Saharanpur Lok Sabha Election 2024: वर्ष 2019 में जब पूरे देश में पीएम मोदी की लहर थी, तब भी बीजेपी यूपी की सहारनपुर सीट से चुनाव हार गई थी. यह उन 17 सीटों में एक है, जिस पर हार की कसक बीजेपी को आज भी है. बीजेपी इस सीट पर एक बार फिर कमल खिलाने के लिए जोर- शोर से जुटी है. इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए यूं तो तमाम मुद्दे हैं लेकिन अंत में आते- आते मुद्दा हिंदू- मुस्लिम का हो जाता है. संख्या में कम होने के बावजूद अपनी एकजुटता के बल पर अधिकतर बार मुस्लिम उम्मीदवार यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रहे हैं. इस बार भी लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे क्षेत्र में चर्चाएं तेज हो रही हैं.  


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सहारनपुर लोकसभा सीट रिजल्ट 2024


सहारनपुर लोकसभा सीट पर पिछली बार बसपा के हाजी फजलुर्ररहमान ने जीत दर्ज की थी. इस बार इमरान मसूद इस सीट पर जीत के लिए दावेदार बनकर उभरे हैं. वे कांग्रेस और सपा के संयुक्त प्रत्याशी हैं.


हरियाणा- उत्तराखंड से जुड़ी सीमा


सहारनपुर जिला प्रशासन की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक सहारनपुर जिला उत्तर और उत्तर-पूर्व में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो उसे उत्तरांचल राज्य के देहरादून जिले  से अलग करता है. इसके पश्चिम में यमुना नदी बहती है, जो इसे हरियाणा के करनाल और यमुनानगर जिलों से अलग करती है. वर्ष 1989 तक हरिद्वार भी इसे जिले का हुस्सा हुआ करता था. इसके दक्षिण में जिला मुज़फ्फरनगर स्थित है. यह जिला आयताकार आकार में फैला है. इसका कुल क्षेत्रफल 3,689 वर्ग किलोमीटर है. वर्ष 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक इसे जिले की जनसंख्या 21 लाख 49 हजार 291 थी, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 34 लाख 67 हजार 332 हो गई. जिले के अधिकतर लोग खेती पर आश्रित हैं. मां शाकुंभरी देवी जैसे दिव्य मंदिर और दारूल उलूम देवबंद जैसे मुस्लिम संस्थान इसकी खास पहचान हैं. 


जातिगत आंकड़े


सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र एक सामान्य श्रेणी की सीट है. इसमें करीब 14 लाख वोटर हैं. इनमें से करीब 60 पर्सेंट हिंदू और 40 पर्सेंट मुसलमान माने जाते हैं. एकजुट होकर वोट करने की प्रवृति की वजह से इस सीट पर अधिकतर मुसलमान उम्मीदवारों का बोलबाला रहा है.  हिंदुओं में जातीय आधार पर बात करें करीब 2 लाख गुर्जर, 2 लाख राजपूत, 3 लाख दलित और 2 लाख अन्य जातियों के लोग माने जाते हैं. यानी करीब 9 लाख हिंदू वोटर्स हैं. जबकि करीब 5 लाख मुस्लिम वोटर्स हैं. 


सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र में शामिल असेंबली सीटें


असेंबली सीट मौजूदा विधायक पार्टी
बेहट उमर अली खान सपा
सहारनपुर नगर राजीव गुम्बर बीजेपी
सहारनपुर आशु मलिक सपा
देवबंद ब्रजेश सिंह बीजेपी
मनिहारन (SC) देवेंद्र निम बीजेपी

लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास


लोकसभा चुनाव विजेता पार्टी
2019 हाजी फजलुर्रहमान सपा
2014 राघव लखनपाल बीजेपी
2009 जगदीश सिंह राणा बीएसपी
2004 काजी रशीद मसूद सपा
1999 मंसूर अली खान बसपा

किन मुद्दों का रहेगा असर


देश के बाकी हिस्सों की तरह सहारनपुर में भी मुद्दों की भरमार है. चूंकि यह कृषि प्रधान जिला है, इसलिए सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी किसानों की दुर्दशा का मुद्दा उठा रही हैं. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि किसानों के लिए खेती करना बेहद मुश्किल हो गया है. खेती करने से उसकी लागत तक नहीं निकल पा रही है. वे युवाओं में बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा का मुद्दा भी जोरशोर से उठा रहे हैं. वहीं बीजेपी इन चुनाव में राम मंदिर, गुंडाराज के खात्मे और सुशासन को आधार बनाकर चुनावी मैदान में उतर रही है. उसके दावे का असर क्षेत्र में दिखता भी है और लोग भी कानून- व्यवस्था में सुधार की तारीफ करते हैं. लेकिन यह तारीफ वोटों में कितना तब्दील हो पाएगी, यह देखने लायक बात होगी. 


किन पार्टियों के बीच हो सकती है टक्कर?


इस बार का चुनाव 2 बड़े गठबंधनों के बीच होने के आसार हैं. सपा और कांग्रेस अपना गठजोड़ कर चुके हैं. सपा ने समझौते के तहत प्रदेश की 80 में से 17 सीटें कांग्रेस को दी हैं. उन्हीं 17 सीटों में से एक सहारनपुर भी है. यानी यहां से कांग्रेस का उम्मीदवार गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ेगा. जबकि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद जयंत चौधरी बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का इशारा कर चुके हैं. ऐसे में दूसरा गठबंधन बीजेपी और आरएलडी का होगा. जबकि किसी जमाने में कद्दावर रहीं मायावती की बसपा यहां पर अकेले ताल ठोंकेगी.


क्या इमरान मसूद का पूरा होगा सपना?


इस चुनाव में कांग्रेस की ओर इमरान मसूद को टिकट दिए जाने की चर्चा जोरों पर है. वर्ष 2019 में हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उतरे इमरान मसूद ने दो लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे. जबकि सपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान 5 लाख से ज्यादा वोट पाकर चुनाव जीत गए हैं. चूंकि अब सपा- कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है. ऐसे में इस गठबंधन के उम्मीदवार से कड़ी टक्कर देने की उम्मीद की जा रही है. जबकि बीजेपी की ओर से राघव लखनपाल की दावेदारी मजबूत बताई जा रही है. वे वर्ष 2014 से 2019 के बीच इस सीट से सांसद रहे थे और वर्ष 2019 में हुए चुनाव में फजलुर्रहमान के हाथों केवल 20 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. अगर उन्हें टिकट मिलता है तो इमरान मसूद और राघव लखनपाल के बीच जबरदस्त फाइट देखने को मिल सकती है. 


दलित वोटर के हाथ में उम्मीदवारों का भाग्य


इस सीट पर 3 लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं, जिनमें से अधिकतर जाटव हैं. यह समुदाय आमतौर पर मायावती की बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता रहा है. इस सीट को जीतने के लिए बीएसपी एक खास रणनीति अपनाती थी. वह इस सीट पर किसी मुस्लिम उम्मीदवार को उतारती थी, जिसके बाद दलित, मुस्लिम मतदाता मिलकर उसे एकमुश्त वोट कर देते थे. वहीं अन्य जातियों का भी कुछ वोट उसे मिल जाता था, जिसकी वजह से उसका प्रत्याशी जीत जाता था. 


जिधर शिफ्ट हुए, वही जीतेगा गठबंधन


लेकिन केंद्र में जब से मोदी सरकार का उभार हुआ है, तब से तेजी से दलित वोटरों का बीजेपी की झुकाव बढ़ा है. इसके साथ ही बसपा की ताकत भी तेजी से घटी है. राजनीतिक एक्सपर्टों का कहना है कि बदलाव का यह दौर अब भी जारी है और दलित वोटर्स के बीच में पीएम मोदी काफी हद तक पैठ बना चुके हैं. ऐसे में इस सीट पर दलित वोटर्स के हाथ में ही हार-जीत की कुंजी सिमट गई है. दलित वोटर्स जिधर भी शिफ्ट हो जाएंगे, उसी गठबंधन को जीत मिलते देर नहीं लगेगी.