पिता के 50 साल पुराने सपने को पूरा करने के लिए दी UPSC परीक्षा, पहले IPS फिर बनीं IAS
IAS Mudra Gairola: आज हम आपको एक ऐसी आईएएस ऑफिसर के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपने पिता के 50 साल पुराने सपने को पूरा करने के लिए डॉक्टरी छोड़ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा देने का निर्णय लिया. वह पहले IPS और फिर IAS ऑफिसर बनीं.
IAS Mudra Gairola: यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. इस परीक्षा में हर साल लाखों उम्मीदवार आईएएस-आईपीएस बनने के उद्देश्य से शामिल होते हैं. लेकिन कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं, जो अपने माता-पिता का सपना पूरा करने के लिए इस परीक्षा में सफल होकर ऑफिसर बनना चाहते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही उम्मीदवार आईएएस मुद्रा गैरोला के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए देश की सबसे कठिन परीक्षा में शामिल होने का निर्णय लिया.
पिता के 50 साल पुराने सपने को पूरा करने के लिए चुना UPSC
आईएएस मुद्रा गैरोला की कहानी उनके पिता के 50 साल पुराने सपने को पूरा करने की प्रेरक मिसाल है. उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग कस्बे की रहने वाली मुद्रा ने अपने पिता के अधूरे ख्वाब को साकार करने के लिए अपने मेडिकल करियर को त्यागकर सिविल सेवा की तैयारी शुरू की.
UPSC के लिए बीच में छोड़ी डॉक्टरी
मुद्रा बचपन से ही पढ़ाई में उत्कृष्ट थीं. उन्होंने 10वीं कक्षा में 96% और 12वीं में 97% अंक प्राप्त किए. मुंबई के एक मेडिकल कॉलेज से बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने दिल्ली में मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी (MDS) की पढ़ाई शुरू की. हालांकि, अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने MDS की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और यूपीएससी की तैयारी में जुट गईं.
पहले IPS फिर बनीं IAS
मुद्रा ने 2018 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी, लेकिन इंटरव्यू राउंड तक पहुंचने के बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद 2019 और 2020 में भी उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा. लगातार तीन असफलताओं के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और साल 2021 में अपने चौथे प्रयास में उन्होंने 165वीं रैंक हासिल की और आईपीएस अधिकारी बनीं. हालांकि, अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने 2022 में फिर से परीक्षा दी और इस बार 53वीं रैंक के साथ आईएएस अधिकारी बनने में सफल रहीं.
प्रेरणा और समर्पण
दरअसल, मुद्रा के पिता ने 1973 में यूपीएससी परीक्षा दी थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए थे. अपने पिता के इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए मुद्रा ने अपने मेडिकल करियर को त्यागकर सिविल सेवा में जाने का निर्णय लिया. उनकी यह यात्रा दृढ़ संकल्प, समर्पण और परिवार के समर्थन की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है. मुद्रा गैरोला की सफलता की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करने के लिए कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ते हैं.