Village of IAS Officers UPSC Civil Services: दिल्ली को अक्सर भारत का यूपीएससी सिविल सेवा तैयारी केंद्र कहा जाता है, जहां सालाना आयोजित होने वाली आईएएस परीक्षा के लिए कई कोचिंग संस्थान और सुविधाएं उपलब्ध हैं. हालांकि, ईस्ट यूपी के एक छोटे से गांव से सिविल सर्वेंट भारत में किसी भी अन्य जगह की तुलना में बहुत ज्यादा हैं. माधो पट्टी नाम के गांव में 75 परिवार रहते हैं जिनमें से 47 में आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस अधिकारी हैं.


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हैरानी की बात है कि इस गांव में अधिकारियों या उम्मीदवारों को बनाने के लिए कोई कोचिंग या सुविधा नहीं है, लेकिन जैसा कि वे कहते हैं, प्रेरणा हमेशा सबसे ऊपर होती है. आइए आज जानते हैं अफसरों का गांव कहे जाने वाले इस गांव की सफलता की कहानी के बारे में.


अधिकारियों की संख्या इतनी ज्यादा है कि गांव में किसी भी त्योहार के टाइम जगह लाल और नीली बत्ती वाली कारों से भर जाती है. अब इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन जिन दिनों ऐसा नहीं होता था, गांव का माहौल लाल और नीला हो जाता था.


One Family With 5 IAS Brothers
यह 1995 की बात है जब माधो पट्टी के एक परिवार ने एक रिकॉर्ड बनाया था. परिवार में सबसे बड़े बेटे विनय सिंह ने यूपीएससी सिविल सेवा पास की और आईएएस बने. रिटायरमेंट के समय वे बिहार के प्रधान सचिव थे.


एक ही परिवार के भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह, जिन्होंने 1964 में IAS अधिकारी बनने के लिए सिविल सेवा परीक्षा पास की. सबसे छोटे भाई, शशिकांत सिंह भी 1968 में IAS अधिकारी बने. तो यह 5 भाइयों वाला परिवार है, जो IAS अधिकारी हैं. अब रिकॉर्ड शशिकांत सिंह के बेटे यशस्वी सिंह द्वारा बढ़ाया गया है जिन्होंने 2002 सीएसई में 31वीं रैंक हासिल की थी.


History of Madho Patti: UPSC Success Rate 
यह सब 1914 में शुरू हुआ जब गांव का पहला व्यक्ति अधिकारी बना. मुस्तफा हुसैन ने ही इस लकीर की शुरुआत की थी. वे 1914 में अधिकारी बने. 1951 में दूसरे अधिकारी थे. इंदु प्रकाश ने 1951 में यूपीएससी की परीक्षा पास की और सेकेंड टॉपर का खिताब हासिल किया. इसके बाद 1953 में विद्या प्रकाश और विनय प्रकाश ने सीएसई क्वालिफाई किया.


फिर आया 5 आईएएस अधिकारियों का परिवार


हैरानी की बात तो यह है कि इन लोगों को अफसर बनने के लिए किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं पड़ी. उन्होंने बिना किसी कोचिंग के क्वालिफाई किया.


गांव के पुरुष ही नहीं बल्कि गांव की महिलाएं, बेटियां और बहुएं भी IAS अधिकारी बनी हैं. 1980 में आशा सिंह आईएएस अधिकारी बनीं. इसके बाद 1982 में उषा सिंह और क्रमशः 1983 और 1994 में इंदु सिंह और सरिता सिंह का स्थान रहा.


इस गांव के अधिकारी न सिर्फ मेहनत की मिसाल हैं बल्कि प्रेरणा और अच्छा करने के जज्बे की भी मिसाल हैं. पूरे भारत में यूपीएससी के उम्मीदवारों को यहां के अधिकारियों से प्रेरणा लेनी चाहिए.


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