IAS Tushar D Sumera: सीबीएसई और यूपी बोर्ड के जल्द ही 10वीं-12वीं के रिजल्ट आने वाले हैं. इसे लेकर बच्चों से लेकर पैरंट्स में धुकधुकी बढ़ी हुई है. हरेक मां-बाप की यही चाहत है कि उनके बच्चे बोर्ड परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाए, जिससे उनका करियर आगे अच्छा बन सके. लेकिन सवाल है कि जिनके बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आते हैं तो क्या उनका करियर नहीं बन पाता है. 


कलेक्टर तुषार डी सुमेरा की प्रेरणादायक कहानी


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गुजरात में भरूच जिले के कलेक्टर तुषार डी सुमेरा (IAS Tushar D Sumera) ने अपनी स्टोरी सोशल मीडिया पर शेयर की है. वे वर्ष 2012 में UPSC परीक्षा पास करके IAS अधिकारी बने थे. कलेक्टर ने बताया कि उन्हें 10वीं की बोर्ड परीक्षा में केवल पासिंग मार्क्स आए थे. अपनी 10वीं की मार्कशीट सोशल मीडिया पर शेयर कर तुषार ने बताया कि उनके 100 में अंग्रेजी में 35, गणित में 36 और विज्ञान में 38 नंबर आए थे. इतने कम नंबर आने पर उनके परिवार वाले मायूस थे. केवल स्कूल ही नहीं बल्कि उनके गांव में सभी पड़ोसी-रिश्तेदारों ने कहा था कि वह जिंदगी में कुछ हासिल नहीं कर सकेगा.



'नंबरों के लिए बच्चों पर न बनाएं प्रेशर'


डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर तुषार (IAS Tushar D Sumera) ने कहा कि जिंदगी में केवल 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षा ही सब कुछ नहीं है. इसके आगे भी लंबी जिंदगी है. इसलिए केवल बोर्ड परीक्षा में मिले नंबरों के आधार पर किसी बच्चे के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. लिहाजा पैरंट्स को अपने बच्चों पर बोर्ड में ज्यादा नंबर लाने का प्रेशर बनाने के बजाय उनमें कॉन्फिडेंस बिल्ड अप करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.


IAS अवनीश शरन ने ट्विटर पर किया पोस्ट 


छत्तीसगढ़ कैडर के IAS ऑफिसर अवनीश शरन (IAS Avneesh Saran) ने तुषार डी सुमेरा की यह प्रेरणादायक स्टोरी अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट की है, जिस पर अब तक 17 हजार से ज्यादा लाइक और 32 सौ से ज्यादा रिट्वीट मिल चुके हैं. अपनी कहानी शेयर होने पर तुषार डी ने थैंक्यू लिखकर उनका जवाब दिया है. उनकी इस पोस्ट पर यूजर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं. एक यूजर रिजवान अहमद ने लिखा, अभी तक ऐसा कोई प्रमाण पत्र नहीं बना है जो किसी की काबिलियत तय करे. ये काबिलियत मार्क, ग्रेड या फिर रैंक नहीं तय करती.


सोशल मीडिया यूजर्स कर रहे मजेदार कमेंट


एक अन्य सोशल मीडिया यूजर अंजलि राय ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, कुछ अंक किसी की योग्यता या चरित्र निर्धारित नही करते. ये बस प्रतियोगिता हेतु एक मापदंड है, जिस से तुलना कर के व्यक्ति को आगेऔर पीछे की श्रेणी मे किया जाता है. सभी समान्य व्यक्तियों के पास एक जैसा मस्तिष्क शरीर में होता है जो रुचि, परिस्थितियों और अन्य कई कारकों से प्रभावित होता है. 


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