नई दिल्ली:  गर्मी का महीना शुरू हो गया है. धूप और गर्मी की वजह से उत्तर भारत में लोग बेहाल हैं. वहीं, बंगाल में प्री-मॉसनूस बारिश भी होने लगी है. ऐसी खबर सामने आने लगी है कि इस साल बारिश कैसी हो सकती है. लेकिन क्या आपने यह सोचा है कि ये अंदाजा लगाया कैसे जाता है? कैसे पता किया जाता है कि इस साल शानदार बारिश होगी या सूखा पड़ेगा. आइए जानते हैं...


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मॉनसून में 'नीना' का योगदान
दरअसल,  मॉनसून का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक  भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पश्चिमी और पूर्वी बेसिन में समुद्री हवाएं के तापमान पैटर्न पर ध्यान रखते हैं. ये स्थितियां ही मॉनसून को अपने हिसाब से प्रभावित करती हैं. दो किस्म की स्थितियां पैदा होती हैं. 'एन नीनो' और 'ला नीना'. इन्हें  El Nino-Southern Oscillation कहा जाता है.


ऐसी होती है अच्छी बारिश
भारत में अच्छी बारिश के लिए 'ला नीना' को जिम्मेदार माना जाता है. दरअसल, जब पूर्वी प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ये स्थिति पैदा होती है. इससे समुद्र सतह का तापमान कम हो जाता है. इस पर चक्रवात का असर होता है. जिससे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा बदलती है. जब 'ला नीना' की स्थिति बनती है, तब भारत में अच्छी बारिश होती है.


इस स्थिति होती है कम बारिश 
वहीं, जब प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, तब एन-नीनो की स्थिति बनती है. इससे हवाओं की दिशा बदल जाती है और मौसम बुरी तरह से प्रभावित होता है. कुछ स्थान पर बाढ़ आता है, तो कहीं सूखा पड़ता है. जब एन-नीनो की स्थिति बनती है, तो भारत में सूखा पड़ता है. हालांकि, साल 1997 में एन-नीनो के बावजूद अच्छी बारिश हुई है.