Vijay Setupati Web Series: शाहिद कपूर फर्जी के दूसरे ही मिनिट में अपने दोस्त से कहते हैं, ‘हमने इस दुनिया के सबसे ईमानदार आदमी की फोटो सबसे कमीनी चीज पर छाप दी है.’ तभी आप समझ जाते हैं कि जाली नोटों का यह जाल दूर तक बिछा है. अमेजन प्राइम वीडियो पर करीब एक-एक घंटे लंबे आठ एपिसोड्स में फैली निर्देशक राज-डीके की यह वेब सीरीज नकली नोट छापने की कला में बड़ी गहराई तक उतरती है. मगर समस्या यह है कि इसका पूरा फोकस ऐसे हीरो को खड़ा करने में रहता है, जो लगातार गलत काम में करता जाता है. इसके लिए कहानी उसके हक में तर्क देती जाती है. फर्जी की कहानी सनी यानी शाहिद कपूर की है. सनी को उसके पिता ने छोड़ा, मां नहीं रही, तो उसके नाना (अमोल पालेकर) ने पाला. नाना देश-दुनिया में क्रांति लाना चाहते हैं और क्रांति नाम की छोटा-सी अखबारनुमा पत्रिका निकालते हैं. नाना महान पेंटर हैं, मगर लोकप्रिय नहीं है. उन्हीं से सनी के खून में चित्रकारी की कला आई है और क्रांति के इरादे भी. वह किसी भी पेंटिंग को हू-ब-हू दूसरे कैनवास पर उतारता है और लगातार सिस्टम में अमीर-गरीब के भेद की बात करता है. सनी की नकली पेंटिंग बिल्कुल असली जैसी होती है और यही आर्ट उसे जाली नोट डिजाइन करने और नाना के प्रिंटिंग प्रेस में छापने का रास्ता दिखाता है. मगर क्या इतने में कहानी खत्म हो सकती हैॽ


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आगे-पीछे मगर आमने-सामने नहीं
अगर आप शुरुआती दो एपिसोड धीरज से देख लेंगे तो आगे बढ़ जाएंगे क्योंकि फिर-फिर नए-नए किरदार आते जाते हैं. कहानी आगे बढ़ती जाती है. हर फर्जी चीज को असली की टक्कर में खड़ी करने वाले सनी के सामने यहां पुलिस अफसर माइकल (विजय सेतुपति) है. वास्तव में इसी बिंदु पर सीरीज सबसे ज्यादा निराश करती है. ये दोनों आमने-सामने तो हैं परंतु आठों एपिसोड में आप सिर्फ इंतजार करते रहते हैं कि कब किसी राह पर वे एक-दूसरे के मुकाबले खड़े नजर आएंगे. अच्छी कास्टिंग और काफी हद तक कसी हुई अच्छी राइटिंग के बावजूद फर्जी के मेकर्स माइकल का किरदार रचने में गच्चा खा गए. माइकल की कहानी सैकड़ों फिल्मों या दर्जनों वेब सीरीज में नजर आने वाले पुलिस अफसरों की कहानी जैसी है. बर्बाद घरेलू जिंदगी, बीवी (रेगिना कासांद्रा) से बच्चे की कस्टडी की लड़ाई, डिपार्टमेंट में किसी काम का न होना, नाकाम ऑपरेशन के ठीकरे, नेताओं की डांट-डपट, लालफीताशाही का शिकार वगैरह-वगैरह. अगर माइकल के किरदार को नए अंदाज में गढ़ा जाता तो बात ज्यादा बेहतर बन सकती थी. फर्जी का तीसरा अहम सिरा के के मेनन हैं.


वो हर चीज चाहिए जो...
मंसूर दलाल के रूप में मेकर्स जाली नोटों का सिरा काठमांडू से जोड़ा है. पुलिस उसके पीछे है और कैसे वह बच निकलता है और कैसे सनी के साथ उसका कनेक्शन बैठता है. यह बात सीरीज को आगे बढ़ाती है. सनी सिर्फ बातों-इरादों में ही नहीं धीरे-धीरे अपने काम में भी सिस्टम के खिलाफ होता जाता है. उसकी निजी जिंदगी भी बिखरी है. उसे मां-बाप के प्यार तो पहले ही नहीं मिला. वह हर चीज, जिस पर उसे अपना हक महसूस होता है, उसकी पहुंच से बाहर रही. सनी के दोस्त की जुबानी निकला यह संवाद उसके किरदार की खबर देता है, ‘तुझे वो चीज चाहिए क्योंकि तुझे पता है वो तेरी औकात के बाहर है.’ सनी का किरदार इमोशनल है. वह अपराध की दुनिया में कदम जरूर रखता है, लेकिन पूरी तरह अपराधी नहीं बन पाता. उसे अपने आस-पास के लोगों की चिंता है. शाहिद ने अपने किरदार को अच्छे ढंग से निभाया है. सनी की जिंदगी में वह उतरे हैं. उनकी बॉडी लैंग्वेज और संवाद अदायगी रोल के हिसाब से है. फर्जी की कहानी यहां खत्म नहीं हुई है, बल्कि यह दूसरे सीजन में जाएगी. तब तय है शाहिद नए रूप-रंग में दिखाई देंगे.


एक और युनिवर्स की झलक
सीरीज में देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने वाले नकली नोटों की पृष्ठभूमि में पुलिस-अपराधियों की लड़खड़ाने वाली रेस को बीच में आने वाले कलाकार संभालते हैं. अमोल पालेकर अपनी भूमिका में जमे हैं. सनी को बचपन के दोस्त फिरोज बने भुवन अरोड़ा का बहुत सहारा मिला. कई जगह शाहिद और भुवन की बातचीत रोचक है. राशि खन्ना, रेगिना कासांद्रा, जाकिर हुसैन समय-समय पर अपनी मौजूदगी दिखाते हैं. इस कहानी का ‘फैमेली मैन’ से भी छोटा-सा कनेक्शन मेकर्स ने जोड़ा है. इन दिनों तमाम लेखक-निर्देशक अपने किरदारों का ‘युनिवर्स’ बनाने में जुटे हैं. लेकिन जरूरी है कि किरदारों के साथ उनके पास अच्छी कहानियां, नए ढंग की सोच भी रहे. ऐसा नहीं है कि फर्जी देखकर आप निराश होंगे, परंतु आपको वह नयापन यहां गायब मिलेगा, जिसकी तलाश आप कम से कम ओटीटी पर तो करते हैं. जिसकी उम्मीद फर्जी के ट्रेलर ने जगाई थी. शाहिद की मौजूदगी भले ही सीरीज में स्टार पावर जोड़ती है परंतु इसे परिवार-बच्चों के साथ नहीं देखा जा सकता. आपके पास समय है तो निश्चित ही सीरीज देख सकते हैं. इसे खूबसूरती से शूट किया और तसल्ली से बनाया गया है. ऐसे में आप भी अपने पास लंबा समय रखकर ही इसे देखने बैठें.


निर्देशकः शाहिद कपूर, विजय सेतुपति, भुवन अरोड़ा, अमोल पालेकर, राशि खन्ना, के के मेनन
सितारेः राज एंड डीके
रेटिंग ***


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