Success Story: 10 सालों की मेहनत के बाद मिली कामयाबी, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली अमिता बनीं सीए
CA Success Story: दिल्ली के स्लम एरिया में रहने वाली अमिता प्रजापति आईसीएआई सीए परीक्षा में सफलता हासिल की है. यहां तक पहुंचने का उनका 10 सालों का सफर बेहद कठिन और मेहनत भरा रहा. वह लाखों सीए एस्पिरेंट्स की प्रेरणा बन गईं.
Amita Prajapati CA Success Story: इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया ने कुछ समय पहले ही सीए फाइनल एग्जाम (ICAI CA 2024) के रिजल्ट जारी किए थे. इसमें कई युवाओं ने सफलता हासिल कर अपना सपना पूरा किया. इन्हीं में से एक हैं दिल्ली की अमिता प्रजापति, जिन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि अगर अगर कुछ करने का ठान लिया है और हर हाल में हौसला बुलंद है तो कोई भी परेशानी आपकी रास्ता रोकने में सफल नहीं हो सकती है. अमिता ने इतनी बड़ी कामयाबी पाने से पहले ने कई मुश्किलों का सामना किया होगा. पढ़िए उनकी सफलता की कहानी...
आसान नहीं रहा होगा सफर
अमिता प्रजापति के परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. ज्यादातर लोग गरीबी में पैदा होते हैं और उसी में पूरा जीवन बिता देते हैं, लेकिन कुछ लोग जी-तोड़ मेहनत करके गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता बना ही लेते हैं, अमिता ने भी तो यही किया. राष्ट्रीय राजधानी के झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में रहने वाली अमिता के पिता चाय बेचते हैं.
सोशल मीडिया पर एक चाय बेचने वाले का अपनी बेटी के चार्टर्ड अकाउंटेंसी की परीक्षा पास करने के बाद खुशी से रोने का एक भावनात्मक वीडियो सामने आया है. इसमें अमिता प्रजापति ने अपने पिता को गले लगाते हुए एक वीडियो के साथ अपनी 10 साल की कड़ी मेहनत के बारे में ऑनलाइन लिखा.
सोशल मीडिया पर शेयर की जर्नी
अमिता प्रजापति ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट शेयर किया है. एक लंबी पोस्ट में अमिता ने लिखा कि वह एक झुग्गी बस्ती में रहती हैं और उनके पिता ने बेटी की शिक्षा के लिए बहुत संघर्ष किया. अमिता ने लिखा, "पापा मैं सीए बन गई. इसमें पूरे 10 साल लग गए. आंखों में सपना लिए हर रोज खुद से पूछती थी, यह सपना ही है या कभी सच भी होगा... 11 जुलाई 2024 आज सच हो गया, हां सपने सच होते हैं, लोग कहते थे क्यों करवा रहे हो इतना बड़ा कोर्स. तुम्हारी बेटी नहीं कर पाएगी, क्योंकि मैं बिलो एवरेज स्टूडेंट थी."
उन्होंने आगे लिखा, "लोग कहते थे कि तुम चाय बेचकर इतना नहीं पढ़ा पाओगे, पैसा बचाकर घर बनवा लो. कब तक जवान बेटियों को लेकर सड़क पर रहोगे? वैसे भी एक दिन तो इन्हें जाना ही है, पराया धन हैं, तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा.. हां, बिल्कुल,' मैं एक झुग्गी बस्ती में रहती हूं (यह बात बहुत कम लोग जानते हैं), लेकिन अब मुझे कोई शर्म नहीं है."
कुछ लोग कहते थे झुग्गी झोपड़ी उल्टी खोपड़ी.. सच, बिल्कुल सही कहते थे. अगर उल्टी खोपड़ी नहीं होती तो आज यहां नहीं पहुंचती और अब इस लायक हूं कि अपने पापा को घर बनवाकर दे सकती हूं. अमिता अपने पिता की हर इच्छा पूरी करना चाहती हैं.
अमिता ने आगे लिखा, "पहली बार पापा को गले लगाकर रोई. यह सुकून है. इस पल के लिए बहुत इंतजार किया. आज जो भी कुछ हूं पापा और मम्मी की देन है, जिन्होंने मुझ पर इतना विश्वास किया और कभी यह नहीं सोचा कि एक दिन हमें छोड़ कर चली जाएगी."