UP Lok Sabha Chunav: यूपी में क्या सोच रही कांग्रेस? सीटें तय होने के बाद भी कैंडिडेट उतारने में कर रही देरी
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UP Lok Sabha Chunav: यूपी में क्या सोच रही कांग्रेस? सीटें तय होने के बाद भी कैंडिडेट उतारने में कर रही देरी

UP Election 2024: कहते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है. यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. पहली ही लिस्ट में भाजपा ने आधी से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए लेकिन सपा और कांग्रेस में डील होने के बाद भी मुख्य विपक्षी दल ने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं. 

UP Lok Sabha Chunav: यूपी में क्या सोच रही कांग्रेस? सीटें तय होने के बाद भी कैंडिडेट उतारने में कर रही देरी

Uttar Pradesh Lok Sabha Chunav Congress: लोकसभा चुनाव में पहले चरण वाली 102 सीटों पर आज से नामांकन शुरू हो गया है. पहले चरण में 19 अप्रैल को यूपी की 8 सीटों पर भी मतदान होगा. हालांकि सबसे ज्यादा सांसद चुनकर संसद भेजने वाले यूपी में कांग्रेस अभी कश्मकश में है. जी हां, कांग्रेस अभी उम्मीदवार घोषित नहीं कर रही है. इसके कई कारण बताए जा रहे हैं लेकिन अंदरखाने से पता चला है कि मुख्य विपक्षी दल बसपा के वोटबैंक को देखते हुए इंतजार कर रहा है. शायद कांग्रेस को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में ऐन वक्त पर मायावती का मन बदल जाए और वह कांग्रेस से हाथ मिला लें. इसके लिए शायद वह अपने हिस्से की सीट मायावती को देने के लिए राजी हो जाए. 

मायावती का वेट कर रही कांग्रेस?

दरअसल, विपक्षी INDIA गठबंधन ने सीटें तो बांट ली हैं लेकिन नाम फंसे हुए हैं. 80 सीटों वाले यूपी में सपा 63 और कांग्रेस 17 सीटों पर लड़ेगी. मायावती कई बार इनकार कर चुकी हैं. उन्होंने कहा है कि वह अकेले चुनाव में उतरेंगी. अगर ऐसा होता है तो विपक्षी गठबंधन का वोट बंटेगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा. कुछ दिन पहले खबर आई थी प्रियंका गांधी ने मायावती से फोन पर बात की लेकिन आगे कुछ नतीजा नहीं निकला. यूपी की करीब 25 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां दलित और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 

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यूपी ही नहीं, बिहार और झारखंड में INDIA के सीट बंटवारे पर पेंच फंसा हुआ है. बिहार में विपक्षी गठबंधन शायद एनडीए का वेट कर रहा था. उसे उम्मीद थी कि चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस में कोई एक नाराज जरूर होगा. हुआ भी वैसा ही. पारस ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है क्योंकि उन्हें सीट ही नहीं मिली. अब उन्हें विपक्षी अलायंस अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है. तीनों हिंदी भाषी राज्य महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां दोनों गठबंधनों के बीच सीधा मुकाबला होगा. भाजपा की बात करें तो उसने यूपी में 51 और झारखंड में 11 नाम घोषित कर दिए हैं. 

झारखंड का पेंच

यहां पर कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियां साथ हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 12, कांग्रेस ने एक और झामुमो ने एक सीट जीती थी. खबर है कि लालू की पार्टी RJD चतरा, पलामू के अलावा एक और सीट मांग रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस और झामुमो लालू की पार्टी को एक केवल सीट देने के मूड में है. इधर सोरेन परिवार की सदस्य सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो गई हैं. समझा जा रहा है कि इस हफ्ते सीट शेयरिंग का ऐलान हो सकता है. 

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यूपी का गेम

विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' यूपी में अपनी खोई जमान तलाशने में जुटा है. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नया नारा 'पीडीए' दिया है, जिसका मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक है. यूपी की राजनीति में इन तीनों वर्गों के बड़ी संख्या में मतदाता हैं. मायावती ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ सीट बंटवारे पर समझौता नहीं करेंगी. यहां कांग्रेस को लग रहा है कि मायावती के अकेले जाने से न सिर्फ मुस्लिम वोट बंटेगा बल्कि अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर भी छिटकेंगे. 

2019 के आम चुनाव में 80 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 62 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि एनडीए के घटक दल अपना दल (सोनेलाल) दो सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहा था. कांग्रेस एकमात्र रायबरेली सीट पर जीत हासिल करने में सफल हुई थी जबकि बसपा ने 10 और अखिलेश यादव की सपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी. राष्ट्रीय लोक दल 2019 आम चुनाव में खाता भी नहीं खोल सका था.

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