Garud Commando Force: भारत की कुछ कमांडो फोर्सेस ऐसी हैं जो अपने खतरनाक ऑपरेशन्स के लिए जानी जाती हैं. आतंकवादी गतिविधियों और इमरजेंसी से निपटने में सक्षम इन फोर्सेस के नाम से ही दुश्मन खौफ खाते हैं. नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमांडो की तरह गरुण कमांडो भी बेहद खूंखार होते हैं. गरुड़ कमांडो फोर्स के सामने दुश्मन नजर उठाने से भी डरता है और इनके आने की आहट मात्र से मैदान छोड़ भाग खड़े होते हैं.


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गरुड़ कमांडो फोर्स देश की उन एलीट स्पेशल फोर्सेज में से एक है, जिनके कारण भारत के दुश्मनों को भा अपनी हद में रहना पड़ता है. इस फोर्स में चयनित होना बहुत कठिन है. इसकी सबसे लंबी और थका देने वाली ट्रेनिंग होती है. 1,000 दिन से ज्यादा के प्र​शिक्षण को पूरा करके ही गरुड़ कमांडो बनने का गौरव हासिल किया जा सकता है. 


इंडियन एयरफोर्स का हिस्सा हैं गरुड़ कमांडो 
गरुड़ कमांडो भारतीय वायुसेना का सबसे घातक ह​थियार है. इस स्पेशल फोर्स का गठन साल 2004 में किया गया था, जिसका नाम विष्णु जी के वाहन गरुड़ पक्षी के नाम पर रखा गया है. 2001 में आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के दो एयर बेसों पर अटैक किया. इसके बाद वायुसेना को सुरक्षा और काउंटर ऑपरेशन के लिए अपनी स्पेशल कमांडो फोर्स  की जरूरत महसूस की गई. इसके बाद गरूड़ कमांडो फोर्स बनी, जिसे पैरा एसएफ और नेवी मार्कोस की तर्ज पर तैयार किया गया.


गरुड़ कमांडो की जिम्मेदारी देश के एयरबेस और युद्ध की ​स्थिति स्पेशल टास्क पर काम करने की होती है, जो अत्यधिक हथियारों से लैस होते हैं. इन्हें खास तौर पर दुश्मन के हवाई क्षेत्र में घुसनेने, दुश्मन के रडार और अन्य उपकरणों को ध्वस्त करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाता है.


मु​श्किल ट्रेनिंग
गरुड़ कमांडो एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म का जिम्मा उठाने के लिए ट्रेन किए जाते हैं. गरुड़ कमांडो को करीब 2.5 की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार किया जाता है, जो कई चरणों में होती है. पहले चरण में गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर पहले चयनित युवाओं की 72 हफ्तों की बेसिक ट्रेनिंग होती है. इसके बाद उन्हें नेवी स्कूल और फिर आर्मी के आउंटर इन्सर्जेन्सी एंड जंगल वॉरफेयर स्कूल भेजा जाता है. इस तरह हर तरह की ​स्थिति और युद्ध कौशल का प्र​शिक्षण गरुड़ कंमाडो को मिलता है.


ट्रेनिंग में गरुड़ कमाडों को उफनती नदियों और आग से गुजरना पड़ता है. बिना सहारे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है और भारी बोझ लेकर कई किलोमीटर दौड़ना पड़ा है. इतना ही नहीं घने जंगलों में बिना किसी संसाधनों के रात भी गुजारनी पड़ती है. इस टफ ट्रेनिंग क बाद तैयार गरुड़ कमांडो की फिटनेस और मुस्तैदी ऐसी होती है कि उन्हें मौत का दूसरा नाम कहा जाता है.


कौन करता है नेतृत्व?
मार्कोस और पैरा एसएफ में अलग-अलग सैन्य इकाइयों से सैनिकों को बुलाया जाता है, लेकिन गरुड़ कमांडो का चयन एयरफोर्स ही करती है और इसमें उसके ही फौजी होते हैं. हर एयरफोर्स स्टेशन पर 60-70 कमांडो की टीम तैनात की जाती है, जिसका नेतृत्व स्क्वाड्रन लीडर या फ्लाइट लेफ्टिनेंट रैंक के ऑफिसर करते हैं.