आदिवासी योद्धा बनकर उभरे हेमंत सोरेन: भाई की मौत के बाद अचानक कंधों पर आई थी बड़ी जिम्मेदारी
Hemant Soren: झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर हेमंत सोरेन पर भरोसा जताते हुए राज्य की सत्ता सौंप दी है. पार्टी में अंदरूनी कलह और कानूनी लड़ाई का सामना करने के बाद हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी ने जबरदस्त वापसी की. इस मौके पर हम आपको हेमंत की जिंदगी की अहम घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं.
Hemant Soren: झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने जबरदस्त प्रदर्शन दिखाते हुए एक बार फिर सत्ता में वापसी कर ली है. खबर लिखे जाने जएमएम 55 से अधिक सीटों पर जीत की ओर अग्रसर है और इस जीत में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी का अहम किरदार रहा है. 49 वर्षीय हेमंत सोरेन का सियासी करियर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है. खास तौर पर विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें कानूनी लड़ाई से लेकर पार्टी में आंतरिक कलह तक का सामना करना पड़ा है. इस सब के बावजूद हेमंत सोरेन और JMM मजबूती से उभरी और खुद को आदिवासी अधिकारों के मजबूत पैरोकार के रूप में स्थापित किया है.
भाई की मौत के बाद मिली बड़ी जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरने का जन्म 10 अग्सत 1975 को हजारीबाग के पास नेमरा गांव में हुआ था. हेमंत सोरेन ने पटना हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. हेमंत सोरेन पर उनके पिता शिबू सोरेन का अहम प्रभाव रहा है. शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सह-संस्थापक थे. हालांकि हेमंत सोरेन को शुरुआत में अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं देखा जाता था. हेमंत को बड़े भाई दुर्गा को शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी के तौर पर माना जाता था लेकिन उनकी अचानक 2009 में हुई मौत की वजह से हेमंत सोरेन के कंधों पर पड़ी जिम्मेदारी आई उन्होंने बखूबी उसे संभाला भी.
हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर
➤ 2009 में राज्यसभा मेंबर के तौर पर अपनी सियासी पारी का आगाज किया
➤ 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा-झामुमो सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के लिए राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया.
➤ 2012 में भाजपा और झामुमो की राहें जुदा होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
➤ 2013 जुलाई में हेमंत ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से 38 साल की उम्र में झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
➤ 2014 में भाजपा ने झारखंड की सत्ता में वापसी की और हेमंत विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.
कांग्रेस-आरजेडी के साथ बनाई सरकार
2016 में हेमंत के सियासी करियर में उस वक्त एक अहम मोड़ आया, जब भाजपा-नीत सरकार ने आदिवासी भूमि की रक्षा करने वाले कानूनों, मसलन-छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, में संशोधन की कोशिश की. हेमंत ने आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे न केवल उन्हें व्यापक समर्थन मिला, बल्कि सत्ता में उनकी वापसी का मंच भी तैयार हुआ. हेमंत दिसंबर 2019 में कांग्रेस और राजद के सहयोग से एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए. उनकी पार्टी ने झारखंड विधानसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 81 सीट में से 30 पर कब्जा जमाया, जो उनके नेतृत्व की बढ़ती लोकप्रियता की तरफ भी इशारा करता था.
जेल गए और जून में मिली जमानत
हालांकि, हेमंत का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है. साल 2023 की शुरुआत में भूमि घोटाले से जुड़े कथित धनशोधन मामले में उनका नाम उछला. इस साल 31 जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ देर बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. झारखंड उच्च न्यायालय ने जून में यह कहते हुए हेमंत की जमानत अर्जी मंजूर कर ली कि उनके अपराध करने की कोई संभावना नहीं थी. हेमंत लगातार कहते आए हैं कि उनकी गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी और वह उनकी सरकार को गिराने की साजिश का शिकार हुए लेकिन इस बार के चुनाव में उन्होंने भाजपा को तब हराया जब भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ राज्य के अंदर चुनावी मुहिम में उतरी थी. इन चुनौतियों के बावजूद राज्य की आदिवासी आबादी के हक के लिए उनकी मुखर आवाज ने उनकी राजनीतिक पहचान को मजबूती दी और यही कारण है कि वो एक बार फिर राज्य की सत्ता पर काबिज हुए.