिलता है कि SEBI और बैंक अधिकारियों के बीच मिलीभगत हो सकती है, जिससे महिला और फंड के CEO को आने वाले कदमों की जानकारी लीक की जा रही थी.


क्या फिक्सर के प्रभाव में इस पूरे मुद्दे को दबा दिया गया?


सवाल ये उठता है कि क्या एक बड़े इंडस्ट्रियल हाउस का हिस्सा रहे मुंबई के एक फिक्सर के प्रभाव में इस पूरे मुद्दे को दबा दिया गया? ये सवाल इसलिए क्योंकि आरोप है कि फंड के CEO ने Capri Global के एक बड़े शेयरहोल्डर राजेश शर्मा से मदद मांगी, जो दरअसल एक फिक्सर है. आरोप ये भी हैं कि फंड हाउस ने फिक्सर और कई लिस्टिड कंपनियों के प्रोमोटर्स के साथ मिलकर कई संदिग्ध निवेश किए. इन कंपनियों में Lancer Containers, Om Infra, Primo Chemicals, Best AgriLife, Equinox India, और IRB Infra शामिल है.


जांच करने वाली सेबी की कार्रवाई ही संदेह के घेरे में


यानी ये कहानी एक ऐसे मामले में गड़बड़ी और संदेह से जुड़ी है, जिसमें लाखों निवेशकों की जिंदगी भर की कमाई दांव पर लगी है. लेकिन, कमाल ये है कि जांच करने वाली सेबी की कार्रवाई ही संदेह के घेरे में है. सवाल है कि सेबी क्यों खुद मामले में ढुलमुल हो गया. आगे की सच्चाई सुनकर शायद आपके होश उड़ जाएं. SEBI के अंदरूनी सूत्र संकेत दे रहे हैं कि सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच इस जांच में दखलअंदाजी कर रहीं थीं और उनके दखल के कारण नियामक कार्रवाई में देरी हुई.


कथित तौर पर सेबी चेयरपर्सन का ये हस्तक्षेप दिल्ली, एक बड़े उद्योगपति और उसके 'फिक्सर' के कहने पर हुआ है. सूत्र संकेत देते हैं कि SEBI चेयरपर्सन के दखल से जुड़े पर्याप्त सबूत भी हैं, जिससे ये साबित हो सकता है कि इस मामले में आपसी फायदे के लिए सौदेबाजी हुई है. इसका नतीजा ये है कि अब ऐसा लगता है कि फंड के सीईओ को सेबी और राजनीतिक/औद्योगिक घराने से संरक्षण मिल रहा है, जो उसे इस बड़े मामले में कार्रवाई से बचने में मदद कर रहा है.


ऐसे में जी मीडिया सवाल उठा रहा है


- क्या वाकई सेबी चेयरपर्नस माधवी पुरी बुच मामले में आरोपी फंड हाउस को बचाने का प्रयास कर रही हैं?


- सेबी चेयरपर्सन ने क्या व्यक्तिगत लाभ के लिए मामले में कथित हस्तक्षेप किया?


- इतने गंभीर आरोपों के बाद भी सेबी चेयरपर्सन की ओर से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया?


- क्या माधवी पुरी बुच चुनिंदा और पक्षपाती नजर से मामलों में कार्रवाई करती हैं?


- आखिर क्यों इन्वेस्टर्स खासकर छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए क्वांट फंड के CEO पर बैन नहीं लगाया गया?


- आखिर कौन है जो गंभीर आरोपों से घिरे एक फंड मैनेजर को बचाने की कोशिश कर रहा है?


- आखिर क्यों इतने गंभीर आरोपों की जांच वाला हाई प्रोफाइल मामला अचानक दबा दिया गया?


- देशभर के 10 लाख से ज्यादा निवेशकों की कमाई से जुड़े मामले की जांच क्यों अटकी?


- 1 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश के बड़े मामले में जांच में हस्तक्षेप कौन और क्यों कर रहा है?


- फंड हाउस के AUM के 100 करोड़ से 1 लाख करोड़ होने की क्या जांच होनी चाहिए?


जब तक नहीं मिलेगा जवाब, सेबी की साख पर सवालिया निशान


इन सवालों के जवाब जबतक नहीं मिल जाते, तब तक सेबी की साख पर सवालिया निशान लगा रहेगा. निवेशक ये पूछते रहेंगे कि क्या सेबी का सिस्टम बिचौलियों और उद्योगपतियों से प्रभावित है? जांच के आरोप में घिरे एक म्युचुअल फंड, सेबी और एक फिक्सर की सांठगांठ के त्रिकोण का राज खुलना बेहद जरूरी है, तभी एक आम निवेशक देश की सबसे प्रतिष्ठित मार्केट रेगुलेटर पर भरोसा कर पाएगा. आज की तारीख में सेबी चीफ माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच कई सारे आरोपों का सामना कर रहे हैं. जाहिर है इससे सेबी की साख पर कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. हालांकि दोनों ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया है. लेकिन, चेयरपर्सन रहते हुए इन संगीन आरोपों के साए में अब सेबी के अपने सीनियर कर्मचारी भी बुच के अन-प्रोफेशनल बिहेवियर को उजागर कर रहे हैं.


अभी कई सवाल और खुलासे बाकी हैं


‘Buch-led SEBI, its Friends & Enemies’ सीरीज में ज़ी मीडिया के पत्रकार सेबी की नाक के नीचे चल रहे क्वांट म्यूचुअल फंड और फिक्सर के बीच के ग्रे एरिया को उजागर करते रहेंगे. ये सब हिंडनबर्ग और अदानी की कहानी का एक हिस्सा है. अभी कई सवाल और खुलासे बाकी हैं...इसलिए इस सीरीज को फॉलो करें.


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