Success Story: पूजा खेडकर के कथित रूप से विकलांगता कोटे का दुरुपयोग करने के विवाद के बीच, एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित एक उम्मीदवार ने चार बार सिविल सेवा परीक्षा पास की और फिर भी वह IAS अध‍िकारी नहीं बन पाया. 


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हम यहां कार्त‍िक कंसल की बात कर रहे हैं, ज‍िन्‍होंने आईआईटी रुड़की से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अब वे इसरो में साइंट‍िस्‍ट के तौर पर काम कर रहे हैं. इस पद के लिए उनका चयन अखिल भारतीय केंद्रीय भर्ती के जरिये हुआ. कंसल 14 साल की उम्र से व्हीलचेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्‍योंक‍ि उन्‍हें मस्‍कुलर ड‍िस्‍ट्रॉफी नाम की बीमारी है. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक बड़ी समस्या है और इससे पीड़ित व्‍यक्‍त‍ि चल-फिर नहीं सकता.  


पेशे से साइंट‍िस्‍ट कंसल ने यूपीएससी जैसी मुश्‍क‍िल परीक्षा को चार बार क्रैक करने का कीर्त‍िमान हास‍िल क‍िया. सिविल सेवाओं के लिए उनका चार बार चयन हुआ. ये कोई छोटी बात नहीं है. साल 2019 में यूपीएससी परीक्षा पास कर 813वां रैंक हास‍िल क‍िया. इसके बाद साल 2021 में उन्‍होंने 271वां रैंक हास‍िल क‍िया. जबक‍ि साल 2022 में 784 और साल 2023 में 829वां रैंक हास‍िल क‍िया. 


साल 2021 में जब उनकी रैंक 271 थी, तब विकलांगता कोटे के बिना भी उन्हें आईएएस मिल सकता था, क्योंकि उस साल 272 और 273 रैंक वालों को आईएएस मिला था. दरअसल, साल 2021 में, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी को IAS के फंगशनल क्‍लास‍िफ‍िकेशन एल‍िज‍िब‍िल‍िटी ल‍िस्‍ट में रखा ही नहीं गया था. ल‍िहाजा कंसल को आईएएस का पद नहीं म‍िला. लेकिन,  मस्कुलर डिस्ट्रॉफी को भारतीय राजस्व सेवा (आयकर) ग्रुप ए और भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क) की लिस्‍ट में शामिल किया गया था, जो उनकी दूसरी और तीसरी पसंद थी.
 
साल 2019 में जब कार्तिक कंसल को 813वीं रैंक मिली.  तब लोकोमोटर विकलांगता के लिए 15 वैकेंसी थीं और केवल 14 भरी गईं थीं,  तो उन्हें आसानी से सेवा मिल सकती थी. लेक‍िन नहीं म‍िली. वहीं साल 2021 में लोकोमोटर विकलांगता श्रेणी में सात रिक्तियां थीं और केवल चार भरी गईं. कंसल श्रेणी में नंबर एक स्थान पर थे, फ‍िर भी उन्‍हें पद नहीं म‍िला.   


AIIMS ने दी ये र‍िपोर्ट : 
एम्स के मेडिकल बोर्ड ने कार्त‍िक कंसल की जांच की और अपने र‍िपोर्ट में बताया क‍ि उनमें मांसपेशियों की कमजोरी है और उनके दोनों हाथ और पैर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से प्रभावित हैं. बात थोडी अजीब है, क्‍योंक‍ि आईएएस के लिए, दोनों हाथ और पैर प्रभावित व्यक्ति योग्‍य माने जाते हैं, लेकिन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी वाले व्यक्ति को योग्‍य नहीं माना गया. 


हालांक‍ि बोर्ड ने यह भी नोट किया था क‍ि कार्त‍िक अपनी उंगलियों से हरकत कर सकते हैं और मोटराइज्ड व्हीलचेयर के साथ एक जगह से दूसरी जगह तक जा सकते हैं. जो र‍िपोर्ट दी गई थी, उसमें ये कहा गया था क‍ि कार्त‍िक देख, बोल और सुन सकते हैं. वो बातचीत कर सकते हैं और पढ़ लिख भी सकते हैं. लेकिन वे खड़े नहीं हो सकते. ना चल सकते और ना ही कोई वस्‍तु खींच या उसे धक्का दे सकते हैं. वो चीजें उठा भी नहीं सकते. र‍िपोर्ट के अनुसार कार्त‍िक झुकने, घुटने टेकने, कूदने  या चढ़ने में भी सक्षम नहीं हैं. हालांकि कार्त‍िक के मूल विकलांगता प्रमाणपत्र में उनकी विकलांगता का स्तर 60% बताया गया था, लेकिन एम्स मेडिकल बोर्ड ने इसे 90% माना. 


र‍िटायर्ड आईएएस ने उठाई आवाज : 
र‍िटायर्ड आईएएस अधिकारी संजीव गुप्ता ने कार्तिक का मामला उठाया और उनके सपोर्ट में ट्वीट किया कि यह न्याय का उपहास है. कार्तिक, जिन्होंने बिना किसी लेखक की मदद के सिविल सेवा परीक्षा दी. उन्‍होंने स‍िर्फ शौचालय जाने के लिए किसी की मदद ली थी. आईएएस और आईआरएस की नौकरी के लिए कार्त‍िक शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा कर रहे थे, फ‍िर भी उन्हें कोई सेवा नहीं दी गई.