UGC के एक साथ डबल डिग्री प्रोग्राम पर शिक्षाविदों ने व्यक्त की चिंता, कहा- शिक्षा प्रणाली होगी कमजोर
यूजीसी के डबल डिग्री मामले पर अफसोस जताते हुए आभा देव हबीब ने कहा कि इस कदम से पता चलता है कि यूजीसी डिग्री कार्यक्रमों को कितना महत्व देता है. भारत में ही यह पहली बार होगा जब दो डिग्री छात्र एक साथ ले सकेंगे. दुनिया का ऐसा कोई भी देश नहीं है, जहां पर इस तरह की व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि सोचने वाली बात है कि एक छात्र कैसे टाइम का मैनेजमेंट करेगा?
नई दिल्ली. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने नए सत्र से एक साथ दो डिग्री ऑफलाइन मोड में लेने की अनुमति दे दी है. लेकिन अब इसको लेकर विवाद उठता दिख रहा है. कई प्रोफेसर और एजुकेशन एक्सपर्ट्स ने इस पर चिंता व्यक्त की है.उनका कहना है कि एक साथ दो डिग्री की अनुमति से शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा. प्रोफेसर्स ने कहा कि फुल टाइम डिग्री के लिए फुल टाइम अटेंशन की जरूरत पड़ती है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आभा देव हबीब की मानें तो एक डिग्री या नौकरी जब पूर्णकालिक हो, तो इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति की पूरी एकाग्रता उस पर होनी चाहिए. एक छात्र को एक डिग्री में अतिरिक्त क्रेडिट अर्जित करने की अनुमति देना एक बात है और उन्हें एक अतिरिक्त डिग्री अर्जित करने की अनुमति देना अलग बात है. ऐसे में यह सिर्फ हमारे डिग्री कार्यक्रमों की गुणवत्ता को कमजोर करेगा.
यूजीसी के डबल डिग्री मामले पर अफसोस जताते हुए आभा देव हबीब ने कहा कि इस कदम से पता चलता है कि यूजीसी डिग्री कार्यक्रमों को कितना महत्व देता है. भारत में ही यह पहली बार होगा जब दो डिग्री छात्र एक साथ ले सकेंगे. दुनिया का ऐसा कोई भी देश नहीं है, जहां पर इस तरह की व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि सोचने वाली बात है कि एक छात्र कैसे टाइम का मैनेजमेंट करेगा?
वहीं, डीयू के एक अन्य प्रोफेसर के मुताबिक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) मान रहा है कि एक छात्र सुपरमैन है या ऐसा व्यक्ति है जो 24 घंटे अध्ययन कर सकता है. डबल डिग्री प्रोग्राम की पेशकश करके यूजीसी ऑनर्स कोर्स को कम कर रहा है. ऑनर्स पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य छात्रों को व्यापक, गहन और उन्नत ज्ञान प्रदान करना है. अगर एक साथ डबल डिग्री की अनुमति दी जाएगी, तो ऑनर्स कोर्सेज का औचित्य खत्म हो जाएगा?
एक प्रोफेसर की मानें तो अगर कोई छात्र बीए ऑनर्स और बीएससी ऑनर्स एक साथ करेगा तो जरूर सवाल उठेगा. क्योंकि बीएससी में अधिक मेहनत की जरूरत पड़ती. बहुत सारे प्रैक्टिकल होते हैं. जबकि बीए का भी सिलेबस भी बहुत बड़ा होता है. ऐसे में एजुकेशन सिस्टम में अराजकता का माहौल पैदा होगा.