एक पुरानी कहावत है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. इस बात को कारगिल पुलिस ने चरितार्थ किया है. 26 साल पहले चार लोग लापता हो गए थे. लद्दाख की हिस्‍ट्री में ये अब तक का सबसे बड़ा अनसुलझा रहस्‍य था. अब पुलिस ने उस केस की गुत्‍थी को सुलझा लिया है. 7 अक्‍टूबर 1998 की बात है जब तंगोल के रहने वाले बशीर अहमद ने पुलिस को सूचित किया कि उसका भाई मोहम्‍मद अली अपने तीन दोस्‍तों के साथ लापता हो गया है. उसके साथ हाजी अनायत अली (कारगिल), शेरो अली (कठुआ) और नजीर अहमद का भी पता नहीं चल रहा है. ये लोग मवेशी खरीदने के लिए वर्दवान गए थे लेकिन वापस नहीं लौटे. पुलिस ने जांच की तो तीन लोगों मो रफीक एवं मो फरीद (हीरानगर निवासी, कठुआ) और अब्‍दुल अजीज (नियानी, सांबा) पर शक गया.  


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 हाजी अनायत के भतीजे मो युसूफ ने 17 अप्रैल, 1999 को इस केस की औपचारिक शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने एफआईआर दर्ज करते हुए उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की. पुलिस ने पूछताछ की लेकिन कुछ सुराग हासिल नहीं हुआ. तीनों आरोपियों को जमानत मिल गई. सालों केस चला और उन चारों लोगों की तलाश हुई लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. नतीजतन 2007 में केस बंद कर दिया गया. 


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उसके बाद 2011 में अचानक पुलिस को कनिटाल ग्‍लेशियर में कुछ कंकाल मिले. उनकी डीएनए जांच की गई तो ये कंकाल नजीर अहमद और शेरो अली के निकले. 2012 में इस तरह के प्रमाण मिलने के बाद फिर से केस की जांच की गई और कत्‍ल की धारा जोड़ते हुए आरोपियों की फिर से तलाश की गई. लेकिन खानाबदोश लाइफस्‍टाइल के इन आरोपियों तक पुलिस नहीं पहुंच पाई. लेकिन पुलिस लगातार केस की जांच में लगी रही और आखिरकार कठुआ के हीरा नगर में उसने मुखबिरों की मदद से आरोपियों को पकड़ लिया. सात दिन की पुलिस रिमांड में आरोपियों ने उस गुनाह को कबूल कर लिया जो पहले सबूत नहीं मिलने के कारण इनके बचने का सहारा बना था.