Minimum Percent To Qualify Exam: देशभर के राज्‍यों में 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे का इंतजार हो रहा है. कुछ राज्यों ने रिजल्टस जारी भी कर दिए हैं. देश के ज्यादातर राज्यों में एग्जाम में स्टूडेंट्स को क्वालिफाई होने के लिए 33 फीसदी नंबर की मिनिमम रिक्वायरमेंट होती है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम 33 फीसदी अंकों का फार्मूला कहां से और कौन लेकर आया था और इसके पीछे वजह क्या थी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कैसे और क्यों जरूरी है 33 फीसदी अंक?
हमारा देश में लंबे समय तक ब्रिटिश हुकुमत का राज था. उस समय अंग्रेजों के गुलाम भारत में नियम-कायदे भी उन्हीं के चलते हैं. इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि इसी दौरान ब्रिटिशों ने 1858 में हिंदुस्तान में पहली मैट्रिक परीक्षा का आयोजन किया था, जिसे पास करने के लिए अंग्रेजी अफसरों ने 33 फीसदी पासिंग मार्क निर्धारित किए थे. 


भारतीयों के लिए निर्धारित थे 33 फीसदी उत्तीर्ण अंक 
आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय ब्रिटेन में मिनिमम क्वालिफाइंग मार्क्स 65 फीसदी थे. यानी कि 33 फीसदी नंबर लाने वाले स्टूडेंट्स ही एग्जाम में पास होता था. वहीं, भारतीय छात्रों के लिए इतने कम पासिंग मार्क निर्धारित करने के पीछे का कारण यह माना जाता था कि ब्रिटिश अफसरों के मुताबिक भारतीय कम बुद्धिमान हैं. हालांकि, अब भारत की छवि विश्व स्तर पर बहुत बेहतर हुई है, हमारा देश किसी भी मामले में बाकी देशों से पीछे नहीं है, लेकिन बहुत से नियम-कायदे अब भी वही है जो अंग्रेजों ने गुलाम भारत के लोगों के लिए बनाए थे.  


दुनिया भर में फॉलो किया जाता है अलग-अलग ग्रेडिंग सिस्टम
वहीं, दुनिया के बाकी देशों में पास होने के लिए अलग-अलग ग्रेडिंग सिस्टम को फॉलो किया जाता है. जानकारी के मुताबिक जर्मन ग्रेडिंग सिस्टम ग्रेड प्वाइंट एवरेज (GPA) पर आधारित है. यहां 1 से 6 या 5 प्वाइंट ग्रेडिंग सिस्टम है. चीन में 5 स्केल या 4 स्केल ग्रेडिंग सिस्टम को फॉलो किया जाता है. फाइव स्केल ग्रेडिंग सिस्टम में 0 से 59 फीसदी तक अंक पाने वालों को  F (असफल) ग्रेड मिलता है. फोर स्केल ग्रेडिंग सिस्टम में ग्रेड D का मतलब है छात्र असफल हो गए हैं. शून्‍य से 59 फीसदी के बीच अंक पाने वाले छात्रों को ग्रेड D मिलता है.