Difference Between MBA and PGDM: एमबीए (मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) और पीजीडीएम (पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट) भारत में मास लेवल पर चलाए जाने वाले दो मैनेजरियल कोर्स हैं. दोनों डिग्रियां की मार्केट में डिमांड भी है और इनमें एक सफल करियर की ओर ले जाने की क्षमता है. हालांकि, हर साल ज्यादातर स्टूडेंट्स एमबीए और पीजीडीएम के बीच सेलेक्शन करते समय खुद को कन्फ्यूज पाते हैं. हालांकि दोनों क्वालिफिकेशन स्टूडेंट्स को प्रोफेशनल वर्ल्ड में सफल होने के लिए जरूरी स्किल देने के लिए डिजाइन की गई हैं, लेकिन उनके बीच का अंतर अलग-अलग करियर पथों को लीड कर सकता है. आइए, इन दोनों में क्या अंतर है और कौन सा आपके लिए सही है, समझते हैं.


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MBA या PGDM: कौन सा सही है?


कई छात्रों को MBA या PGDM में से किसी एक को चुनने में कंफ्यूजन होता है. लेकिन, ये याद रखना जरूरी है कि कौन सा कोर्स बेहतर है, ये पूरी तरह से स्टूडेंट की करियर की जरूरतों और एंबीशन पर निर्भर करता है. हालांकि, दोनों कोर्स की पढ़ाई का तरीका, कोर्स स्ट्रक्चर, करिकुलम और एडमिशन के मानदंड दोनों कोर्स के लिए लगभग एक जैसे ही हैं, हालांकि, एमबीए और पीजीडीएम के बीच फैसला लेते समय स्टूडेंट्स को कुछ प्रमुख अंतरों पर विचार करना चाहिए. इसके बारे में हमने FOSTIIMA बिजनेस स्कूल, दिल्ली के चेयरमैन अनिल सोमानी से बात की.


इंडस्ट्री रिलेवेंट


MBA और PGDM के बीच मुख्य अंतरों में से एक है कि MBA ज्यादा थ्योरिटिकल अप्रोच को अपनाता है. हालांकि, इससे बिजनेस मैनेजमेंट प्रिंसिपल की व्यापक समझ सुनिश्चित होती है, लेकिन यह हमेशा लेटेस्ट इंडस्ट्री ट्रेंड्स या विकसित बिजनेस प्रैक्टिस को रिफ्लेक्ट नहीं कर सकता है. हालांकि, PGDM प्रोग्राम का करिकुलम मुख्य रूप से इंडस्ट्री के मुताबिक होने के लिए जाना जाता है. इसका उद्देश्य स्टूडेंट्स को रीयल वर्ल्ड के स्किल और नॉलेज प्रदान करना है जिन्हें वे प्रोफेशनल वर्ल्ड दुनिया में इस्तेमाल कर सकते हैं. यह सुनिश्चित करता है कि छात्र बेसिक बातें अच्छी तरह से सीख रहे हैं और उन्हें आजकल के कामकाज के तरीकों के बारे में भी जानकारी मिल रही है. इससे वे जल्दी से किसी भी काम के लिए तैयार हो जाते हैं.


प्लेसमेंट के मौके


एमबीए प्रोग्राम छात्रों को ऐसे नौकरी सर्च करने में मदद करता है जिनके लिए बिजनेस की थ्योरीज और मॉडल्स की गहरी समझ की जरूरत होती है. इसके बाद, छात्र जनरल मैनेजमेंट, फाइनेंस या मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में काम शुरू कर सकते हैं, जहां स्ट्रैटेजिक प्लानिंग और एनालिसिस बहुत जरूरी होते हैं. हालांकि, MBA के करिकुलम में एक तय स्ट्रक्चर होता है, जिसकी वजह से स्टूडेंट्स को तेजी से बदलते बिजनेस माहौल में ढलने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है. MBA कोर्स करवाने वाले संस्थानों में कैरियर सर्विस डिपार्टमेंट होते हैं, जो स्टूडेंट्स को जॉब प्लेसमेंट, इंटर्नशिप और नेटवर्किंग के मौके ढूंढने में मदद करते हैं.


दूसरी ओर, PGDM की प्रैक्टिकल अप्रोच एंप्लॉयर को ज्यादा पसंद आती है. जिससे आपको जॉब मिलने की संभावना बढ़ जाती है. आज के बदलते जॉब मार्केट में, एंप्लॉयर प्रैक्टिकल स्किल्स और इंडस्ट्री एक्सपीरियंस को ज्यादा महत्व देते हैं. इसलिए, PGDM कोर्स करवाने वाले संस्थान स्टूडेंट्स को कम्युनिकेशन, रिज्यूमे राइटिंग, एप्टीट्यूड टेस्ट और मॉक इंटरव्यू जैसे फील्ड में भी ट्रेनिंग देते हैं. चाहे वह कंसल्टिंग, ऑपरेशंस या एंटरप्रेन्योरशिप का करियर हो, PGDM करने वाले लोग तेजी से बदलते बिजनेस माहौल की मांगों को पूरा करने के लिए ज्यादा तैयार होते हैं.


एंटरप्रेन्योरशिप अपॉर्चुनिटीज


MBA प्रोग्राम में अब एंटरप्रेन्योरशिप के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए कोर्स और रिसोर्सेज ऑफर करते हैं, जिनमें बिजनेस प्लान कॉम्पिटिशन, इंक्यूबेटर प्रोग्राम और एंटरप्रेन्योरशिप सेंटर शामिल हैं. हालांकि, MBA मुख्य रूप से एंटरप्रेन्योरशिप पर केंद्रित नहीं होता, लेकिन कई MBA ग्रेजुएट्स अपने बिजनेस स्किल्स और नेटवर्क का इस्तेमाल करके सफल बिजनेस शुरू करते हैं. दूसरी ओर, PGDM प्रोग्राम छात्रों में एंटरप्रेन्योरशिप की मानसिकता को बढ़ावा देते हैं, इनोवेशन, क्रिएटिविटी और रिस्क लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कई PGDM संस्थानों में विशेष एंटरप्रेन्योरशिप सेल और इंक्यूबेशन सेंटर होते हैं जो उभरते एंटरप्रेन्योर के बिजनेस आइडियाज को डेवलप करने और स्टार्टअप शुरू करने में मदद करते हैं.


MBA और PGDM दोनों ही सफल करियर की राह खोल सकते हैं, लेकिन आखिरकार सेलेक्शन स्टूडेंट के करियर गोल, सीखने के तरीके और कॉलेज की पसंद पर निर्भर करता है. जो स्टूडेंट एक ऐसी एजुकेशन चाहते हो जो आज की जरूरतों के हिसाब से हो, अत्याधुनिक हो और फ्लेक्सिबल होने के साथ इंडस्ट्री से जुड़ी हो, तो PGDM एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है.


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