How many Muslim Majority Lok Sabha Seats: आज से करीब 10 साल पहले तक बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं को ध्यान में रखकर अपनी चुनावी रणनीति तैयार करती थी. उनकी इस रणनीति के पीछे मुस्लिम वोटर्स का खास वोटिंग पैटर्न था. इस पैटर्न के तहत मुस्लिम वोटर्स को जिस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को हराने लायक विपक्षी कैंडिडेट दिखता, वे उसके पीछे एकजुट हो जाते. मुस्लिमों के इन्हीं वोट को पाने के लिए विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ खुद को सबसे बड़ा अगुवा बताने में लगी रहती. वर्षों गुजर जाने के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं का यह पैटर्न अब भी कायम है. इसके बावजूद पीएम मोदी की लीडरशिप में बीजेपी पिछले 10 साल से लगातार लोकसभा से लेकर विधानसभा के चुनाव जीतती जा रही है. तो क्या देश के चुनावों में अब मुस्लिम वोट बैंक पहले जैसा महत्वपूर्ण नहीं रहा है. क्या सरकार बनाने- बिगाड़ने को लेकर मुसलमानों से जुड़ा मिथक टूट चुका है. यह सवाल विपक्षी पार्टियों को परेशान कर रहा है. 


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100 सीटों पर मुस्लिम मतदाता अहम


इस बार के लोकसभा चुनावों की बात करें तो 543 सीटों में से करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जिन पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक संख्या में हैं. ये सीटें उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं और इन सीटों पर विपक्षी पार्टियां गहन नजर लगाए हुए हैं. इस सीटों पर फतह हासिल करने के लिए वे अपने रणनीति को इस तरह से तैयार कर रही हैं, जिससे चुनावी बाजी उनके हाथ में आ सके. हालांकि उनके सामने उलझन भी बहुत हैं, जिसका आसान समाधान उन्हें नजर नहीं आ रहा है. 


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विपक्षी दलों के सामने धर्मसंकट


विपक्षी दलों की बड़ी दिक्कत ये है कि अगर वे आगे बढ़कर मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे उठाती हैं तो इससे हिंदू मतदाताओं में धुव्रीकरण हो जाता है, जिसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिलता है. अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो मुस्लिम मतदाताओं के वोट मिलने की संभावना घट जाती है. यह धर्मसंकट आम आदमी पार्टी, सपा, बसपा, कांग्रेस, डीएमके, ममता बनर्जी समेत तमाम राजनीतिक दलों के सामने है और इसका सही जवाब अब तक उन्हें मिल नहीं पाया है. बीजेपी के फेवर में हिंदू मतदाताओं को इकट्ठे होने से रोकने के लिए वे अब आम जनता से जुड़े मुद्दों और दलित- पिछड़ों की राजनीति को तवज्जो दे रही हैं. उन्हें लग रहा है कि ऐसा करने से हिंदू वोटर्स के छिटकने का खतरा कम हो सकता हैं. 


मुस्लिम वोटर्स निर्णायक तादाद में!


राजनीतिक पंडितों के मुताबिक अगर देशभर की बात करें तो 543 में से करीब 65 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम वोटर्स की तादाद 30-35 फीसदी के बीच है. इनमें यूपी में 14, पश्चिम बंगाल में 13, केरल की 8, असम की 7, जम्मू कश्मीर की 5, बिहार की 4 और मध्य प्रदेश की 3 सीटें शामिल हैं. इनके अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, दिल्ली और गोवा की 2-2 सीटों पर भी मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं. तमिलनाडु में भी एक लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोटर्स को निर्णायक माना जाता है. 


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क्या अब मुस्लिम मतदाताओं की अहमियत नहीं रही?


इन 65 के अलावा देश में करीब 35 सीटें ऐसी हैं, जिन पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 15-20 फीसदी के आसपास है. ये वोटर्स अपने दम पर किसी को जिता तो नहीं सकते लेकिन किसी प्रत्याशी के फेवर में एकजुट वोटिंग करके दूसरे उम्मीदवार को हराने की वजह जरूर बन सकते हैं. हालांकि पिछले 10 सालों से इन सब सीटों पर बीजेपी अपनी अचूक रणनीति से लगातार कमल खिलाने में कामयाब हो रही है. तो ऐसे में क्या माना जाए कि देश में मुस्लिम वोट बैंक का असर अब खत्म हो गया है. क्या अब मुस्लिम मतदाताओं के वोटों की कोई अहमियत नहीं रही है. 


बीजेपी ने ध्वस्त कर दी विपक्षी दलों की रणनीति!


राजनीतिक एक्सपर्टों के मुताबिक मुस्लिम वोट बैंक के मामले में कुछ मिथक और कुछ सच्चाई रही है. यह वोट बैंक असरदार तो रहा है लेकिन एकाध सीट को छोड़कर देश में कहीं भी निर्णायक नहीं रहा है. विपक्षी पार्टियां खास रणनीति अपनाकर मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों पर जीत दर्ज करती रही हैं. वे इन सीटों पर हिंदुओं की एक-दो जातियों और मुस्लिम वोटर्स का कॉकटेल बनाकर चुनाव जीतने में कामयाब होती रही हैं. लेकिन पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की लीडरशिप में जब से बीजेपी ने देशभर के हिंदुओं को एकजुट कर दिया तो विपक्षी पार्टियों की रणनीति धराशायी हो गई.


चुनौती से कैसे पार पाएंगे विपक्षी दल


मुस्लिम वोटर्स का पैटर्न अब भी वही है और वह बीजेपी को हराने की क्षमता वाले उम्मीदवार को ढूंढकर उसे वोट देता है लेकिन इसके जवाब में हिंदू मतदाता उसके खिलाफ एकजुट हो जाते हैं, जिसके चलते सहारनपुर, रामपुर, अलीगढ़ समेत विभिन्न मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी अपनी विजय पताका फहरा चुकी है. इस बार भी बीजेपी अपनी इसी रणनीति को धार देने में लगी है. ऐसे में देखना होगा कि क्या विपक्षी पार्टियां हिंदू मतदाताओं को फिर से अपने पाले में ला सकेंगी या उन्हें एक और बड़ी हार के लिए तैयार रहना होगा.