Gandhi Family In Raebareli: उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से 2004 से 2024 तक लगातार सांसद रहीं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक रैली में स्थानीय लोगों से कहा कि आपको अपना बेटा सौंप रही हूं. लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की इस पारंपरिक सीट से राहुल गांधी नामांकन के आखिरी दिन उम्मीदवार बनाए गए. हालांकि, यूपी की यह हॉट सीट हमेशा कांग्रेस के कब्जे में नहीं रही है. 


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इंदिरा गांधी के अलावा कांग्रेस के दो और उम्मीदवारों की हार


कांग्रेस की अध्यक्ष और देश की प्रधानमंत्री रह चुकीं इंदिरा गांधी भी रायबरेली से लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं. उनके अलावा कांग्रेस के दो और उम्मीदवार विक्रम कौल और दीपा कौल भी यहां चुनावी हार का सामना कर चुके हैं. हालांकि, 1952 से लेकर 2019 तक इन तीन मौकों को छोड़ दिया जाए तो यह सीट हमेशा कांग्रेस के पास रही. आइए, 'किस्सा कुर्सी का' में जानते हैं कि फिरोज गांधी से लेकर राहुल गांधी तक रायबरेली में कब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. 


रायबरेली में फिरोज गांधी ने मजबूत की परिवार की सियासी नींव


रायबरेली से भाजपा के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह प्रचार अभियान के दौरान लगातार यह सवाल उठाते हैं कि राहुल गांधी इस सीट से पहले सांसद और अपने दादा फिरोज गांधी का नाम क्यों नहीं ले रहे हैं. दरअसल, देश के पहले आम चुनाव 1952 में पहली बार फिरोज गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा था. उन्होंने 1957 में दोबारा जीत हासिल की थी. फिरोज गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी ने 1967, 1971 और 1980 में रायबरेली से जीत हासिल की.


1977 में जनता पार्टी के राजनारायण ने इंदिरा गांधी को दी मात 


इसी बीच, लोकसभा चुनाव 1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने रायबरेली में इंदिरा गांधी को मात दी थी. राजनारायण को कुल 1 लाख 77 हजार 719 वोट मिले थे. यह कुल वोट का करीब 52 फीसदी था. वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार इंदिरा गांधी को लगभग 36 फीसदी यानी 1 लाख 22 हजार 517 वोट मिले थे. इस तरह राजनारायण रायबरेली के पहले गैर कांग्रेसी सांसद बने थे. हालांकि, बाद में इंदिरा गांधी ने 1980 में वापसी की.


1996 और 1998 में रायबरेली में चौथे नंबर पर रही कांग्रेस


इंदिरा गांधी के निधन के बाद पहले अरुण नेहरू और फिर 1989 और 1991 में शीला कौल रायबरेली की सांसद बनीं. साल 1999 में कांग्रेस के टिकट पर कैप्टन सतीश शर्मा सांसद बने। इसके बाद यहां साल 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सोनिया गांधी ने जीत दर्ज की. अब 2024 में राहुल गांधी कांग्रेस उम्मीदवार हैं. इस बीच, साल 1996 और 1998 में कांग्रेस प्रत्याशी रायबरेली में चौथे नंबर पर रहे. 1996 में कांग्रेस ने यहां विक्रम कौल और 1998 में दीपा कौल को चुनाव मैदान में उतारा था.


रायबरेली में भाजपा को सिर्फ दो बार मिली है जीत 


रायबरेली सीट पर भाजपा उम्मीदवार सिर्फ दो बार जीत दर्ज कर पाए हैं. साल 1996 और साल 1998 में भाजपा के अशोक सिंह ने जीत दर्ज की थी. 1996 में भाजपा के अशोक सिंह (पुत्र देवेंद्र नाथ सिंह) ने जनता दल के अशोक सिंह (पुत्र राम इकबाल सिंह) को मात दी थी. वहीं, साल 1998 में अशोक सिंह ने ही सपा के सुरेंद्र बहादुर सिंह को चुनाव मैदान में मात दी थी. 1977, 1996 और 1998 के अलावा रायबरेली में हमेशा कांग्रेस के सांसद रहे हैं.


रायबरेली में राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनावी जिम्मेदारी


उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार और कांग्रेस के पास फिलहाल रायबरेली ही इकलौती सीट बची है. इसलिए, राहुल गांधी पर अपनी सियासत के साथ ही यूपी में पार्टी और परिवार की साख भी बचाने की जिम्मेदारी है. राहुल के लिए उतना आसान इसलिए नहीं है कि रायबरेली में कांग्रेस का वोट मार्जिन चुनाव दर चुनाव घट रहा है. वहीं, यूपी में गांधी परिवार की खानदानी सीट कही जाने वाली अमेठी को पिछली बार राहुल गांधी गवां बैठे थे. 


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जब फ्लाइट में प्रियंका गांधी से मिले थे रायबरेली के भाजपा प्रत्याशी


लोकसभा चुनाव 2024 में रायबरेली सीट से भाजपा के उम्मीदवार, योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता दिनेश प्रताप सिंह ने दो साल पहले की प्रियंका गांधी वाड्रा से आमने-सामने होने की कहानी बताई थी. दिनेश प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया पर किस्सा शेयर किया था कि दिल्ली से लखनऊ की फ्लाइट में उनकी मुलाकात कांग्रेस महासचिव से हुई और रायबरेली सीट को लेकर बात परिवार, सांसद और कुर्सी पर खतरे तक पहुंच गई थी. उन्होंने सोनिया गांधी की जीत में भाजपा नेता की छिपी हुई मदद का भी जिक्र किया था. 


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