Election: क्या सरकार लोकसभा चुनाव से पहले RBI से तीन लाख करोड़ रुपये निकालना चाहती थी? पूर्व डिप्टी गवर्नर ने दिया है बड़ा बयान
RBI News: साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. हालांकि इस चुनाव से पहले ही अब साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से जुड़ी एक अहम जानकारी सामने आई है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने इस बात को सामने रखा है. आइए जानते हैं इसके बारे में...
RBI Update: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि वर्ष 2018 में सरकार में बैठे कुछ लोगों ने चुनाव से पहले ‘लोकलुभावन’ खर्चों के लिए केंद्रीय बैंक से दो-तीन लाख करोड़ रुपये हासिल करने के लिए उस पर ‘धावा’ बोलने की कोशिश की थी जिसका पुरजोर विरोध हुआ था. आचार्य ने अपनी किताब में लिखा है कि 2019 के आम चुनावों से पहले सरकार अपने लोकलुभावन खर्चों की भरपाई के लिए आरबीआई से यह बड़ी रकम निकालने की कोशिश में थी. लेकिन आरबीआई इसके पक्ष में नहीं था, जिसकी वजह से सरकार के साथ उसके मतभेद बढ़ गए थे.
आरबीआई अपडेट
उस समय सरकार ने आरबीआई को निर्देश देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम की धारा सात का इस्तेमाल करने की भी चेतावनी दी थी. आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर आचार्य ने यह मामला सबसे पहले 26 अक्टूबर, 2018 को एक व्याख्यान में उठाया था. अब यह प्रकरण उनकी किताब ‘क्वेस्ट फॉर रिस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी इन इंडिया’ की नई प्रस्तावना में भी प्रमुखता से उजागर हुआ है. इसमें सरकार की कोशिश को ‘केंद्र द्वारा राजकोषीय घाटे का पिछले दरवाजे से मौद्रीकरण’ बताया गया है.
आरबीआई
आचार्य ने वर्ष 2020 में पहली बार प्रकाशित अपनी किताब के नए संस्करण की प्रस्तावना में कहा, ‘नौकरशाही और सरकार में बैठे रचनात्मक मस्तिष्क’ वाले कुछ लोगों ने पिछली सरकारों के कार्यकाल में आरबीआई के पास जमा हुई बड़ी रकम को वर्तमान सरकार के खाते में स्थानांतरित करने की एक योजना तैयार की थी.’ दरअसल, आरबीआई हर साल अपना लाभ सरकार को पूरी तरह देने के बजाय उसका एक हिस्सा अलग रख देता है. यही हिस्सा कई वर्षों में एक बड़ी राशि में तब्दील हो चुका था..
नोटबंदी
आचार्य ने कहा कि 2016 की नोटबंदी से पहले के तीन वर्षों में केंद्रीय बैंक ने सरकार को रिकॉर्ड लाभ अंतरण किया था. लेकिन नोटबंदी के साल में नोटों की छपाई पर खर्च बढ़ने से केंद्र को अधिशेष हस्तांतरण कम हो गया था. ऐसी स्थिति में सरकार ने 2019 के चुनावों से पहले अपनी मांगों को बढ़ा दिया था. आचार्य ने कहा कि आरबीआई से अधिक लाभांश निकालने की कोशिश एक तरह से राजकोषीय घाटे का ‘पिछले दरवाजे से मौद्रीकरण’ था. असल में अपने विनिवेश लक्ष्य से चूकने के बाद सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ गया था..
लोकलुभावन खर्च
उन्होंने सरकार की मंशा पर तंज कसते हुए कहा, ‘जब केंद्रीय बैंक के बही-खाते पर धावा बोला जा सकता है और बढ़ते राजकोषीय घाटे को मौद्रीकृत किया जा सकता है तो फिर चुनावी वर्ष में लोकलुभावन खर्चों में कटौती क्यों की जाए?’ आचार्य ने मौद्रिक नीति, वित्तीय बाजार, वित्तीय स्थिरता और अनुसंधान के प्रभारी डिप्टी गवर्नर के रूप में तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले ही जून, 2019 में पद छोड़ दिया था.
आरबीआई अधिनियम की धारा सात
उन्होंने आरबीआई को सरकार की तरफ से निर्देश देने के लिए पहले कभी भी उपयोग में नहीं लाई गई आरबीआई अधिनियम की धारा सात को उल्लिखित किए जाने के विवाद का भी जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि पूर्व गवर्नर बिमल जालान के मातहत बनी समिति की अनुशंसा के बाद सरकार ने इस ‘विचार’ के अधिकांश असली योजनाकारों को दरकिनार कर दिया.’ (इनपुट: भाषा)