किस्सा कुर्सी का: तब पहली बार कैबिनेट मिनिस्टर बनी थीं सुषमा स्वराज, फिर किसने किया बर्खास्त?
Lok Sabha Elections 2024 News: लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी ने चर्चित नई दिल्ली सीट से पूर्व विदेश मंत्री दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को चुनाव मैदान में उतारा है. इसके बाद दिल्ली के लोग बांसुरी में उनकी मां की छवि देखने की कोशिश करने लगे हैं. सुषमा स्वराज ने समाजवादी धारा के साथ अपनी राजनीति की शुरुआत की थी.
Devi Lal Sacked Sushma Swaraj: 18वीं लोकसभा को चुनने के लिए हो रहे चुनाव में केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा ने दिल्ली की अहम सीट से अपनी दिवंगत नेता सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया है. लोकसभा चुनाव 2024 में बांसुरी स्वराज को काफी यंग उम्मीदवार बताया जा रहा है. यहां जिक्र जरूरी हो जाता है कि कभी छोटी उम्र को लेकर सुषमा स्वराज को भी राजनीतिक तौर पर निशाना बनाया गया था.
देवी लाल ने सार्वजनिक समारोह में सुषमा स्वराज को बर्खास्त किया
आइए, किस्सा कुर्सी का में जानते हैं कि समाजवादी धारा से राजनीति में अपने करियर की शुरुआत करने वाली सुषमा स्वराज जब पहली बार हरियाणा की कैबिनेट मिनिस्टर बन गई थीं. वहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री देवी लाल उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए राजी नहीं थे, क्योंकि वह बहुत छोटी थीं. हालांकि, तीन महीने के भीतर देवी लाल ने जुलाई 1977 में एक सार्वजनिक समारोह में अक्षमता का हवाला देते हुए सुषमा स्वराज को बर्खास्त करने की घोषणा कर दी थ।
चंद्रशेखर के सख्त रुख के बाद बतौर मंत्री बहाल हुईं स्वराज
जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर के सख्त रुख के बाद सुषमा स्वराज देवी लाल के मंत्रिमंडल में रहीं. उन्होंने देवीलाल के आकलन को गलत साबित कर दिया. सुषमा स्वराज आगे चलकर भाजपा में एक महत्वपूर्ण नेता बन गईं. बाद के दिनो में भाजपा ही उनका राजनीतिक घर बना रहा. सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और आखिरकार देश की पहली महिला विदेश मंत्री भी बनीं. हालांकि तकनीकी तौर पर उन्हें देश की दूसरी महिला विदेश मंत्री भी बताया जाता है.
25 साल की सुषमा स्वराज को बहुत छोटी और नाकाबिल बताया
देवी लाल भी उस समय जनता पार्टी के नेता थे. वह 25 साल की सुषमा स्वराज को यह कहते हुए मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए राजी नहीं थे कि वह "बहुत छोटी" थीं, लेकिन चंद्रशेखर के इस आग्रह के बाद कि उन्हें उनकी टीम में होना चाहिए, वह सहमत हो गए. सुषमा स्वराज तब जॉर्ज फर्नांडीस सहित विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी को चुनौती देने के लिए आपातकाल विरोधी राजनीतिक समूह द्वारा गठित एक कानूनी टीम का अहम हिस्सा थीं.
चंद्रशेखर की सबसे नई जीवनी में पूरे वाकए का विस्तार से जिक्र
राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश और रिसर्च स्कॉलर रवि दत्त बाजपेयी की लिखी चंद्रशेखर की सबसे नई जीवनी 'चंद्रशेखर : द लास्ट आइकॉन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स' में सुषमा स्वराज और अनुभवी समाजवादी नेता मधु लिमये की चंद्र शेखर के साथ एक बैठक का जिक्र किया गया है. इसमें सुषमा स्वराज ने शिकायत की थी कि उन्हें देवी लाल की ओर से बर्खास्त किया जा रहा है. बैठक के दौरान, स्वराज ने चंद्रशेखर से कहा कि वह "खुद को शर्मिंदगी से बचाने" के लिए इस्तीफा दे देंगी.
सुषमा-लिमये के जाते ही चंद्रशेखर को मिली बर्खास्तगी की खबर
बाद में चंद्रशेखर ने स्वराज को आश्वस्त करने की कोशिश की कि देवी लाल जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से परामर्श किए बिना कोई "कठोर कदम" नहीं उठा सकते. स्वराज और लिमये के चले जाने के तुरंत बाद, चंद्रशेखर को समाचार एजेंसियों से पता चला कि देवी लाल ने फ़रीदाबाद में एक समारोह में सुषमा स्वराज को बर्खास्त करने की घोषणा की थी. क्योंकि "उन्हें पर्याप्त सक्षम नहीं माना गया था." चंद्रशेखर ने देवी लाल को उन्हें बहाल करने की सलाह दी, लेकिन वह "अड़े" थे कि वह उन्हें वापस नहीं लेंगे.
स्वराज को बहाल नहीं किया गया तो देवी लाल नहीं रहेंगे सीएम
किताब में लिखा है, "चंद्रशेखर अपनी जिद पर थे और उन्होंने देवी लाल से कहा कि अगर सुषमा स्वराज को मंत्री के रूप में बहाल नहीं किया गया, तो वह भी मुख्यमंत्री नहीं रह सकते. चंद्रशेखर ने घोषणा की कि पार्टी प्रमुख के रूप में देवी लाल को जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करना उनके अधिकार क्षेत्र में है. देवी लाल ऐसी सीधी कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थे.''
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देवी लाल के गुरु चौधरी चरण सिंह ने भी दिया चंद्रशेखर का साथ
इसके बाद देवी लाल अपने गुरु चौधरी चरण सिंह से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे. उन्होंने चंद्रशेखर से भी घटनाक्रम के बारे में पूछा. चंद्रशेखर ने सिंह को बताया कि देवी लाल ने केंद्रीय नेतृत्व से परामर्श किए बिना सुषमा स्वराज के खिलाफ कार्रवाई की और एक सार्वजनिक समारोह में निर्णय की घोषणा की. इस पर चरण सिंह ने अपना आपा खो दिया और चंद्रशेखर से देवी लाल को तुरंत निष्कासित करने को कहा और मामला वहीं सुलझ गया. किताब में कहा गया है कि सुषमा स्वराज आखिरकार कैबिनेट में बनी रहीं.