Katchatheevu Island in Hindi: 10 साल लगातार सत्ता में रहने के बावजूद साउथ में भाजपा की सियासी जमीन मजबूत नहीं हो सकी है. इस बार लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भगवा दल जोर-शोर से कैंपेन कर रहा है. हाल के महीनों में पीएम नरेंद्र मोदी कई बार दक्षिणी राज्यों में गए. 24 घंटे पहले कच्चातिवु द्वीप के रूप में भाजपा को बड़ा मुद्दा मिल गया है. पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखकर कांग्रेस पर हमला बोला, आज विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुद्दे की गंभीरता समझाई. साफ है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरे देश में खासतौर से तमिलनाडु और दूसरे दक्षिणी राज्यों में इस मुद्दे को गरमाएगी. कुछ एक्सपर्ट यह भी कह रहे हैं कि कच्चातिवु भाजपा के लिए साउथ में घुसने का द्वार बन सकता है. 


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पहले कच्चातिवु द्वीप की कहानी समझिए


भारत के नक्शे में दक्षिणी छोर पर (Where is Katchatheevu) नजरें गड़ाइए. भारत के दक्षिणी भूभाग और श्रीलंका के बीच छोटा सा जमीन का टुकड़ा दिखाई देगा. इसे ही कच्चातिवु द्वीप कहते हैं. इसे 1974 में एक समझौते के तहत कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार ने श्रीलंका को दे दिया था. 1991 के बाद से लगातार तमिलनाडु में इस द्वीप को वापस लेने की मांग हो रही है. 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई थीं. तमिल पार्टियां इस समझौते को अमान्य बनाने की मांग कर रही हैं. 


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बताते हैं कि आज से करीब 600 साल पहले ज्वालामुखी विस्फोट के कारण यह द्वीप बना था. अंग्रेजों के राज में 285 एकड़ में फैले इस द्वीप का भारत और श्रीलंका दोनों इस्तेमाल करते रहे. एक समय यह रामनाथपुरम के राजा के अधीन था. बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी में आ गया. 1921 के आसपास भारत और श्रीलंका दोनों देशों ने मछली पकड़ने के लिए इस पर अपना दावा जताया. 


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आजादी के बाद इस द्वीप का इस्तेमाल भारतीय मछुआरे नेट को सुखाने, मछली पकड़ने और आराम करने के लिए करते थे. बाद में श्रीलंका की तरफ से मछुआरों की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं. वैसे, श्रीलंका भारतीयों को यह छूट देता है कि वह बिना वीजा धार्मिक कार्यों के लिए द्वीप आ सकें.


अब तर्क दिए जा रहे हैं कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता संबंधित देश के हितों पर आधारित होता है. जिस द्वीप को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट में दिया था उसे मौजूदा सरकार वापस ले. 


लोकसभा चुनाव से पहले क्यों उठा मुद्दा?


दरअसल, तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने आरटीआई के तहत 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते के बारे में जानकारी मांगी थी. तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. कल आरटीआई की जानकारी जैसे ही मीडिया में आई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके और कांग्रेस पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और डीएमके फैमिली यूनिट्स हैं. वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि उनके अपने बेटे और बेटियां आगे बढ़ें. उन्हें किसी और की परवाह नहीं है. 


पीएम ने कहा कि कच्चातिवु पर उनकी (कांग्रेस और डीएमके) बेरुखी ने हमारे मछुआरों के हितों को नुकसान पहुंचाया है. कांग्रेस पर अटैक करते हुए पीएम ने कहा कि भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 साल से काम करने का तरीका रहा है. 


प्रधानमंत्री ने आज एक ट्वीट में डीएमके पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी ने राज्य के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि भारत के कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंपे जाने पर सामने आ रही नई जानकारियों ने द्रमुक के दोहरे मानकों को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है. उन्होंने एक खबर का हवाला दिया जिसमें दावा किया गया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने समझौते पर सहमति दी थी जबकि डीएमके ने सार्वजनिक तौर पर इसका विरोध किया. 


क्या चुनाव में BJP को फायदा होगा?


आमतौर पर चुनाव प्रचार के सीजन में विपक्ष सत्तारूढ़ पार्टी पर सवालों की बौछार करता है, उनके वादों और दावों की पड़ताल करता है लेकिन भाजपा अपने हमलों से इसका मौका ही नहीं दे रही है. कभी कांग्रेस नेताओं के बयान गरम हो जाते हैं तो कभी पुराने फैसलों को आगे कर दिया जाता है.


महाराष्ट्र, नॉर्थ ईस्ट, आदिवासी क्षेत्रों और साउथ के राज्यों में क्षेत्रीय अस्मिता की भावनाएं प्रबल हैं. भाजपा को उम्मीद है कि यह मुद्दा लोकसभा चुनाव के दौरान तमिलनाडु में उसे राजनीतिक लाभ पहुंचाएगा और वहां पैर जमाने में उपयोगी साबित होगा. आपको याद होगा कुछ हफ्ते पहले जब पीएम तमिलनाडु गए थे तब उन्होंने तमिल संस्कृति की काफी चर्चा की थी. सेंगोल आदि प्रतीकों का जिक्र किया था. अब कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे पर भाजपा की कोशिश यह मैसेज देने की होगी कि वही तमिल संस्कृति और देश के भूभाग का संरक्षण कर सकती है. 


जयशंकर ने क्या बताया


कच्चातिवु (कच्चाथीवू) मुद्दे पर आज विदेश मंत्री और भाजपा नेता डॉ. एस जयशंकर ने मोर्चा संभाला. उन्होंने इस द्वीप को श्रीलंका को देने का दुष्प्रभाव समझाते हुए कहा कि पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका ने हिरासत में लिया और 1175 मछली पकड़ने वाली भारतीय नौकाओं को जब्त किया... आप पूछ सकते हैं कि हम आज क्यों चर्चा कर रहे हैं? जवाब है कि पिछले पांच वर्षों में कच्चातिवु मुद्दा और मछुआरे का मुद्दा संसद में कई दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है. यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मुझे कई बार पत्र लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री को मैं इस पर 21 बार जवाब दे चुका हूं... यह मुद्दा अचानक से अभी नहीं आया है. इस पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच लगातार बातचीत होती रही है.'


यह किसने किया, किसने छिपाया?


कच्चातिवु पर विदेश मंत्री ने कहा, 'आज हम न केवल यह जानते हैं कि यह किसने किया और किसने इसे छिपाया बल्कि यह भी जानते हैं कि 1974 के कच्चातिवु समझौते के लिए जिम्मेदार पार्टियां कौन थीं और 1976 में मछुआरों का अधिकार कैसे खत्म किया गया... आप सभी जानते हैं कि कौन जिम्मेदार है. आज जनता के लिए यह जानना जरूरी है, जनता के लिए निर्णय करना जरूरी है. यह मुद्दा वास्तव में जनता से बहुत लंबे समय तक छिपाया गया है.'


जयशंकर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कर दिया कि चुनाव से ठीक पहले जनता को यह मुद्दा क्यों समझाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जनता के लिए निर्णय करना जरूरी है. दरअसल, इस मुद्दे के सहारे भाजपा की कोशिश है कि जनता कांग्रेस और डीएमके की गलतियों को समझे. भाजपा तमिलनाडु और दूसरे दक्षिणी राज्यों में अपनी सीटें बढ़ाना चाहती है.


पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का तमिलनाडु में खाता भी नहीं खुला था. DMK को 23 और कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं. केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से भी भाजपा इस बार अच्छी संख्या में सीटें मिलने की उम्मीद कर रही है. दक्षिणी राज्यों से 131 लोकसभा सीटें आती हैं. पार्टी 400 के पार के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस बार साउथ से करिश्मे की उम्मीद कर रही है.


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