UP Deputy Collector Ritu Rani: घर का बच्चा जब अफसर बनता है तो खुशी सभी को होती है और जब बच्चे की मेहनत के साथ साथ उसमें मां बाप की भी मेहनत लगती है तो यह खुशी और ज्यादा हो जाती है. आमिर खान की फिल्म दंगल का एक डॉयलॉग बहुत मशहूर हुआ था ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’. यह महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता में एक कदम आगे बढ़ाने की सोच को प्रोत्साहन करता है. इसी फिल्म जैसी कुछ कहानी आज हम आपको एक बेटी और पिता के संघर्ष की बताने जा रहे हैं. यह कहानी कुश्ती की नहीं बल्कि बेटी को पढ़ाने के लिए गांव और समाज से किए गए संघर्ष की है. जिसके पिता ने अपनी बेटी के सपनों को साकार करने के लिए न सिर्फ गांव से शहर पढ़ाई के लिए भेजा बल्कि शहर में सालों तक उसे सपनों को पूरा करने का मौका दिया. 


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बेटी को पढ़ने भेजा तो समाज ने मारे ताने
अपनी बेटी को पढ़ने के लिए जब गांव से शहर साल 2014 में उस पिता ने भेजा, तो समाज से ताने सुनने को मिले थे, कि लगता है जैसे उनकी बेटी कलेक्टर ही बन जाएंगी. इन तानों का सिलसिला तब और बढ़ गया जब बेटी को सालों तक सफलता ही नहीं मिली, लेकिन, यूपीपीसीएस 2019 के आए रिजल्ट में उस बेटी ने डिप्टी कलेक्टर बनकर अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया है. अब उसी समाज के लोग उस बेटी की तारीफ करते हैं. तारीफ आखिर करें भी क्यों न क्योंकि वह बेटी अपने पूरे क्षेत्र में इतनी बड़ी कामयाबी पाने वाली पहली बेटी बन गई हैं. 


पिता और भाई को बताया खुद के लिए भगवान
अफसोस की बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए समाज के ताने सुनने वाले पिता इस दुनिया में नहीं रहे. वह अपनी बेटी को डिप्टी कलेक्टर बनता हुआ नहीं देख पाए. वह बेटी अपने पिता को याद करते हुए अपने इस संघर्ष को पिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि मानती हैं. वह कहती हैं कि मेरे पिता और भाई मेरे लिए भगवान है, अगर मुझ पर भरोसा करते हुए मुझे पढ़ने के लिए शहर न भेजा होता, तो शायद मैं आज अपने सपने को साकार नहीं कर पाती. रीतू की पढ़ाई में उनके भाईयों ने भी साथ दिया, जब पिता की मृत्यु हो गई, तो उसके बाद उनके भाईयों ने अपनी बहन का सपना पूरा करने के लिए तैयारी का मौका दिया. 


2019 में आई थी 34वीं रैंक
रीतू यूपीपीसीएस 2019 में 34वीं रैंक हासिल कर डिप्टी कलेक्टर बन गईं. रीतू पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर की रहने वाली हैं. रीतू रानी के पिता किसान थे. बेटी के प्रति रीतू के पिता का कितना समर्पण था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने रीतू को पहले एमबीए कराई फिर नौकरी को छोड़ा कर बेटी को सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया. रीतू ने अपने पिता से जो भी कहा उसे हर समय पूरा करने की कोशिश की. 


ट्यूशन और कोचिंग में भी पढ़ाया
रीतू रानी को अपनी तैयारी के लिए काफी लंबा समय देना पड़ा है. उन्हें कामयाबी इतनी जल्दी नहीं मिली. तैयारी के दौरान उन्हें कई तरह के संघर्ष करने पड़े. परिवार की स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वह रीतू को दिल्ली में रखकर पढ़ाई कराएं. पिता के इलाज में परिवार कर्ज में डूब गया था, ऐसी स्थिति में रीतू ने अपना खर्च स्वयं ही निकालना शुरू कर दिया. उन्होंने दिल्ली में रहते हुए अपना खर्च निकालने के लिए ट्यूशन और कोचिंग में पढ़ाना शुरू किया. उन्होंने अपनी तैयारी से समय निकालकर ये काम शुरू किया, इसी दौरान वह अनेक कोचिंग संस्थानों में कॉपियों चेक करती थीं.


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