Largest Desert of the World: हमारी यह पृथ्वी कई प्राकृतिक तत्वों से मिलकर बनी हैं. इस पृथ्वी पर आपको प्रकृति के एक से एक खूबसूरत नजारे देखने को मिल जाएंगे. लेकिन आज हम प्रकृति के एक खास हिस्से के बारे में बात करने वाले हैं, जिसे पूरी दुनिया रेगिस्तान (Desert) के नाम से जानती है. रेगिस्तान को आमतौर पर गर्म और शुष्क स्थानों के तौर पर देखा जाता है. यहां आपको दूर-दूर तक केवल रेत ही रेत दिखाई देगी. आपको जानकर हैरानी होगी कि पृथ्वी पर भूमी का लगभग एक-तिहाई भाग केवल रेगिस्तान से ही घिरा हुआ है. वहीं दुनिया में कई ऐसे रेगिस्तान भी हैं, जो कई देशों के क्षेत्रफल के बराबर हैं.   


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भारत के दो गुने से ज्यादा है इसका क्षेत्रफल
अगर बात करें दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान के बारे में तो अफ्रीका महाद्वीप में स्थित सहारा रेगिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है. यह करीब 10 देशों में फैला हुआ है. इसका क्षेत्रफल करीब पूरे यूरोप महाद्वीप के बराबर है. वहीं अगर भारत के लिहाज से देखें, तो इसका क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल के दो गुने से भी ज्यादा है. यह रेगिस्तान अफ्रीका महाद्वीप के माली, मोरक्को, मारितानिया, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, नाइजर, चाड, सूडान एवं मिस्र देशों में फैला हुआ है. 


इसके अलावा बता दें कि अरब प्रायद्वीप का ज्यादातर क्षेत्रफल सहारा रेगिस्तान के अंतर्गत ही आता है. अरब प्रायद्वीप का क्षेत्रफल 23 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो पूरे भारत के क्षेत्रफल का 70 प्रतिशत है. इसी के बीच में रुब अल-खाली नाम की एक जगह है, जो दुनिया का सबसे बड़ा रेतीला इलाका है.


ये है एशिया का सबसे विशाल रेगिस्तान
बात करें एशिया के सबसे विशाल रेगिस्तान की, तो इसमें गोबी डेजर्ट (Gobi Desert) का नाम शामिल है. गोबी डेजर्ट एशिया महाद्वीप के मंगोलिया देश में स्थित है. यह दुनिया का 5वां सबसे बड़ा और सबसे विशाल डेजर्ट है. बता दें कि यह एक डंडा रेगिस्तान है और इसका अधिकतर भाग चट्टानी है. साथ ही यहां का मौसम भी बड़ी तेजी से बदलता रहता है.


बर्फ से ढका है दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान
आपने यह तो सुना होगा कि रेगिस्तान काफी गर्म होते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि ये ठंडे और बर्फीले भी होते हैं? अगर नहीं, तो बता दें कि पृथ्वी का सबसे बड़ा रेगिस्तान बर्फ से ही ढका हुआ है. दरअसल, अंटार्कटिका ही विश्व का सबसे ठंड़ा और शुष्क महाद्वीप है. इसे रेगिस्तान इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां सालााना केवल 200 मिमि वर्षा ही होती है और उसमें से भी ज्यादातर वर्षा तटीय क्षेत्रों में होती है.