Railway Rules: रात में क्यों तेज चलती हैं ट्रेनें, ट्रैक पर क्यों पड़े होते हैं पत्थर? रेलवे की ये बातें कर देंगी हैरान
Stones on Railway Track: भारत का दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो 68600 रूट किलोमीटर तक फैला हुआ है. पहले पायदान पर अमेरिका है, जिसका रेल नेटवर्क 2,50,000 किलोमीटर का है. इसके बाद फेहरिस्त में चीन, रूस और भारत आते हैं.
Why Trains Runs Faster in Night: भारतीय रेलवे (Indian Railways) देश में यातायात की लाइफलाइन (Lifeline) है. हर दिन लाखों-करोड़ों लोगों को भारतीय रेलवे अपने गंतव्य तक पहुंचाता है. भारत का दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो 68600 रूट किलोमीटर तक फैला हुआ है. पहले पायदान पर अमेरिका है, जिसका रेल नेटवर्क 2,50,000 किलोमीटर का है. इसके बाद फेहरिस्त में चीन, रूस और भारत आते हैं.
भारत में अंग्रेजों ने ट्रेन की शुरुआत की थी. भारतीय रेलवे का इतिहास बहुत पुराना है और इससे जुड़ी बातें भी बेहद दिलचस्प हैं. आपने भी कभी न कभी ट्रेन में सफर किया होगा. क्या कभी आपने नोटिस किया है कि रात में ट्रेन की रफ्तार बढ़ जाती है. दिन की तुलना में रात में ट्रेनें तेज चलती हैं. लेकिन इसकी वजह क्या है, आइए आपको बताते हैं.
दरअसल इसके पीछे कई वजह हैं. रात के वक्त न तो ट्रैक पर कोई मेंटेनेंस का काम होता है और न ही इंसान या जानवर की आवाजाही. इसलिए रात में ट्रेनें ज्यादा तेज स्पीड से दौड़ती हैं. रात के अंधेरे का भी ट्रेन को फायदा मिलता है. लोको पायलट को दूर से ही सिग्नल नजर आ जाता है. उसको दूर से ही मालूम चल जाता है कि ट्रेन में ब्रेक मारना है या नहीं. ट्रेन की स्पीड भी इससे कम नहीं होती. इसलिए भी रात में ऐसा लगता है कि ट्रेन तेज रफ्तार से चल रही है.
कैसे बिछाई जाती है पटरी
रेल की जो पटरियां होती हैं, उसके नीचे प्लेट होती हैं, जो कंक्रीट से बनी होती हैं. इनको स्लीपर कहा जाता है. इनके नीचे गिट्टी होती है, जिसको आम भाषा में बलास्ट कहते हैं. इसमें विभिन्न तरह की दो लेयर में मिट्टी होती है.सबसे नीचे नॉर्मल भूमि होती है. जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर रेल ट्रैक होता है. जबकि मेट्रो या फिर बुलेट ट्रेन के जो ट्रैक होते हैं, उसमें गिट्टी नहीं बिछाई जाती. ट्रैक पूरी तरह कंक्रीट के होते हैं.
क्यों ट्रैक के आसपास क्यों होते हैं पत्थर?
रेलवे ट्रैक के आसपास आपने पत्थर पड़े देखे होंगे. इसके पीछे कई वजह होती हैं. रेलवे ट्रैक पर जो नुकीले पत्थर बिछे होते हैं, वे एक-दूसरे को मजबूती से पकड़ लेते हैं. जब कोई ट्रैन पटरी से होकर जाती है तो ये उसके वजन को आसानी से झेल जाते हैं. एक ट्रेन का वजन करीब 10 लाख टन के आसपास होता है. इतने वजन को अकेले पटरी नहीं संभाल सकती. ट्रैक के अलावा स्लीपर और पत्थर भी मदद करते हैं.
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