UP New Alliance: पटेल+मुस्लिम+... पल्लवी के सहारे ओवैसी ने चला बड़ा दांव, पर UP में कहां खड़ा है तीसरा मोर्चा?
Pallavi Patel Owaisi News: केशव प्रसाद मौर्य को विधानसभा चुनाव में हराने वाली पल्लवी पटेल ने नई राह चुनी है. उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ यूपी में गठबंधन किया है. नजरें पूर्वी यूपी के कुर्मी और मुस्लिम वोटों को एकजुट करने पर है. ओवैसी गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के घर भी गए थे. यह गठबंधन कितना मजबूत दिख रहा है?
Pallavi Patel New Alliance: यूपी चुनाव से पहले शायद पल्लवी पटेल का नाम कम लोगों ने सुना हो. बहन अनुप्रिया पटेल से खटपट के बाद अलग पार्टी बनाने वाली अपना दल (कमरेवादी) की नेता पल्लवी पटेल सपा के टिकट पर सिराथू से चुनाव लड़ी थीं. नतीजों ने भाजपा को जोरदार झटका दिया. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अपनी सीट हार गए. किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि राज्य में भाजपा के लिए प्रचार कर रहे मौर्य अपनी सीट से ही हाथ धो बैठेंगे. अब लोकसभा चुनाव से पहले पल्लवी ने सपा से रिश्ते खत्म कर यूपी में तीसरे मोर्चे की नींव रख दी है. खास बात यह है कि उनके साथ हैदराबाद से आए असदुद्दीन ओवैसी ने हाथ मिलाया है. यह सपा के लिए टेंशन तो भाजपा के लिए अच्छी खबर हो सकती है.
अखिलेश को टेंशन क्यों?
कुछ घंटे पहले जब हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर पल्लवी पटेल ने यूपी में तीसरे गठबंधन की घोषणा की तो सपा के लिए इसे बड़ी चुनौती बताया जाने लगा. इसकी वजह है. अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की तर्ज पर पल्लवी पटेल ने पिछड़ा, दलित और मुसलमान समीकरण पर चलते ही PDM नाम दिया है. पल्लवी के खेमे ने मंशा जता दी है कि वे सीधे तौर पर सपा को टक्कर देने वाले हैं. बताया जा रहा है कि अपना दल (कमेरावादी) पूर्वांचल समेत 30 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है.
यहां ओवैसी की भूमिका को समझना जरूरी है. वह पहले भी यूपी-बिहार के चुनावी समर में कूदे हैं लेकिन मुस्लिम वोटों के अलावा वोटबैंक नहीं बढ़ा सके. कुछ जगह पार्षद आदि भी जीतते रहे. उन्हें कभी बीजेपी की बी-टीम कह दिया जाता तो कभी वोट काटने के हिसाब से आरोप लगाए जाते. इस बार उन्होंने स्थानीय पटेल वोटरों में अच्छा खासा दखल रखने वाली पल्लवी पटेल और कुछ अन्य स्थानीय दलों को साथ लाकर पिछड़ा, दलित और मुस्लिम गड़जोड़ बनाया है. यह इन समुदाय के वोटरों को एकजुट करने की कोशिश है. इसे ओवैसी का बड़ा दांव माना जा रहा है. मुस्लिम वोट सपा और ओवैसी की पार्टी में बंटने से भाजपा को टेंशन कम होगी. वैसे, अब भगवा दल यह भी दावा करता है कि उसे मुस्लिम समाज के लोग वोट करने लगे हैं.
पल्लवी के प्रभाव वाली सीटें
राज्यसभा चुनाव के समय ही पल्लवी सपा से नाराज हो गई थीं. अब उनके मोर्चेबंदी से पूर्वी यूपी में सपा की राह मुश्किल हो सकती है. पिता सोनेलाल की विरासत को आगे बढ़ा रही पल्लवी पटेल की पार्टी की फूलपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ़ और कौशांबी सीटों पर अच्छी पकड़ है. यहां जान लीजिए कि यूपी में कुर्मी वोटर 6 फीसदी हैं. इसमें कुछ एनडीए को वोट करते हैं और कुछ पल्लवी के साथ जाते हैं.
ओवैसी की ललकार
यूपी में गठबंधन के जरिए चुनावी समर में कूदे ओवैसी ने कहा है कि वो वाला पीडीए (अखिलेश वाला) जमीन पर कुछ नहीं था. ना अंदरूनी कोई कमिटमेंट था. ये जो बनाया गया है सामाजिक न्याय के लिए बड़ा कदम होगा. आगे AIMIM सांसद ने कहा कि इसे सिर्फ लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया है. आने वाले विधानसभा चुनाव तक हमारी बहन पल्लवी पटेल और दूसरे पार्टियों के साथ हम काम करेंगे. सपा पर बरसते हुए उन्होंने कहा कि उनका एमवाई फैक्टर काम नहीं करता, केवल वाई फैक्टर है.
क्या मुसलमान सिर्फ दरी बिछाएं
ओवैसी ने अखिलेश पर बरसते हुए कहा कि अगर वह दिल बड़ा करते और वाकई में काम करते तो ये दिन देखना नहीं पड़ता. उनका मकसद है कि मुसलमान अंधे बनें और उनको वोट डालते रहें. मुसलमान सिर्फ दरी बिछाएं. नौजवान मुस्लिम पुकारें कि भैया पर जवानी कुर्बान.
गठबंधन की अगुआ पल्लवी लेकिन...
तीसरे मोर्चे की पूरी पिक्चर देखिए तो साफ है कि पल्लवी पटेल की इसकी अगुआ रहने वाली हैं. हालांकि उनके लिए रास्ता आसान नहीं है. उनकी बहन अनुप्रिया का एनडीए सरकार में कद बढ़ता गया. इस बार भी उन्हें मनमाफिक सीटें मिली हैं. इधर, विधानसभा चुनाव में सिर्फ पल्लवी ही जीत सकी थीं, वो भी सपा के टिकट पर. उनके सारे प्रयोग अब तक फेल रहे हैं. अब उनके सामने पार्टी के वजूद को बनाए रखने की चुनौती है.
1995 में अपना दल की नींव डॉ. सोनेलाल पटेल ने रखी थी लेकिन उनके निधन के बाद विरासत की लड़ाई शुरू हो गई. दोनों बहनों में कानूनी फाइट भी चली. बाद में अपना दल दो धड़ों में बंट गया. अपना दल (कमेरावादी) की कमान सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल मिलकर संभालती हैं. अपना दल (सोनेलाल) का नेतृत्व अनुप्रिया पटेल कर रही हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में पल्लवी पटेल ने कांग्रेस से गठजोड़ किया था. कृष्णा पटेल कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लड़ीं लेकिन हार गईं. पल्लवी के पति कांग्रेस के सिंबल पर फूलपुर से हारे. कानपुर में पहले ही हार मिल चुकी है.
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हां, सपा के साथ होने से पल्लवी पटेल का ग्राफ जरूर बढ़ रहा था लेकिन नए गठबंधन से कितनी सफलता मिलती है, ये नतीजे ही बताएंगे. कुछ लोग यूपी के घटनाक्रम की तुलना बिहार चुनाव के 'चिराग पासवान इफेक्ट' से करने लगे हैं. तीसरे मोर्चे में पल्लवी पटेल, ओवैसी के अलावा प्रेमचंद बिंद की प्रगतिशील मानव समाज पार्टी और राष्ट्रीय उदय पार्टी शामिल हैं. फिलहाल इन पार्टियों का कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं है.
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