Khandwa Loksabha Chunav 2024: नर्मदा और ताप्ती नदी की घाटियों के बीच स्थित खंडवा शहर, जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है. यहां मिले पुरातात्विक अवशेष जैन मंदिरों की उपस्थिति का प्रमाण देते हैं. 1956 में पूर्वी निमाड़ के नाम से अस्तित्व में आए इस जिले को 2003 में खंडवा और बुरहानपुर दो जिलों में विभाजित किया गया.


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खंडवा, जो पहले खांडव वन के नाम से जाना जाता था, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी जिले में स्थित है. इसके अलावा, घंटाघर, दादा धूनीवाले दरबार, हरसूद, मूंदी, सिद्धनाथ मंदिर और वीरखाला रूक जैसे पर्यटन स्थल भी खंडवा को आकर्षक बनाते हैं.


1989 में पहली बार बीजेपी ने जीत हासिल की..
1962 में जब पहली बार खंडवा लोकसभा सीट पर चुनाव हुआ, तो कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया. महेश दत्ता ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1967 और 1971 में भी कांग्रेस का दबदबा रहा और पार्टी ने अपनी जीत बरकरार रखी. 1977 में जनता ने बदलाव की चाहत में भारतीय लोकदल को वोट दिया. 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और शिवकुमार नवल सिंह सांसद बने. 1984 में कालीचरण रामरतन ने कांग्रेस के लिए जीत हासिल की. 1989 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की, लेकिन 1991 में कांग्रेस ने फिर से अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया.


इस तरह, शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का खंडवा लोकसभा सीट पर दबदबा रहा, लेकिन 1989 में बीजेपी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. 1991 में कांग्रेस ने फिर से वापसी की और तब से यह सीट दोनों दलों के बीच प्रतिस्पर्धा का केंद्र रही है. 


कुशाभाऊ ठाकरे भी जीत चुके हैं यहां से
मध्य प्रदेश बीजेपी के पितृ पुरुष माने जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे भी खंडवा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. 1979 के लोकसभा उपचुनावों में जनसंघ के टिकट पर ठाकरे ने जीत हासिल की थी. उन्होंने पूर्व सांसद ठाकुर शिव कुमार सिंह को हराया था. 


नंदू भैया का दबदबा और बीजेपी का वर्चस्व
1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने खंडवा लोकसभा सीट पर जीत हासिल की. नंदकुमार सिंह चौहान, जिन्हें "नंदू भैया" के नाम से जाना जाता है, बीजेपी के उम्मीदवार थे. उन्होंने इस चुनाव में कमल खिलाया और अगले तीन चुनावों (1998, 1999 और 2004) में भी जीत हासिल की. 2009 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के अरूण यादव ने हरा दिया, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्होंने फिर से जीत हासिल की और 2019 तक सांसद रहे.


नंदू भैया के निधन के बाद 2022 में खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. बीजेपी ने ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की.


खंडवा: किशोर कुमार की जन्मस्थली
किशोर कुमार का अपनी जन्मभूमि खंडवा से गहरा लगाव था. वे जहाँ भी जाते, अपना परिचय "किशोर कुमार खंडवे वाला" के रूप में देते. स्टेज शो में, वे कार्यक्रम की शुरुआत इस अंदाज में करते थे: "मेरे दादा-दादियों, मेरे मामा-मामियों... अरे मै जो यहां आया हूं, आप सबका प्यार है दुलार है और किशोर कुमार खंडवे वाला गाने को तैयार है. इतना ही नहीं यह भी कह देते थे कि दूध जलेबी खाएंगे.. खंडवा में बस जाएंगे



खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं.  इसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल हैं.


कुल 19 लाख 59 हजार 436 वोटर
9 लाख 89 हजार 451 पुरुष
9 लाख 49 हजार 862 महिला वोटर


एससी-एसटी वर्ग के 7 लाख 68 हजार 320 मतदाता
4 लाख 76 हजार 280 ओबीसी 
अल्पसंख्यक 2 लाख 86 हजार 160 
सामान्य वर्ग के 3 लाख 62 हजार 600 मतदाता
आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक निर्णायक


2024 का समीकरण क्या है?
बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में खंडवा से मौजूदा सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल पर एक बार फिर विश्वास जताया है। लंबे अरसे से भाजपा का गढ़ खंडवा संसदीय सीट पर पाटिल दूसरी बार किस्मत आजमाएंगे. अब देखना है कि कांग्रेस किसको उतारती है.


Candidates in 2024 Party Votes Result
Gyaneshwar Patil BJP    
  Congress