Amul Success Story:  जब भी दूध की बात होती है, सबसे पहले लोगों की जुंबा पर नाम आता है अमूल (Amul). आज रोजाना 260 लाख लीटर से अधिक दूध बेचने वाला 78 साल 247 लीटर दूध के साथ शुरू किया गया था. गुजरात के छोटे से गांव आणंद से इसकी शुरुआत हुई. दूध बेचने के लिए किसानों को बिचौलियों की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा था. साल 1940 में विदेशी डेयरी कंपनी पॉलसन डेयरी (Polson Dairy) की तूती बोली थी. जिन किसानों को अपना दूध बेचना होना था उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था. जब विकल्प न हो तो मनमानी शुरू हो जाती है. बिचौलियों ने किसानों से मनमानी शुरू कर दी. डेयरी सेक्टर में पॉलसन बड़ा नाम बन चुकी थी. उसका घमंड उसके माथे पर चढ़ चुका था. घमंड इतना की वो अनाप-शनाप कीमतों पर किसानों से दूध खरीदती. किसानों को कौड़‍ियां का भाव देकर खुद मोटा मुनाफा कमा रही थी. 


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अमूल ने तोड़ा डेयरी कंपनी का घमंड  


कंपनी और बिचौलियों से किसान तंग आ चुके थे. अब विद्रोह के अलावा कोई दूसरा विक्लप बचा नहीं था. जो दूध बेच भर रहा था, अब वहीं विरोध का प्रतीक बन गया. परेशान होकर किसानों ने साल 1946 में सहकारी आंदोलन की शुरुआत कर दी. किसानों ने समाधान के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया. उन्होंने किसानों को सलाह दी कि बिचौलियों से बचने के लिए वो खुद की सहकारी समिति बनाए. उस समिति के पास दूध खरीदने से लेकर प्रोसेसिंग और बेचने तक का नियंत्रण रहेगा, जिससे बिचौलिए उनका मुनाफा नहीं खा सकेंगे.  


'अटर्ली-बटर्ली' अमूल का स्वाद बढ़ता चला गया  


किसानों को उनकी ये सलाह पसंद आ गई, उन्होंने खुद की सहकारी समिति बनाई. शुरुआत में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड बनाया. उन्होंने 247 लीटर दुध के साथ दो गांवों में शुरूआत की. साल 1948 में गांवों की संख्या दो से 432 तक पहुंच गई. इस सहकारी समिति ने न केवल किसानों को बल दिया, बल्कि डेयरी कंपनी के दबदबे को कम कर दिया.  आज अमूल लोगों को जीभ पर चढ़ चुका है.  आज देश के अधिकांश घरों में आपको अमूल का कोई न कोई प्रोडक्ट मिल जाएगा. किसानों  ने पॉलसन को दूध बेचने के बजाय सीधे लोगों को दूध बेचना शुरू किया. उसने अपने प्रोडक्‍टों की मार्केटिंग इसी ब्रांड नेम के साथ करती थी.  


कैसे पड़ा अमूल नाम 


अमूल संस्‍कृत के शब्‍द अमूल्‍य से निकला है. सहकारी संस्था के संस्‍थापक नेताओं में से एक मगनभाई पटेल ने प्रोडक्ट का नाम अमूल रखा. साल 1955 तक कैरा यूनियन के पास ही अमूल ब्रांड नेम रहा. बाद में 1973 में जब गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्‍क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) बना तो ये नाम उसे ट्रांसफर कर दिया गया. अब यही सहकारी संस्था अमूल का पूरा संचालन देखती है. 


अमूल जो देश के घर-घर तक पहुंचा 


अमूल आज बड़ा नाम बन चुका है. गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्‍क मार्केटिंग फेडरेशन देश की सबसे बड़ी FMCG कंपनी बन चुकी है. आज 36 लाख डेयरी किसान इससे जुड़े हैं. दुनिया की ये छठी सबसे बड़ी डेयरी कंपनी बन चुकी है. साल 1970 में इसने श्‍वेत क्रांति में अहम भूमिका निभाई. इस क्रांति की अगुवाई डॉ वर्गीज कुरियन ने की थी, जिन्होंने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्‍ध उत्‍पादक देश बना दिया.  आज भारत में 100 करोड़ लोग रोज अमूल को कोई न कोई प्रोडक्ट जरूर इस्तेमाल करते हैं.  


अमूल गर्ल और अमूल के विज्ञापनों ने छोड़ी छाप  


अटर्ली बटर्ली डिलीशियस...टीवी से लेकर अखबार और सड़कों पर लगे होर्डिग. पोनी टेल (चोटी) और पोल्का डॉट वाली फ्रॉक पहने एक खास लड़की को आपने जरूर नोटिस किया होगा. अमूल के विज्ञापनों के केंद्र में रहने वाली अमूल गर्ल हर किसी के जहन में है. साल 1966 में कंपनी ने अमूल गर्ल को लॉन्च किया. अमूल गर्ल इस ब्रांड की आइडेंटिटी बन चुकी है. वहीं अमूल के विज्ञापन समय के साथ बदलते रहे. आज भी 'अटली बटली डिलीशियस अमूल', 'अमूल दूध पीता है इंडिया' जैसे विज्ञापन लोगों की जुंबा पर छाए हुए है. 


अंबानी-अडानी से ज्यादा रोजगार देती है अमूल


जानकर हैरानी होगी कि रोजगार के मामले में अमूल ने देश की दिग्गज कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है. रोजगार देने के मामले में रिलायंस, अडानी, अंबानी, टाटा ग्रुप अमूल से पीछे है. अडानी की कंपनी में जहां 2 लाख कर्मचारी है तो वहीं रिलायंस के 3 से 4 लाख कर्मचारी है. वहीं टाटा के कुल कर्मचारियों की संख्या 8 लाख के करीब है, जबकि अमूल में 15 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है. इतना ही नहीं 35 लाख से अधिक किसान जुड़े अमूल के साथ जुड़े हैं.  रूरल इकॉनॉमी में अमूल 30 फीसदी का योगदान करती है. 


अमूल के 10 सालों का कारोबार 


साल 1994 -95 में अमूल का टर्नओवर 1114 करोड़ रुपये था, वो साल अब 72000 करोड़ को पार कर चुका है. 


साल 2013-14 ₹18,100 करोड़
साल 2014-15 ₹20,700 करोड़ 
साल 2015-16 ₹22,900 करोड़ 
साल 2016-17 ₹27,000 करोड़ 
साल 2017-18 ₹29,200 करोड़
साल 2018-19 ₹33,100 करोड़
साल 2019-20 ₹38500 करोड़
साल 2020-21 ₹39,200 करोड़
साल 2021-22 ₹55,000 करोड़ 
साल 2022-23 ₹72,000 करोड़