Lok Sabha Chunav Results 2024: लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने बलबूते बहुमत नहीं हासिल कर सकी. पार्टी के 240 सीटें जीतने का मतलब है कि उसे सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी. गनीमत रही कि बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है. NDA को कुल 293 सीटें हासिल हुई है. भारत में गठबंधन पॉलिटिक्स की वापसी अगर किसी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनने वाली है तो वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.


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2024 के नतीजों ने 2014 के बाद बीजेपी को सबसे तगड़ा झटका दिया. खुद पीएम मोदी की साख पर बट्टा लगा. पिछले 10 सालों में बीजेपी की हर कामयाबी का क्रेडिट लेने वाले मोदी को 2024 के नतीजों ने राजनीतिक रूप से कमजोर कर दिया है. देश 1998-2014 वाले उस दौर में लौट रहा है जब राजनीति दो मोर्चों के बीच सिमटी रहती थी. मोदी उन नेताओं में से नहीं जो मिली-जुली सरकार चलाने में सहज हों, उन्हें टोटल कंट्रोल की आदत है. ऐसे में, तीसरी बार पीएम बनकर अगर उन्हें गठबंधन की सरकार पूरे पांच साल तक चलानी है तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर अमल करना होगा.


गठबंधन की राजनीति में माहिर थे वाजपेयी


वाजपेयी को गठबंधन की राजनीति का पुरोधा माना जाता है. 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में वाजपेयी ने जिस तरह परस्पर विरोधी सोच वाले दलों को एक साथ किया, भारतीय राजनीति में वैसी दूसरी मिसाल नहीं मिलती. मई 1998 में, वाजपेयी की पहल पर बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए का गठन हुआ. सालभर में गठबंधन टूट गया लेकिन वाजपेयी ने परिवार में नए सदस्य जोड़े और फिर पीएम बने. वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए ने 1999 से 2004 तक, पूरे पांच साल काम किया. उस समय NDA के भीतर करीब 24 पार्टियां शामिल थीं. वह दौर भले ही दूसरा हो, लेकिन गठबंधन की तमाम बंदिशों के बावजूद वाजपेयी ने जिस तरह सरकार चलाई, उसकी विरोधी आज भी सराहना करते हैं.


गठबंधन की कई चुनौतियों से पार पाते हुए वाजपेयी ने घरेलू मोर्चे पर कई आर्थिक और ढांचागत सुधार लागू किए. प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दिया और विदेशी निवेश भी जुटाया. वाजपेयी के पीएम रहते भारत ने पोकरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया और कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाई.


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गठबंधन सरकार चलाने का 'अटल' मंत्र


वाजपेयी और मोदी की कार्यशैली में जमीन-आसमान का अंतर है. पिछले 10 साल में मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को पूरी सरकार का केंद्र बनाए रखा. लेकिन गठबंधन की बैसाखी के सहारे सरकार चलाते हुए वह ऐसा नहीं कर पाएंगे. मोदी ने 2024 लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कई बार कहा कि 'मैं झुकूंगा नहीं, मैं रुकूंगा नहीं, मैं थकूंगा नहीं...' लेकिन गठबंधन पॉलिटिक्स का दबाव उन्हें झुकने पर भी मजबूर करेगा और कभी-कभी रुकने पर भी. ऐसे में मोदी को वाजपेयी की एक कविता से हिम्मत मिल सकती है.


वाजपेयी का कवि हृदय अक्सर अपनी बात कविता के माध्यम से कहता था. उनका ही लिखा है कि-


'...उजियारे में, अंधकार में,


कल कहार में, बीच धार में,


घोर घृणा में, पूत प्यार में,


क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,


जीवन के शत-शत आकर्षक,


अरमानों को ढलना होगा.


कदम मिलाकर चलना होगा...'


जी हां, गठबंधन की स्थायी सरकार चलानी है तो सहयोगियों के साथ 'कदम मिलाकर चलना होगा'. तीसरी बार पीएम बनने के बाद पीएम मोदी को NDA के सहयोगियों की बात सुननी पड़ेगी. अहम फैसलों से पहले उनकी राय लेनी पड़ेगी. प्रेशर पॉलिटिक्स से जूझते हुए अपनी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाना होगा. पूर्व पीएम वाजपेयी के शब्दों में कहें तो 'कदम मिलाकर चलना होगा.'