Mini Africa In India: भारत एक ऐसा देश है जहां पर हमें अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोग देखने को मिलते हैं. भाषा और वेशभूषा के आधार पर ये लोग अलग-अलग नजर आते हैं, तो कभी थोड़े फेरबदल के साथ कुछ-कुछ राज्यों के रीति-रिवाज मिलते-जुलते होते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

एक-राज्य से दूसरे राज्य रोजगार की तलाश और नौकरी करने वाले लोगों के अलावा हमारे पड़ोसी देश नेपाल से बहुत से लोग इंडिया आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में आज भी एक ऐसी जगह हैं, जहां के लोग हूबहू अफ्रीकन नजर आते हैं? इस जगह को भारत का मिनी अफ्रीका भी कहा जाता है. आइए जानते हैं कि कहां पर मौजूद है यह जगह...


यहां कई सौ वर्षों से रह रहे हैं अफ्रीकी मूल के लोग 
यह कहना गलत नहीं होगा कि इन लोगों का संबंध अफ्रीकी मूल के लोगों से हैं, क्योंकि भारत में तकरीबन 750 साल पहले से कुछ अफ्रीकी मूल के लोग रह रहे हैं. इतने साल भारत में रहने के बाद आज भी इनके शरीर की बनावट से लेकर इनके बाल और रंग-रूप पूरी तरह से अफ्रीकन्स की तरह ही है, इसलिए यह गांव मिनी अफ्रीका के नाम से मशहूर है.


ये जगह गुजरात में मौजूद है, जिसे जंबूर गांव के नाम से जाना जाता है. यहां रहने वाले सिद्दी जनजाति के लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं. जबकि, अब कुछ सिद्दी हिंदू और ईसाई धर्म को भी मानने लगे हैं. यह समुदाय मूल रूप से अफ्रीका के बंनतु समुदाय का हिस्सा है जो दक्षिण पूर्व अफ्रीका में रहते हैं.


भारत में बसने के पीछे ये है कहानी
सिद्दी जनजाति के लोगों का भारत में बसने के पीछे की कहानी यह है कि आज से करीब 750 साल पहले पुर्तगाली इस समुदाय के लोगों को गुलाम बनाकर यहां लाए थे. साथ ही अरब से भारत व्यापार करने वाले शेख भी अपने साथ ऐसे ही सैकड़ों अफ्रीकी गुलामों को लाए थे, जिन्हें इन व्यापारियों ने भारत के राजाओं को सौंप दिया. कहते हैं कि तभी से सिद्दी जनजाति के लोग गुजरात के इस इलाके में बस गए हैं.


वहीं, एक कहानी बताई जाती है कि जूनागढ़ के नवाब अफ्रीका गए थे तो वहां से एक अफ्रीकी महिला को अपने साथ लेकर आए थे. वह महिला अपने साथ 100 गुलामों को भी लेकर आई थी और इस तरह ये लोग भारत में ही बस गए. इस समुदाय के लोग गुजरात के अलावा कर्नाटक और हैदराबाद में भी मिल जाएंगे.


यहां लोग इतने वर्षों बाद भी बेहद बदहाल हालत में यहां रह रहे हैं. इनके घरों के दस्तावेज इनके नाम पर नहीं हैं. ये लोग अब भी मिट्टी से बने कच्चे मकानों में रहते हैं. ये आज भी केवल मजदूरी करके अपना घर चला रहे हैं. उनकी भाषा पूरी तरह से गुजराती है.