हैदराबाद के निजाम को मिला सबक...तब बनी थी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
लोग मदन मोहन मालवीय को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्थापक के रूप में तो जानते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि कैसे उन्होंने हैदराबाद के निजाम को सबक सिखाया था, जिसके बाद ही उन्होंने बीएचयू की स्थापना की.
नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने अतुलनीय योगदान के लिए जाने जाने वाले मदन मोहन मालवीय को विश्व प्रसिद्ध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक के रूप में सबसे ज्यादा याद किया जाता है. आज लोग मदन मोहन मालवीय के बारे में तो जानते हैं, लेकिन जो बात काफी हद तक अज्ञात है, लोग उसके बारे में नहीं जानते. दरअसल, मदन मोहन मालवीय और सबसे अमीर भारतीय निजाम - जिन्हें हैदराबाद के निजाम के नाम से भी जाना जाता है, उनके बीच एक घटना हुई थी, जिसने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की नींव का मार्ग प्रशस्त किया था.
साल 1916 में, पंडित मदन मोहन मालवीय ने एक विश्वविद्यालय शुरू करने की सोची, जिसके लिए उन्होंने धन जुटाने के लिए काफी मेहनत की. लेकिन अमीर व्यापारियों से लेकर जमींदारों तक, जहां भी मालवीय जी गए, वहां किसी ने भी उन्हें स्पष्ट रूप से उत्तर नहीं दिया. इसके बाद उन्होंने हैदराबाद के निजाम के दरबार में प्रवेश किया, जिन्हें उस समय दुनिया का सबसे अमीर आदमी माना जाता था. धन के लिए मालवीय के अनुरोध को खारिज करते हुए, निजाम क्रोधित हो गया और कहा, "तुम्हारी मेरे पास धन के लिए आने की हिम्मत कैसे हुई और वह भी एक हिंदू विश्वविद्यालय के लिए?" अपनी अपमानजनक दहाड़ के बाद, निजाम ने अपना जूता उतार कर मालवीय पर फेंक दिया.
अपमानित महसूस करने और दरबार छोड़ने के बजाय, मालवीय ने निजाम का जूता उठाया और एक शानदार विचार के साथ बाजार चले आए. उन्होंने जूते को नीलामी के लिए रख दिया. चूंकि यह जूता राजघराने का था, इसलिए कई अमीर लोग इसे खरीदने के लिए आगे आए. यह खबर कुछ ही समय में निजाम तक पहुंच गई और उसने सोचा कि यह उसका अपमान होगा, अगर उसके जूते कोई ऐसा व्यक्ति खरीदेगा, जो उसके जितना अमीर ना हो.
इस बीच, बोलियां चरम सीमा तक पहुंच गईं! निजाम ने अपने आदमियों को निर्देश दिया कि वे अमीर आदमी का रूप धारण करें, नीलामी में भाग लें और "जितनी संभव हो उतनी कीमत पर" जूता वापस खरीदें. लोगों ने वैसा ही किया और अगर किंवदंतियों पर विश्वास किया जाए, तो जूते को दोबारा मालवीय से खरीदने के लिए भारी धनराशि का भुगतान किया गया. इस धन का उपयोग अंततः मदन मोहन मालवीय जी द्वारा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए किया गया.