नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बैंकों के महाविलय का ऐलान किया. अब देश में 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए. 6 छोटे-छोटे बैंकों को 4 बड़े बैंक में विलय कर दिया गया. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय किया गया था. पहले शासनकाल में ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सहयोगी बैंकों का मर्जर हुआ था. जानकारी के लिए बता दें कि 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या घटकर अब 12 रह गई. ऐसे में अब यह जानना जरूरी है कि आखिरकार बैंकों के मर्जर से क्या होगा और ऐसा कब-कब किया गया है.


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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा बैंकों का आकार बढ़ने से कर्ज देने की लागत कम होगी और सरकारी बैंकों की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. मर्जर से आकार बढ़ता है और बैंकों के पास कर्ज देने के लिए ज्यादा पैसे होंगे. इसके अलावा रिस्क लेने की क्षमता भी बढ़ेगी. क्योंकि, छोटे बैंकों पर अगर NPA का बोझ बढ़ता है तो वह नुकसान में चला जाता है. धीरे-धीरे कामकाज चौपट हो जाता है. लेकिन, आकार और पूंजी ज्यादा होने से यह नहीं होगा. अगर बैंक के कुछ कस्टमर्स डिफॉल्टर भी हो जाते हैं तब भी बैंक के कामकाज पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. आइये बैंकिंग के इतिहास में मर्जर के बारे में विस्तार से समझते हैं.



अभी SBI देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है. पंजाब नेशनल बैंक में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय किया जा रहा है. विलय के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक हो जाएगा, जिसका बिजनेस 17.95 लाख करोड़ रुपये होगा.


केनरा बैंक में सिंडिकेट बैंक का मर्जर किया जा रहा है. इस बैंक का बिजनेस 15.20 लाख करोड़ का होगा. यह देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक होगा. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का मर्जर होगा. मर्जर के बाद यह देश का पांचवा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक होगा. इसका कुल कारोबार 14.59 लाख करोड़ का होगा.


इंडियन बैंक का इलाहाबाद बैंक में मर्जर होगा. यह देश का सातवां सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा, जिसकी पूंजी 8.08 लाख करोड़ रुपये होगी. वित्तमंत्री ने कहा कि बैंक ऑफ इंडिया और सेंट्रल बैंक का किसी का मर्जर नहीं किया जाएगा. बैंक ऑफ इंडिया का बिजनेस 9.3 लाख करोड़ और सेंट्रल बैंक का बिजनेस 4.68 लाख करोड़ का होगा. कुल मिलाकर इन बैंकों का कारोबार 55.81 लाख करोड़ रुपये का होगा. 


बैंकिंग के इतिहास में सबसे बड़ा फैसला जुलाई 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लिया था. उन्होंने 14 निजी बैंको का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. उससे पहले 1960 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 8 स्टेट -एसोसिएटेड बैंक का कंट्रोल दिया गया था. बता दें, स्टेट बैंक की नींव 1806 में रखी गई थी, जब इसका नाम बैंक ऑफ कलकत्ता था. 1921 में तीन बैंकों का विलय कर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का गठन किया गया था. स्वतंत्रता के बाद 1955 में इसका नाम बदल कर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कर दिया गया.


जैसा कि बताया 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था. 1980 में 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था. सबसे पहले दो राष्ट्रीयकृत बैंकों का मर्जर पहली बार 1980 के दशक में हुआ था जब पंजाब नेशनल बैंक में न्यू बैंक ऑफ इंडिया को मर्ज कर दिया गया था.


कौन-कौन होंगे 12 नये बैंक


1. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (52.05 लाख करोड़)


2. पंजाब नेशनल बैंक में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक के मर्जर के बाद कुल पूंजी 17.94 लाख करोड़ होगी.


3. बैंक ऑफ बड़ौदा (विजया बैंक और देना बैंक का विलय जो पहले किया जा चुका है) 16.13 लाख करोड़.


4. कैनरा बैंक + सिंडीकेट बैंक- 15.20 लाख करोड़.


5. यूनियन बैंक +  आंध्रा बैंक + कॉरपोरेशन बैंक-  14.59 लाख करोड़.


6.  बैंक ऑफ इंडिया- 9.03 लाख करोड़.


7. इंडियन बैंक + इलाहाबाद बैंक - 8.08 लाख करोड़.


8. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया- 4.68 लाख करोड़.


9. इंडियन ओवरसीज बैंक- 3.75 लाख करोड़.


10.  यूको (UCO) बैंक- 3.17 लाख करोड़.


11. बैंक ऑफ महाराष्ट्र- 2.34 लाख करोड़.


12. पंजाब एंड सिंध बैंक - 1.71 लाख करोड़.